Gyanvapi Masjid Case: वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे का काम सोमवार को ही पूरा हो गया है. इस बीच प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) को लेकर देशभर में बहस छिड़ी है. 26 अप्रैल को वाराणसी की एक स्थानीय अदालत द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी मंदिर की वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण के आदेश के बाद यह सर्वेक्षण कार्य किया गया है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष और कई सियासी नेताओं ने मस्जिद के सर्वेक्षण पर आपत्ति जताई है और पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 और इसकी धारा 4 का हवाला देते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की है.


क्या है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991?


देश में पूजा स्थलों (Worship Places) की सुरक्षा को लेकर 1991 में कानून बनाया गया था. प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट 1991. ये एक्ट किसी भी धार्मिक स्थल के धार्मिक स्वरूप को बदलने से रोक लगाता है. ये एक्ट तत्कालीन नरसिम्हा राव की सरकार के वक्त बनाया गया था. ये एक्ट किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाते हैं और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के रखरखाव के लिए एक तरह से सुरक्षा प्रदान करते हैं जैसा कि 15 अगस्त, 1947 और उससे जुड़े या प्रासंगिक मामलों के लिए था.


कानूनी कार्यवाही को लेकर प्रावधान क्या?


एक्ट की धारा 3 किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पूजा स्थल को किसी दूसरे धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग या यहां तक ​​कि एक ही धार्मिक संप्रदाय के किसी भी उपासना स्थल में बदलने पर रोक लगाती है. धारा 4(1 ) एक्ट में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप वैसे ही बना रहेगा. धारा 4(2) 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप के रूपांतरण के लिए कोई मुकदमा दायर करने या कोई अन्य कानूनी कार्यवाही शुरू करने पर रोक लगाती है. ऐसे किसी भी संबंध में कोई वाद, अपील या अन्य कार्यवाही नहीं होगी.


प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट का मकसद


प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट 1991 को बनाने की पीछे की असल वजह अलग-अलग धर्मों के बीच टकराव की स्थिति को टालना था. इस एक्ट के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 जैसी स्थिति हर धार्मिक स्थल की रहेगी. इसके मुताबिक अगर 15 अगस्त 1947 को कहीं मंदिर है तो वो मंदिर ही रहेगा और कहीं मस्जिद है तो वो मस्जिद ही रहेगी. यानी कि ये एक्ट किसी भी धार्मिक स्थल के धार्मिक स्वरूप को बदलने से प्रतिबंधित करता है और 15 अगस्त 1947 के बाद इस जिस धार्मिक स्थल का जो स्वरूप उसे बनाए रखने पर जोर देता है.


ज्ञानवापी सर्वे पर क्या है सियासी विवाद?


अयोध्या विवाद को इस कानून के तहत नहीं लाया गया. जून 2020 में इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. विपक्षी दलों ने भी पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का हवाला देते हुए ज्ञानवापी सर्वे पर आपत्ति जताई है. कांग्रेस नेता पी चिदंबरम का कहना है कि पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा केवल राम जन्मभूमि को छोड़कर अधिनियम पारित किया गया था और कहा कि अन्य सभी पूजा स्थलों को यथास्थिति में रहना चाहिए और वे थे.


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