बुधवार यानी 21 अगस्त को महाराष्ट्र विधान परिषद में नागपुर भूमि आवंटन मामले को लेकर जमकर हंगामा हुआ. विपक्ष के लगातार हंगामे के चलते विधान परिषद को तीन बार स्थगित करना पड़ा. इससे पहले, मंगलवार को भी विपक्षी सदस्यों ने शिंदे से इस्तीफे की मांग की थी. उनकी यह मांग बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा मामले पर यथास्थिति का आदेश दिए जाने के कुछ दिनों बाद आई है. 


विपक्ष का आरोप है कि अप्रैल 2021 में जब एकनाथ शिंदे शहरी विकास मंत्री थे, उस वक्त उन्होंने इस विवादित जमीन के आवंटन पर मुहर लगा दी. विपक्षी एमवीए के अनुसार उस वक्त 5 एकड़ सरकारी जमीन की कीमत 83 करोड़ थी, लेकिन अपने करीबी बिल्डरों को शिंदे ने केवल 2 करोड़ में जमीन आवंटित कर दिया. 


क्या है मामला



  • साल 1964 में एनआईटी ने सक्कदरा स्ट्रीट योजना तैयार की थी, इसी योजना को साल 1967 में राज्य सरकार ने अधिकारिक मंजूरी दे दी. इसमें वो जमीन भी शामिल था जिस पर साल 1975 तक एक खेता परिवार का कब्जा रहा था. आखिरकार 1981 में इस जमीन एनआईटी को दे दी गई.

  • साल 2004 में पब्लिक यूटिलिटी लैंड की ओर से इस जमीन के आवंटन में अनियमितता पाई थी, जिसके बाद अनिल वाडपल्लीवार ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ में एक याचिका दायर की थी.

  • साल 2017 में, हाई कोर्ट ने इस मामले की जांच करने के लिए रिटायर्ड जज एम.एन. गिलानी को कहा था. जिसके बाद एक समिति का गठन किया गया 'गिलानी समिति'. इस समिति ने जमीन के आवंटन प्रक्रिया में अनियमितताएं और कानूनों का उल्लंघन पाया.

  • साल 2018 में नागपुर स्थित सूचना का अधिकार कार्यकर्ता कमलेश शाह ने इस मामले को एक बार फिर से चर्चा में ला दिया. उन्होंने एनआईटी अध्यक्ष को एक पत्र लिखते हुए कहा कि वे इस भूमि को विनियमित नहीं कर सकते क्योंकि मामला फिलहाल हाई कोर्ट में लंबित है.

  • 2021 में इस आवंटन को सरकार ने मंजूरी दे दी, जिसके बाद याचिकाकर्ता फिर हाई कोर्ट चले गए.

  • 14 दिसंबर 2022 को बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने न्यायमित्र आनंद परचुरे द्वारा पेश की गई रिपोर्टों पर संज्ञान लेते हुए शिंदे द्वारा झुग्गी निवासियों के लिए रखी जमीन को करीबी बिल्डरोम को आवंटित करने के फैसले पर यथास्थिति का आदेश दिया है.


विपक्षी एमवीए ने क्या कहा


मंगलवार को जैसे ही कार्यवाही शुरू हुई नेता प्रतिपक्ष अंबादास दानवे ने कहा, 'नागपुर सुधार न्यास ने झुग्गियों नें रह रहे लोगों के बेहतर जिंदगी के लिए 5 एकड़ जमीन आरक्षित किया था. लेकिन पूर्व शहरी विकास मंत्री जो कि वर्तमान में महाराष्ट्र के सीएम हैं, एकनाथ शिंदे ने इस जमीन के टुकड़ों को अपने करीबी बिल्डरों को आवंटित कर दिया था.


मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने इस जमीन को आवंटित करने पर पहले ही रोक लगा दी थी बावजूद इसके सीएम शिंदे ने जमीन आवंटित करने का फैसला लिया, जो कोर्ट के कार्य में हस्तक्षेप है.' 


वहीं दानवे के इस आरोप और सदन में हो रहे हंगामें पर आपत्ति जताते हुए बीजेपी के विधायकों ने कहा कि दानवे हर दिन एक ही मुद्दा उठा रहे हैं, जबकि राज्य के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कल ही यानी मंगलवार को इसका जवाब दे चुके हैं. इस मामले को लेकर दोनों पक्षों में बहस होने लगी जिसके बाद अध्यक्षता कर रहे नरेंद्र दराडे ने कार्यवाही को पंद्रह मिनट के लिए स्थगित कर दिया.


15 मिनट बाद एक बार फिर कार्यवाही की शुरुआत की गई तो फडणवीस ने साफ कहा, यह चर्चा मंगलवार को खत्म हो गई है. यह मामला अभी हाई कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए इसपर चर्चा करने से कोई फायदा नहीं होगा. अंबादास दानवे और उनकी पार्टी के सहकर्मी अनिल परब ने दलील दी कि सदन के पास किसी भी मुद्दे पर चर्चा करने का अधिकार है.


इसके बाद दोनों पक्षों के हंगामे को देखते हुए सदन की कार्यवाही एक बार फिर 15 मिनट के लिए स्थगित कर दी गई. जब कार्यवाही तीसरी बार फिर शुरू हुई तो दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहे. इसके बाद सदन की कार्यवाही एक बार फिर 15 मिनट के लिए स्थगित कर दी गई.


अब इस पर शिंदे का पक्ष जानिए...
मुख्यमंत्री शिंदे ने अपने उपर लगे इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि शहरी विकास मंत्री और मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने किसी भी तरह का भ्रष्टाचार या अनियमितता नहीं की है. उन्होंने कहा कि साल 2009 में उस वक्त के सरकारी दरों के अनुसार ही रुपए लिए गए थे.