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RTI कानून में संशोधन को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ क्यों है विपक्ष?
देशभर में हर साल करीब 60 लाख आरटीआई दायर होते हैं. जिसके जरिए लोगों को वह जानकारियां हासिल हो पाती है, जो अमूमन इस कानून के बनने से पहले तक नहीं मिल पाती थी.
नई दिल्ली: मोदी सरकार सूचना के अधिकार कानून में संशोधन के लिए बिल संसद में लेकर आई, जिसे लोकसभा से पास भी करा लिया गया. सरकार का कहना है कि बिल में जो संशोधन प्रस्तावित है, उससे आरटीआई कानून और सशक्त होगा और लोगों के लिए और ज्यादा मददगार साबित होगा. लेकिन बिल को लेकर मोदी सरकार को विपक्ष और आरटीआई कार्यकर्ताओं का विरोध झेलना पड़ रहा है.
मोदी सरकार सूचना अधिकार संशोधन बिल के तहत जो बदलाव लाने की बात कर रही है उसमें-
- मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल से लेकर उनके वेतन और सेवा शर्तें तक तय करने का अंतिम फैसला केंद्र सरकार ने अपने हाथ में रखने का प्रस्ताव किया है.
- प्रस्तावित बिल आरटीआई कानून 2005 की धारा 13 और 16 में संशोधन कर रहा है. इस बिल में प्रस्ताव रखा गया है कि केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल जो अभी तक 5 साल या अधिकतम 65 साल की उम्र तक हो सकता था, अब इनके कार्यकाल का फैसला केंद्र सरकार करेगी.
- धारा 13 में कहा गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन भत्ते और सेवा की अन्य शर्ते मुख्य चुनाव आयुक्त के समान ही होंगे और सूचना आयुक्त के भी चुनाव आयुक्तों के समान ही रहेंगे.
- वहीं धारा 16 राज्य स्तरीय मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों से संबंधित है. इसके तहत इन लोगों का कार्यकाल भी अधिकतम 65 साल की उम्र तक या 5 साल की जगह केंद्र सरकार ही तय करेगी. साथ ही इनकी नियुक्तियां भी केंद्र सरकार ही करेगी.
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राजेश शांडिल्यसंपादक, विश्व संवाद केन्द्र हरियाणा
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