आज पूछता है भारत- क्या होती है TRP? क्यों, कैसे और किसलिए बनाया जाता है दर्शकों को बेवकूफ
TRP (टारगेट रेटिंग पॉइंट्स / टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट्स) का उपयोग यह मापने के लिए किया जाता है कि एक विशिष्ट समय के अंतराल में कितने लोग / दर्शक किसी विशेष टीवी शो को देख रहे हैं.
हर हफ्ते TRP को लेकर टीवी न्यूज़ चैनलों के बीच खासा उत्साह देखने को मिलता है. इस बार भी आज ही TRP आया है. अब इसी बीच मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया है कि फर्जी TRP का रैकेट चल रहा है. इस मामले में 2 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. उन्होंने रिपब्लिक टीवी समेत तीन चैनलों के नाम लिए हैं. उन्होंने कहा कि रिपब्लिक टीवी पैसे देकर टीआरपी खरीदता था. अब आपके दिमाग में आ रहा होगा कि आखिर ये TRP क्या होता है. कैसे चैनलों की TRP तय होती है? आइए बताते हैं.
क्या होता है टीआरपी?
TRP (टारगेट रेटिंग पॉइंट्स / टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट्स) का उपयोग यह मापने के लिए किया जाता है कि एक तय समय के अंतराल में कितने दर्शक किसी विशेष टीवी शो को देख रहे हैं. टीआरपी हमें लोगों की पसंद बताता है और यह भी कि किस विशेष चैनल या शो की लोकप्रियता कितनी है. जिस शो और चैनल की TRP ज्यादा होती है विज्ञापनदाता उसी पर पैसा लगाते हैं.
कैसे मापी जाती है TRP
INTAM और BARC एजेंसियां किसी भी टीवी शो की TRP को मापते हैं. TRP को मापने के लिए कुछ जगहों पर पीपलस मीटर (People's Meter) लगाये जाते हैं. इसे ऐसे समझ सकते है कि कुछ हजार दर्शकों पर नमूने के रूप में सर्वे किया जाता है और इन्हीं दर्शकों के आधार पर सारे दर्शक मान लिया जाता है जो TV देख रहे होते हैं. अब ये पीपलस मीटर Specific Frequency के द्वारा ये पता लगाता है कि कौन सा प्रोग्राम या चैनल कितनी बार देखा जा रहा है.
इस मीटर के द्वारा एक-एक मिनट TV की जानकारी को Monitoring Team INTAM यानी Indian television Audience Measurement तक पहुंचा दिया जाता है. ये टीम पीपलस मीटर से मिली जानकारी को विश्लेषण या analyse करने के बाद तय करती है कि किस चैनल या प्रोग्राम की TRP कितनी है. इसको calculate करने के लिए एक दर्शक के द्वारा नियमित रूप से देखे जाने वाले प्रोग्राम और समय को लगातार रिकॉर्ड किया जाता है और फिर इस डाटा को 30 से गुना करके प्रोग्राम का एवरेज रिकॉर्ड निकाला जाता है. यह पीपल मीटर किसी भी चैनल और उसके प्रोग्राम के बारे में पूरी जानकारी निकाल लेता है.
कैसे रैकेट करता था काम?
उन्होंने कहा, ''बड़ा रैकेट हाथ लगा है. ये रैकेट है फर्जी TRP का. टेलीविजन विज्ञापन इंडस्ट्री करीब 30 से 40 हजार करोड़ रुपये की है. विज्ञापन का दर TRP रेट के आधार पर तय किया जाता है. किस चैनल को किस हिसाब से विज्ञापन मिलेगा यह तय किया जाता है. अगर टीआरपी में बदलाव होता है तो इससे रेवेन्यू पर असर पड़ता है. कुछ लोगों को इससे फायदा होता है और कुछ लोगों को इससे नुकसान होता है.''
उन्होंने कहा, ''टीआरपी को मापने के लिए BARC एक संस्था है. यह अलग-अलग शहरों में बैरोमीटर लगाते हैं, देश में करीब 30 हजार बैरोमीटर लगाए गए हैं. मुंबई में करीब 10 हजार बैरोमीटर लगाए गए हैं. बैरोमीटर इंस्टॉल करने का काम मुंबई में हंसा नाम की संस्था को दिया गया था. जांच के दौरान ये बात सामने आई है कि कुछ पुराने वर्कर जो हंसा के साथ काम कर रहे थे टेलीविजन चैनल से डाटा शेयर कर रहे थे. वो लोगों से कहते थे कि आप घर में हैं या नहीं है चैनल ऑन रखिए. इसके लिए पैसे देते थे. कुछ व्यक्ति जो अनपढ़ हैं, उनके घर में अंग्रेजी के चैनल ऑन किया जाता था.''
परमबीर सिंह ने कहा, ''हंसा के पूर्व वर्कर को हमने गिरफ्तार किया है. इसी आधार पर जांच बढ़ाई गई. दो लोगों को गिरफ्तार करके कोर्ट में पेश किया गया है और उन्हें 9 अक्टूबर तक कस्टडी में भेजा गया है. उनके कुछ साथी को ढूंढ़ रहे हैं. कुछ मुंबई में हैं और कुछ मुंबई के बाहर हैं. चैनल के हिसाब से ये पैसा देते थे. एक व्यक्ति जो पकड़ा गया है उसके अकाउंट से 20 लाख रुपये जब्त किया गया है और आठ लाख रुपये कैश बरामद किया गया है.''