नई दिल्ली: भारत में लगातार कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं. दूसरी कोरोना वेव आ गई है. कोरोना के बढ़ते मामलों और मौजूदा हालात पर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के एपिडेमियोलॉजी और कम्युनिकेबल डिजीज के हेड डॉ समीरण पांडा से एबीपी न्यूज़ ने खास बातचीत की. इस दौरान वायरस के म्यूटेशन, मैथेमैटिकल मॉडल, केस दोबारा बढ़ने की वजह सहित दूसरे मुद्दों पर विस्तार से बातचीत की.
भारत में केस दोबारा से बढ़ रहे हैं, इसके पीछे वजह क्या है, म्यूटेशन या नया वैरिएंट?
जवाब- कोरोना के आंकड़ें बढ़ते जा रहे हैं, इसके पीछे एक कारण नहीं बल्कि दो-तीन कारण हैं. एक बात यह है कि जब पहली बार आई थी और उसके बाद डिक्लाइन हुआ था उसके बाद हमारे में यह शायद सोच आ गई कि महामारी खत्म हो चुकी है. सावधानी जो हमें बरतनी चाहिए थी उसमें हमने ढील दी. वह एक कारण है. राजनीतिक रैली, भीड़ का इकट्ठा होना और धार्मिक कार्यकम भी वजह हैं. सोशल इवेंट के माहौल में हम वायरस को बुलात हैं, फिर वहां वायरस फैलता है. मास गैदरिंग में ये पता नहीं चलता कि कौन सा व्यक्ति संक्रमित है.
दूसरी बात म्यूटेंट हैं. म्यूटेंट होता क्या है? वायरस में जो थोड़े बहुत बदलाव होते हैं उसे हम म्युटेंट कहते हैं. जब छोटे बदलाव देखे जाते हैं तो उसे हम ड्रेस्ड और ज्यादा बदलाव होते हैं तो हम उसे शिफ्ट कहते हैं. लेकिन वो जो बदलाव आते हैं उससे वायरस ज्यादा फैलता है. म्यूटेशन आंकड़े बढ़ा सकते हैं. लेकिन सेकेंड वेव जो 6 से 8 राज्यों के देखें तो उसके गहराई में देखें तो कुछ पॉकेट में हैं. ये कहना कि आंकड़े म्यूटेंट के कारण बढ़ें हैं तो ये कहना गलत है.
क्या नए वैरिएंट या म्यूटेशन की वजह से केस बढ़ रहे हैं?
यूके वैरिएंट पंजाब में पाया गया है या महाराष्ट्र में पाया गया है. इसी तरह ब्राजील वैरिएंट है. लेकिन बात ये नहीं है कि कोई भी वैरिएंट हो नया या पुराना वो फैलता एक ही तरीके से है. खांसते समय या छींकते समय मुंह से निकले एरोसोल की वजह से वायरस फैलता है. नया हो या पुराना वैरिएंट है, उसको रोकने का एक ही तरीका है.
कोई अनुमान है कब पीक आएगा, कोई इसको लेकर मैथेमैटिकल मॉडल या रिसर्च है?
जब फर्स्ट वेव आई थी उसी समय ये कहा गया था कि जून या जुलाई में खत्म हो जाएगा. लेकिन वो गलत साबित हुआ. सितंबर तक चलता रहा. मैथेमैटिकल मॉडल का एक लिमिटेशन है. आंकड़े बढ़ रहे हैं इसके बारे में दुनिया में चर्चा हो रही है. मैथेमैटिकल मॉडल 7 या 10 दिन तक लागू हो सकता है लेकिन फिर भी बदलाव आएगा. क्योंकि राज्य और केंद्र सरकार गंभीरता से काम कर रहे हैं. समाज भी चिंतित है क्योंकि आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. इसलिए सावधानी बरतनी चाहिए.
क्या लॉकडाउन या नाइट कर्फ्यू से इसको रोका जा सकता है?
लिमिटेड रिस्ट्रिक्टेड मूवमेंट पर कामयाब हो सकता है. एनफोर्समेंट में से नहीं होगा. इसे रोकने के लिए सामुदायिक स्तर पर सहभागिता जरूरी है. वैक्सीन को अपनाना होगा. मास्क का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. अगर प्रायोरिटी ग्रुप ने वैक्सीन लगवा ली और बाकी लोगों ने कोविड अप्रोप्रिएट बिहेवियर अपना लिया तो संक्रमण रुक जाएगा.
किस एज ग्रुप में सबसे ज्यादा संक्रमण देख रहे हैं, क्या युवाओं में भी आप पहले के मुकाबले संक्रमण देख रहे हैं?
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है. अब शॉपिंग मॉल खुल गए हैं. बिजनेस चल रहे है, उसको लेकर मूवमेंट हो रहे हैं. अभी तक 45 और उसके ऊपर की उम्र में संक्रमण देखने को मिल जाता था लेकिन अभी हमें सोचना चाहिए कि धार्मिक कार्यक्रम और चुनावी रैलियों में हर उम्र के लोग आते हैं. जो एक ग्रुप उसमें जाएगा वह संक्रमित होगा. ज्यादा नहीं कह सकते लेकिन हां संक्रमण हो रहा है. वह भी उनमें जिनमें किसी तरह की कोमोरबिडिटी नहीं है. वह बीमार नहीं पड़ रहे उनको पता भी नहीं चल रहा. संक्रमित होने के बाद कई लोगों में लक्षण नहीं दिखाई देते हैं लेकिन जिनको कोमोरबिडिटी है, उनमें लक्षण दिखाई देते हैं.
जिन राज्यों में चुनाव है, वहां पर आने वाले दिनों में केस बढ़ेंगे?
अगर विज्ञान को मानते हैं, साइंस को मानते हैं तो यह होना चाहिए. अगर आप 10 दिन बाद मुझे आकर पूछेंगे कि पश्चिम बंगाल में या हरिद्वार में क्यों आंकड़ा बढ़ता जा रहा है तो मैं यही कहूंगा कि जवाब आपके पास है. अगर साइंस मानकर चलें तो हमें भीड़भाड़ से बचना चाहिए और यह सिर्फ चुनाव की बात नहीं है.
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