बजट सत्र-2023 को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं. बजट सत्र  31 जनवरी से शुरू होगा और 6 अप्रैल तक चलेगा. इस सत्र के दौरान कुल 27 बैठकें होंगी. इसकी शुरुआत आर्थिक सर्वे के साथ की जाएगी. बजट पर पूरे देश की नजरें टिकी होती हैं. क्योंकि यह न सिर्फ देश की आर्थिक स्थिति का लेखा-जोखा पेश करती है, बल्कि इसी के बाद देश के आर्थिक भविष्य की रूपरेखा भी तय की जाती है .


इस बार बजट सत्र की शुरुआत के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पहली बार दोनों सदनों को संबोधित करेंगी. आइए आसान भाषा में समझते हैं कि  क्या है केंद्रीय बजट और क्यों है इतना जरूरी? 


बजट से पहले दोनों सदनों में पेश होगा आर्थिक सर्वे 


मिली जानकारी के अनुसार 31 जनवरी को शुरू हो रहे बजट सत्र के पहले ही दिन दोनों सदनों में इकोनॉमिक सर्वे पेश किया जाएगा. जिसके बाद संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण केंद्रीय बजट पेश करेंगी. बजट एक फरवरी को पेश किया जा सकता है. 10 फरवरी तक बजट का पहला सत्र जारी रह सकता है. दूसरा भाग छह मार्च को शुरू होगा और यह 6 अप्रैल तक चल सकता है. 


क्या होता है आर्थिक सर्वे


आर्थिक सर्वे एक आर्थिक डॉक्यूमेंट होता है. जिसमें पिछले एक वित्त वर्ष के दौरान भारत में क्या आर्थिक विकास हुआ है इसकी समीक्षा की जाती है. इस सर्वे को पूरा करने के लिए विभिन्न सेक्टर्स के डेटा का सहारा लिया जाता है. ये सेक्टर्स हैं इंडस्ट्री, एग्रीकल्चर, इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन, रोजगार, महंगाई, एक्सपोर्ट. इन सेक्टर्स से इकट्ठा किए गए डेटा के विस्तृत एनालिसिस पर आर्थिक समीक्षा आधारित होती है. इसमें मनी सप्लाई और फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व जैसे अन्य पहलुओं पर भी गौर किया जाता है, जिनका असर हमारे देश की इकोनॉमी पर पड़ता है.


केंद्रीय बजट पेश किए जाने से एक दिन पहले संसद में आर्थिक समीक्षा को पेश किया जाता है. इस सर्वे को वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स के इकोनॉमिक्स डिविजन तैयार करते हैं. सर्व को चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर के निर्देशन में तैयार किया जाता है. हालांकि, इसे पेश करने से पहले वित्त मंत्री मंजूरी बेहद जरूरी है. 




क्या होता है बजट?


केंद्रीय बजट देश का सालाना फाइनेंशियल लेखा-जोखा होता है. सरकार बजट के जरिए विशेष वित्तीय वर्ष के लिए अपनी अनुमानित कमाई और खर्च का लेखा जोखा पेश करती है. आसान भाषा में समझे तो केंद्र सरकार के वित्तीय ब्योरे को केंद्रीय बजट का नाम दिया गया है. 


हमारे देश में 1 अप्रैल 2023 से 31 मार्च 2024 को वित्त वर्ष माना जाता है. केंद्रीय बजट इसी समय के लिए पेश किया जाता है. बजट के जरिए सरकार यह तय करने की कोशिश करती है कि आने वाले वित्त वर्ष में वह अपनी कमाई की तुलना में किस हद तक खर्च कर सकती है.  यूनियन बजट को दो भागों में बांटा गया है. वे दो भाग हैं पूंजीगत बजट और राजस्व बजट.


पूंजीगत बजट: पूंजीगत बजट में पूंजी प्राप्तियां (जैसे- उधार, विनिवेश) और लंबी अवधि के पूंजीगत व्यय (जैसे- संपत्ति, निवेश का सृजन) शामिल होते हैं. 


राजस्व बजट: राजस्व बजट में राजस्व प्राप्तियां और इस प्राप्ति से किये जाने वाले व्यय शामिल होते हैं राजस्व प्राप्तियों में कर राजस्व (जैसे- आयकर, उत्पाद शुल्क आदि) और गैर- कर राजस्व (जैसे ब्याज रसीदें, लाभ आदि) दोनों शामिल होते हैं.


बजट की नींव कैसे रखी जाती है?


देश में किसी भी साल उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की मौजूदा बाजार कीमत को नॉमिनल जीडीपी कहते हैं. इसे ही बजट की बुनियाद कहा जा सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि बिना नॉमिनल जीडीपी जाने अगले साल का बजट बनाना संभव नहीं होगा.


क्या होती है नॉमिनल जीडीपी


एक साल में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों की गणना बाजार मूल्यों या वर्तमान मूल्य पर की जाती है. ऐसे में जो जीडीपी की वैल्यू प्राप्त होती है उसे नॉमिनल जीडीपी कहते हैं. नॉमिनल जीडीपी में देश की महंगाई की वैल्यू जुड़ी होती है. क्योंकि साल 2021-22 में मौजूदा कीमतों पर नॉमिनल जीडीपी का अनुमान 232.15 लाख करोड़ रुपये है. साल 2021-22 के दौरान नॉमिनल जीडीपी में 17.6 प्रतिशत की बढ़त का अनुमान है. 


केंद्रीय बजट का महत्व


बजट महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यहां सामाजिक न्याय और समानता के साथ-साथ हमारे देश का तेज और संतुलित आर्थिक विकास सुनिश्चित करना होता है. यह देश की दशा और दिशा तय करने के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है. केंद्रीय बजट के माध्यम से सरकार अपने देश में उपलब्ध संसाधनों का अलग अलग सेक्टर में विभाजित करता है ताकि संसाधनों का सही उपयोग किया जा सके. 


केंद्रीय बजट का एक लक्ष्य देश में बढ़ रही गरीबी को खत्म करना भी है. इसके लिए रोजगार पर कितने पैसे खर्च किए जाने है इसका खाका तैयार किया जाता है. केंद्रीय बजट से सरकार यह सुनिश्चित करने की कोशिश करती है कि भारत के सभी नागरिकों को स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधाएं मिल सके. इसके साथ ही सरकार को इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि देश के नागरिक अपने लिए रोटी, कपड़ा और मकान जैसे बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हों. 


कैसे शुरू होती है बजट बनाने की प्रक्रिया?


बजट बनाने में वित्त मंत्री के अलावा कई लोगों की अहम भूमिका होती है. जिसमें वित्त सचिव, राजस्व सचिव और व्यय सचिव शामिल हैं. बजट बनाने के दौरान हर रोज कई बार वित्त मंत्री से उनकी बजट के सिलसिले पर बातचीत होती है. इस दौरान जो बैठकें होती हैं वह या तो नॉर्थ ब्लॉक में होती है या वित्त मंत्री के आवास पर.


बजट बनाने के दौरान पूरी टीम को प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष का पूरा सहयोग मिलता रहता है. इसके अलावा कई क्षेत्रों के एक्सपर्ट भी बजट टीम में काम करते हैं.


बजट बनाने की प्रक्रिया इसके पेश होने से 6 महीने पहले से ही शुरू हो जाती है. बजट बनाए जाने के तहत अलग-अलग प्रशासनिक निकायों से आंकड़े मंगाए जाते हैं. जिससे पता किया जाता है कि इन निकायों को कितने फंड की जरूरत है.


इसके साथ ही जनकल्याण योजनाओं के लिए कितने पैसों की जरूरत होगी इस पर भी विचार किया जाता है. इसी हिसाब से अलग-अलग मंत्रालयों को कितना फंड मुहैया कराया जाएगा इसपर भी चर्चा होती है.


स्वतंत्र भारत का पहला बजट


स्वतंत्र भारत का सबसे पहला बजट साल 26 नवंबर 1947 में षणमुगम चेट्टी ने पेश किया था. हालांकि इसमें केवल देश के अर्थव्यवस्था की समीक्षा की गई थी, कोई टैक्स नहीं लगाया गया था. उस वक्त बजट में शामिल किए गए प्रस्तावों को संसद से मंजूरी का जरूरत पड़ती थी. मंजूरी मिल जाने के बाद ये प्रस्ताव 1 अप्रैल से लागू किया जाता था और अगले साल के 31 मार्च तक चलता था. 


साल 1947 से लेकर साल 2022 तक हमारे देश में कुल 73 आम बजट पेश किया जा चुका है, 14 अंतरिम बजट या चार खास या मिनी बजट पेश किए जा चुके हैं. 


सबसे ज्यादा बार किसने किया बजट पेश 


मोरारजी देसाई ने अब तक अन्य वित्त मंत्री की तुलना में सबसे ज्यादा बार बजट पेश किया है. उन्होंने वित्त मंत्री के तौर पर दस बार बजट पेश किया. इसके बाद वह देश के प्रधानमंत्री भी बने. उनके इस्तीफे के बाद साल 1987-1989 के बीच राजीव गांधी ने बजट पेश किया था. इसके बाद एनडी तिवारी ने 1988-89 का बजट पेश किया था और एसबी चव्हाण ने 1989-90 का बजट पेश किया था. 1990-91 का मधु दंडवते ने बजट पेश किया था.