नई दिल्ली: उपराज्यपाल के रूप में नजीब जंग के कार्यकाल के दौरान दिल्ली का जटिल प्रशासनिक ढांचा आम आदमी पार्टी की सरकार के साथ अप्रत्याशित टकराव की सीमा तक पहुंच गया था.


फरवरी, 2015 के चुनाव में भारी बहुमत हासिल कर सत्ता में आयी अरविंद केजरीवाल की सरकार ने जंग पर बार बार प्रशासन में बाधा डालने, बीजेपी की शह पर काम करने तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के एजेंट के तौर पर काम करने आरोप लगाया.


लेकिन जंग ने पूरी दृढ़ता से यह स्पष्ट किया कि वह बस संवैधानिक प्रावधानों का पालन कर रहे हैं और एक बार तो यहां तक कह दिया कि दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के संदर्भ में सरकार का मतलब दिल्ली का उपराज्यपाल होता है.


इसी साल, दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला जंग के लिए उत्साहजनक रहा क्योंकि उसने शहर के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में उनकी सर्वोच्चता पर मुहर लगा दी. वैसे आप सरकार ने उसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी.


वैसे इस खेल की रूपरेखा वर्ष 2013-14 में सत्ता में आप की 49 दिनों की पहली पारी में साफ हो गयी थी जब आप सरकार दिल्ली विधानसभा में जनलोकपाल विधेयक पेश करने पर जंग की आपत्ति को लेकर उनसे भिड़ गयी थी. पार्टी ने उनके फैसले पर संदेह प्रकट करने के लिए रिलायंस में उनके काम कर चुकने का भी मामला उठाया.


सत्ता में दूसरी पारी में पहला टकराव जंग द्वारा वरिष्ठ नौकरशाह शकुंतला गामलिन को जून, 2015 में दिल्ली सरकार की कार्यकारी मुख्य सचिव नियुक्त किये जाने के कुछ दिन के अंदर ही हुआ. अपनी आपत्ति के बाद भी गामलिन को नियुक्त किये जाने पर केजरीवाल ने इस फैसले केा असंवैधानिक करार दिया.


भ्रष्टाचार निरोधक शाखा टकराव की दूसरी वजह बना. एक बारगी को तो उसके दो प्रमुख हो गए, एक उपराज्यपाल द्वारा नियुक्त एम के मीना और दूसरे आप सरकार द्वारा नियुक्त एस एस यादव.


दिल्ली महिला आयोग की प्रमुख की नियुक्ति में भी सरकार एवं उपराज्यपाल के बीच टकराव हुआ. इस तरह कई और टकराव हुए.