Wayanad Landslide: केरल के वायनाड में बारिश की वजह से भूस्खलन में मरने वालों की संख्या बढ़कर 126 हो गई है,  जबकि 128 लोग घायल हैं. मंगलवार (30 जुलाई) शाम को सीएम पिनराई विजयन ने यह आंकड़ा जारी किया था. वायनाड में आई आपदा को लेकर विशेषज्ञों ने एक बड़ा बयान दिया है. 


विशेषज्ञों ने कहा कि घटते हुए जंगल, लगातार हो रहे निर्माण और कम वृक्षारोपण होने की वजह से बारिश से पड़ने से प्रभाव ज्यादा बढ़ गया है. 


भूस्खलन को लेकर जलवायु वैज्ञानिक एम राजीवन ने दिया बड़ा बयान 


पूर्व पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव और जलवायु वैज्ञानिक एम राजीवन ने कहा, 'केरल के मध्य और उत्तरी हिस्सों में दो या तीन दिनों में भारी बारिश हुई है. यह अचानक नहीं हुआ था, लगातार बारिश की वजह से मिट्टी की सतह नरम हो गई थी.' उन्होंने आगे कहा, 'यह भी सच है कि मानवीय हस्तक्षेप बारिश के प्रभाव को और ज्यादा बढ़ा दिया है. यहां पर पश्चिमी क्षेत्र पर कभी घने जंगल थे, जो बारिश के दौरान मिट्टी को जोड़े रखते थे. 


'जांच की जरूरत है'


राजीवन ने कहा, 'उदाहरण के लिए रबर के पेड़ की जड़ें मिट्टी को एक साथ नहीं रख सकती हैं. हालांकि अन्य स्थानीय पेड़ मिट्टी के खिसकने की रफ्तार को धीमा कर सकते हैं या मिट्टी को एक साथ पकड़ सकते हैं. इसकी आगे जांच करने की जरूरत है.'


मानसून के पैटर्न में भी हो रहा है बदलाव


भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा कि वायनाड भूस्खलन की बारीकियों को समझना अभी जल्दबाजी होगी. लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि मानसून पैटर्न तेजी से अनियमित हो रहा है और कम समय में ज्यादा बारिश हो रही है. उन्होंने कहा, 'यह अपनी चुनौतियों को लेकर आती हैं. परिणामस्वरूप, हम केरल से लेकर महाराष्ट्र तक पश्चिमी घाट पर भूस्खलन और बाढ़ की लगातार घटनाएं देखते हैं. इसके अलावा, ला नीना की स्थितियां वर्तमान में प्रशांत क्षेत्र में चल रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप मानसून और ज्यादा एक्टिव हो गया है. 


उन्होंने आगे कहा, 'केरल का लगभग आधा हिस्सा पहाड़ी और पर्वतीय है, जहां ढलान 20 डिग्री से अधिक है, जिससे भारी बारिश के बीच भूमि पर भूस्खलन का खतरा बना रहता है. भूस्खलन संभावित क्षेत्रों का मानचित्रण किया गया है और वे केरल के लिए उपलब्ध हैं. खतरनाक क्षेत्रों वाली पंचायतों की पहचान कर उन्हें संवेदनशील बनाया जाना चाहिए. हमें इन हॉटस्पॉट में वर्षा के आंकड़ों की निगरानी करने और खतरे की आशंका वाले क्षेत्रों के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली तैयार करने की आवश्यकता है. यह मौजूदा तकनीक और जानकारी से संभव है.'