मोदी सरकार सूचना अधिकार संशोधन बिल के तहत जो बदलाव लाने की बात कर रही है उसमें-
- मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल से लेकर उनके वेतन और सेवा शर्तें तक तय करने का अंतिम फैसला केंद्र सरकार ने अपने हाथ में रखने का प्रस्ताव किया है.
- प्रस्तावित बिल आरटीआई कानून 2005 की धारा 13 और 16 में संशोधन कर रहा है. इस बिल में प्रस्ताव रखा गया है कि केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल जो अभी तक 5 साल या अधिकतम 65 साल की उम्र तक हो सकता था, अब इनके कार्यकाल का फैसला केंद्र सरकार करेगी.
- धारा 13 में कहा गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन भत्ते और सेवा की अन्य शर्ते मुख्य चुनाव आयुक्त के समान ही होंगे और सूचना आयुक्त के भी चुनाव आयुक्तों के समान ही रहेंगे.
- वहीं धारा 16 राज्य स्तरीय मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों से संबंधित है. इसके तहत इन लोगों का कार्यकाल भी अधिकतम 65 साल की उम्र तक या 5 साल की जगह केंद्र सरकार ही तय करेगी. साथ ही इनकी नियुक्तियां भी केंद्र सरकार ही करेगी.
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केंद्र सरकार का कहना है कि पहले मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की सेवा की शर्तें चुनाव आयुक्तों के समान ही होती थी, लेकिन इस संशोधन के बाद यह शर्तें बदल जाएंगी. सरकार की दलील है कि क्योंकि चुनाव आयोग एक वैधानिक संस्था है जबकि सूचना आयोग एक कानूनी संस्था. लिहाजा दोनों के काम करने के तरीके में अंतर है.
वहीं विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस बिल के जरिए सूचना के अधिकार कानून को कमजोर करने की कोशिश कर रही है. इसके साथ ही राज्य के अधिकार भी छीनने की कोशिश कर रही है. ऐसे में मोदी सरकार के लिए राज्यसभा से इस बिल को पास करवाना एक बड़ी चुनौती होगा. क्योंकि आज की तारीख में मोदी सरकार के पास राज्यसभा में वह संख्या बल मौजूद नहीं है, जिसके भरोसे लोकसभा से ये बिल विपक्ष की आपत्ति के बावजूद पास हो गया.
एक अनुमान के मुताबिक, देशभर में हर साल करीब 60 लाख आरटीआई दायर होते हैं. जिसके जरिए लोगों को वह जानकारियां हासिल हो पाती है, जो अमूमन इस कानून के बनने से पहले तक नहीं मिल पाती थी. इसी वजह से आरटीआई को आम जनता के हाथ में एक अचूक हथियार के तौर पर देखा जाता है.
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