क्या है भारत में आरक्षण का इतिहास, पहली बार कब जातिगत आरक्षण दिया गया और अब क्या है स्थिति?
भारत में जातिगत आधारित आरक्षण की बुनियाद 1882 में पड़ी, जब हंटर कमीशन की नियुक्ति की गई. तब हंटर कमीशन की रिपोर्ट को महाराष्ट्र में कोल्हापुर के राजा ने 1902 में लागू किया.
नई दिल्ली: विविधता से भरे भारत में हर तबके के लोग रहते हैं और ये तबके बहुत ही ज्यादा बंटे हुए हैं और इनमें ऊंच-नीच जैसे भेदभाव भी है. ऐसे में समाज में समरसता और बराबरी लाने के लिए आजाद भारत में आरक्षण की व्यवस्था की गई. लेकिन जातिगत आरक्षण का इतिहास भारत की आजादी से भी काफी पुराना है.
भारत में जातिगत आधारित आरक्षण की बुनियाद 1882 में पड़ी, जब हंटर कमीशन की नियुक्ति की गई. तब हंटर कमीशन की रिपोर्ट को महाराष्ट्र में कोल्हापुर के राजा ने 1902 में लागू किया. इस आरक्षण का मतलब निचले तबके की गरीबी दूर करना था. जब 1947 में भारत ने आजादी पाई तो संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गई. इसका मकसद था जातिगत रुप से पिछड़ी जातियों को अपने जीवन में सुधार का बेहतर अवसर मिले.
इसके तहत सबसे पहले लोकसभा और विधानसभा में जनप्रतिनिधियों के चुनाव में आरक्षण की व्यवस्था की गई. नौकरी और शिक्षा में आरक्षण की व्यवस्था दूसरे स्थान पर रखी गई.
1954 में, शिक्षा मंत्रालय ने सुझाव दिया कि शैक्षणिक संस्थानों में एससी और एसटी के लिए 20 फीसदी स्थानों को आरक्षित किया जाना चाहिए. इसके साथ ही जहां कहीं भी आवश्यक हो, प्रवेश के लिए न्यूनतम योग्यता अंकों में 5 फीसदी की छूट देने का भी प्रावधान हो.
1978 में एक महत्वपूर्ण बदलाव तब शुरू हुआ जब मंडल कमीशन की स्थापना सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति का आकलन करने के लिए की गई थी.
1982 में, यह निर्देशित किया गया था कि सार्वजनिक क्षेत्र और सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में क्रमशः 15 फीसदी और 7.5 फीसदी वैकेंसी एससी और एसटी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित की जानी चाहिए.
भारत में आरक्षण को लेकर सबसे बड़ी सियासत 1990 के शुरुआत के साथ हुई जब वीपी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिश को लागू किया. मंडल कमीशन की सिफारिश के बाद देश में नौकरी में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति और ओबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई. अनुसूचित जाति के लिए 15 और अनुसूचित जन जाति के लिए 7.5 फीसदी कोटे की व्यवस्था की गई. इसके साथ ही ओबीसी कोटे के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई.
साल 2008 में मनमोहन सिंह की सरकार ने उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया.
राजनीतिक आरक्षण संविधान में एससी, एसटी को 10 साल तक के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. तब से हर दस साल के बाद संविधान संशोधन के बाद इस आरक्षण की सीमा बढ़ाई जा रही है. 95वें संविधान संशोधन के बाद ये आरक्षण 2020 तक वैध है.
जानिए- आरक्षण के लिए गरीब सवर्ण की क्या होगी परिभाषा, किन पैरामीटर पर उतरना होगा खरा
आरक्षण पर मोदी सरकार का फैसला लागू हुआ तो सिर्फ 40 फीसदी रह जाएगी अनारक्षित कोटे की हिस्सेदारी
यह भी देखें