नई दिल्ली: गुजरात की तरह देश के कई राज्यों में आरक्षण को लेकर अलग अलग समुदायों की तरफ से मांग उठती रही है और हमेशा सरकारें या राजनीतिक दल इन मांगों को पूरा करने के नाम पर झूठे वादे करते रहे हैं. क्योंकि आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिलकुल साफ है.

आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी-सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, कोई भी राज्य 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकता. आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था के तहत देश में अनुसूचित जाति के लिए 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण है.

संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े नागरिकों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है. यहां तक की पिछड़े वर्ग में भी क्रीमी लेयर में आने वाले को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता यानी भारत में आर्थिक आधार पर आरक्षण की कोई व्यवस्था ही नहीं है. इसीलिए अब तक जिन-जिन राज्यों में इस आधार पर आरक्षण देने की कोशिश की गई उसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.

राजस्थान में क्या हुआ?

साल 2007 में वसुंधरा सरकार ने विशेष पिछड़ा वर्ग का गठन किया था और गुर्जर समेत चार जातियों को अलग से पांच फीसदी आरक्षण दे दिया था. राजस्थान में पहले से 49 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा था और एसबीसी कोटे में पांच फीसदी आरक्षण देने से आरक्षण की सीमा 54 फीसदी हो गईस जिसकी वजह से साल 2008 में राजस्थान हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दी.

हरियाणा में क्या हुआ?

साल 2012 में हरियाणा में जाट आंदोलन के सरकार ने जाटों के आरक्षण की मांग को पूरा करने का वादा किया, लेकिन तब से अब तक पांच साल बीत चुके हैं, लेकिन आरक्षण के वादे के नाम पर लोगों को सिर्फ धोखा मिला है. हरियाणा में करीब एक दशक से जाट आंदोलन चल रहा है, जाट खुद को ओबीसी में शामिल करने की मांग कर रहे हैं.

साल 2010, 2011, 2012 के आंदोलन के बाद पिछले साल फरवरी में भी जाटों ने हिंसक आंदोलन किया जिसके बाद खट्टर सरकार ने जाट समेत छह जातियों को शैक्षणिक आधार पर 10 फीसद आरक्षण देने का कानून बनाया. साथ ही सरकारी नौकरियों में भी छह से लेकर दस प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की लेकिन पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने भी इस पर रोक लगा दी.

हाईकोर्ट ने जाट आरक्षण कोटा का मामला हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग को भेज दिया है, जिसे अगले साल 31 मार्च तक अपनी रिपोर्ट देनी है. उधर जाट खट्टर सरकार पर वायदाखिलाफी के आरोप लगाते हुए फिर से आंदोलन करने की धमकी दे रहे हैं.

महाराष्ट्र में क्या हुआ?

महाराष्ट्र में जून 2014 में तब की कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मराठों को नौकरी और शिक्षा में 16 फीसद आरक्षण देने का अध्यादेश लागू कर दिया था. इसके बाद बीजेपी-शिव सेना गठबंधन सत्ता में आई जिसने इस अध्यादेश को कानून का रुप दे दिया, लेकिन नवंबर 2014 में बम्बई हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर रोक लगा दी.

इतना ही नहीं महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग और केन्द्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने यहां मराठों को पिछड़ा मानने से ही इनकार कर दिया है, ऐसे में उन्हें आरक्षण दिया ही नहीं जा सकता.

कैसे मिल सकता है50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण?

आरक्षण की तय सीमा यानी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण तभी दिया जा सकता है जब पटेलों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने के कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में डलवा दिया जाए. ये काम सिर्फ केंद्र सरकार ही कर सकती है, यानी गुजरात में सत्ता मिलने पर भी कांग्रेस फिलहाल ऐसा नहीं कर सकती और केंद्र की मुश्किल ये है कि अगर वो किसी एक समुदाय के लिए ऐसा करेगी तो जगह जगह ऐसी मांगें उठने लगेंगी.

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