नई दिल्ली: मुसलमानों के यहां शादी एक कॉन्ट्रैक्ट (अनुबंध) है. जब लड़का और लड़की का निकाह (शादी) होता है तो दोनों के बीच एक कॉन्ट्रैक्ट पर अमल किया जाता है जिसपर पति-पत्नी दोनों के दस्तखत होते हैं. जिस दस्तावेज़ पर दस्तखत किए जाते हैं उसे निकाहनामा कहा जाता है.


याद रहे कि पहले शादी का कॉन्ट्रैक्ट मुंह जबानी हुआ करता था, कोई लिखा पढ़ी नहीं होती थी, लेकिन वक्त की तब्दीली के साथ निकाहनामा आया. हालांकि, मुगल दौर में भी जागीरदार और जमीनदार मुसलमानों के यहां निकाहनामे का इतिहास जरूर मिलता है.


क्या है मॉडल निकाहनामा?
जब शादी में निकाहनामे की शुरुआत हुई तो निकाहनामा कैसा हो इसे लेकर बड़ी परेशानी शुरू हुई. देश में मुसलमानों की करीब 18 करोड़ आबादी है. मुसलमानों के भीतर कई संप्रदाय हैं. ये मुसलमान देश के अलग-अलग हिस्सों में बिखरे हुए भी हैं. ऐसे में निकाहनामा के एक प्रारूप की जरूरत हुई. करीब 20 साल पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस पर काम शुरू किया और निकाहनामे का एक मॉडल दिया, जिसे मॉडल निकाहनामा कहा जाता है.


निकाहनामा में क्या होता है?
मौटे तौर पर इस निकाहनामे में दूल्हा, दुल्हन के नाम, उनके पते और उनके माता-पिता के नाम, दो गवाहों (मुसलमानों के यहां शादी के लिए कम से कम दो गवाह का होना जरूरी है) के नाम, उनके पता और उनके दस्तखत होते हैं. इसके साथ ही निकाह पढ़ाने वाले काज़ी (मौलवी) की पूरी जानकारी के साथ उनके दस्तखत भी होते हैं.


अब क्या बदल जाएगा?
दरअसल, मुसलमानों में जब शादी कॉन्ट्रैक्ट है, ऐसे में इस कॉन्ट्रैक्ट में अपने हिसाब से शर्ते लागू की जा सकती हैं. अब चुकी सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक को गैर कानूनी करार दे चुका है, ऐसे में इस निकाहनामे में तीन तलाक को लेकर कुछ शर्तें जोड़ी जा सकती हैं.


रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कुछ सदस्य ये चाहते हैं कि निकाहनामे में तीन तलाक नहीं देने की शर्त लगाई जाए, जबकि कुछ सदस्यों का ये कहना है कि निकाहनामे में तीन तलाक नहीं देने की तलकीन (नसीहत) की जाए. इसे लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में मदभेद हैं.