Karnataka Election Result 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव रिजल्ट की तस्वीर साफ हो चुकी है और राज्य में कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने जा रही है. मतदाताओं ने अपने 38 सालों के परंपरा को बरकरार रखते हुए बीजेपी को बड़ा झटका दिया है. अब दक्षिण के किसी भी राज्य में पार्टी सत्ता में नहीं है. कर्नाटक में साल 1985 के बाद से लगातार पांच साल से ज्यादा कोई भी पार्टी सरकार में नहीं रही है.


विधानसभा की 224 सीटों में से कांग्रेस ने 135 सीटों पर जीत दर्ज की है. बीजेपी को 65 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है. एक सीट पर देर रात तक काउंटिंग जारी रही. वहीं जेडीएस मात्र 19 सीटें ही जीत सकी. चार सीटें अन्य के खाते में गई हैं. इस चुनाव में कांग्रेस को करीब 43 फीसदी और बीजेपी को 36 फीसदी वोट मिला है. जबकि जेडीएस के खाते में 13 फीसदी वोट गया है.


2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 104 सीटों पर जीत दर्ज की थी और उसे 36.22 फीसदी वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस ने 78 सीटों पर जीत दर्ज की थी और पार्टी को 38.04 फीसदी वोट मिले थे. जेडीएस ने 37 सीटों पर जीत दर्ज की थी और उसे 18.36 फीसदी वोट मिले थे.


कांग्रेस की जीत की वजह-


'40 फीसद कमीशन सरकार': कर्नाटक में कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ जोर-शोर से भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया. पार्टी ने बोम्मई सरकार को 40 परसेंट की सरकार और पे सीएम का नाम दिया. कांग्रेस के शीर्ष नेता से लेकर स्थानीय नेता तक वोटिंग के पहले-पहले तक इस मुद्दे पर डटे रहे. यहां तक की पार्टी ने आखिरी समय में कर्नाटक में न्यूज़ पेपर के स्थानीय एडिशन में भ्रष्टाचार की रेट लिस्ट भी जारी की और भ्रष्टाचार के मुद्दे को स्थापित करने की कोशिश की. चुनाव पूर्व किए गए एबीपी-सी वोटर के सर्वे को मानें तो राज्य में लोगों के बीच भी भ्रष्टाचार के एक बड़ा मुद्दा रहा. हालांकि बीजेपी भ्रष्टाचार के सभी आरोपों को खारिज करती रही.


पांच गारंटी: कर्नाटक में कांग्रेस ने पांच गारंटी की घोषणा की और पूरे चुनाव में अपने कैंपेन में आम लोगों को इन गारंटी के बारे में बताया. पार्टी ने दावा कि कि गृह ज्योति योजना के तहत सरकार बनने पर हर परिवार को 200 यूनिट तक बिजली फ्री देगी. गृह लक्ष्मी योजना के तहत परिवार चलाने वाली महिला को 2000 रुपये प्रति माह देगी. कांग्रेस ने दावा किया कि सरकार में आते ही सभी महिलाओं के लिए फ्री बस सर्विस होगी. युवाओं पर फोकस करते हुए पार्टी ने वादा किया कि वह ग्रेजुएट युवाओं को 3000 रुपये प्रतिमाह देगी. वहीं डिप्लोमा होल्डर्स को 1500 रुपये प्रति माह देगी. कांग्रेस ने अन्न भाग्य योजना के तहत बीपीएल परिवारों को हर महीने 10 किलो प्रति व्यक्ति चावल देगी. पार्टी के लिए इन वायदों की घोषणा वोट में बदला, जिसका असर रिजल्ट पर साफ दिख रहा है. कांग्रेस के इन वायदों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेवड़ी कल्चर कहकर आलोचना की. इसके जवाब में पार्टी ने बड़े उद्योगपतियों के कर्ज माफी आरोप लगाया और पूछा कि आम लोगों को क्यों नहीं इसका फायदा मिलना चाहिए.


एकजुटता दिखाना: कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी नेताओं को एकजुट रखना था. इसकी कोशिश चुनाव से करीब एक साल पहले कांग्रेस ने शुरू कर दी थी. राज्य में मुख्य तौर पर पार्टी के दो धड़े हैं एक पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का और दूसरा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार का. पार्टी ने पहली बार राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दोनों ही नेताओं को साथ रखा. शिवकुमार और सिद्धारमैया राहुल गांधी के साथ कदमताल मिलाते नजर आए. चुनाव कैंपेन के दौरान भी दोनों नेताओं की पोस्टर से लेकर मंच तक हर जगह मौजूदगी दिखी. यही नहीं 10 मई को वोटिंग से ठीक पहले पार्टी ने दोनों नेताओं के इंटरव्यू का वीडियो भी जारी किया. इस वीडियो में सिद्धारैमया और शिवकुमार एक दूसरे से सवाल कर रहे हैं और जवाब दे रहे हैं. पार्टी की कोशिश रही कि मतदाताओं में चुनाव बाद लड़ाई और सरकार में अस्थिरता का संदेश न जाए.


अग्रेसिव कैंपेन: कांग्रेस ने एगजुटता दिखाने के साथ ही अपने कैंपेन में काफी अग्रेसिव नजर आई. वार्ड से लेकर राजधानी और सोशल मीडिया तक में पार्टी अपने मुद्दों को लेकर अडिग नजर आई. कई सालों बाद सोनिया गांधी ने खुद विधानसभा चुनाव के लिए कर्नाटक में रैली की. राहुल गांधी, प्रियंका गांधी भी लगातार राज्य में डटे रहे. राहुल गांधी ने 11 दिनों में 23 रैलियों और 2 रोड शो किए. वहीं प्रियंका गांधी ने 9 दिनों में 15 रैलियां और 11 रोड शो किए. अपने गृह राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 15 दिनों में 32 रैलियां की और एक रोड शो किया. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने अपने करीबियों को राज्य में भेजा.


स्थानीय मुद्दे: चुनाव के आखिरी समय में कांग्रेस का पूरा फोकस स्थानीय मुद्दे पर रहा. अडानी-हिंडनबर्ग मामले, राहुल गांधी की अयोग्यता, ईडी-सीबीआई की कार्रवाई, सांप्रदायिक मुद्दों जैसे मसलों को कांग्रेस ने काम और महंगाई, भ्रष्टाचार, लॉ एंड ऑर्डर और आरक्षण जैसे मुद्दों पर अधिक उठाया. पार्टी ने पहली बार हाल के सालों में कर्नाटक में ही जातिगत जनगणना कराने का वादा किया और केंद्र सरकार को निशाने पर लिया. वहीं कांग्रेस ने आखिरी वक्त में पीएफआई और बजरंग दल जैसे संगठनों को भी बैन करने का वादा किया. इस मसले पर बीजेपी हमलावर हो गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा जैसे शीर्ष नेताओं से लेकर स्थानीय नेताओं तक ने इसे बजरंगबली से जोड़कर कांग्रेस से सामने संकट खड़े करने की कोशिश की. हालांकि, कांग्रेस ने भी इसके जवाब में पूरे राज्य में जगह-जगह हनुमान मंदिर बनाने के वायदे कर दिए.


BJP नेताओं को अपनाना: कांग्रेस ने बीजेपी से नाराज चल रहे कई नेताओं को पार्टी से जोड़ा इनमें पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उप-मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी और एस भी शामिल हैं. शेट्टार लिंगायतों के बनजिगा संप्रदाय से ताल्लुकात रखते हैं. वहीं लक्ष्मण सावदी तेली समाज से आते हैं. दोनों ही नेताओं की अच्छी पकड़ मानी जाती रही है. हालांकि शेट्टार को हार का सामना करना पड़ा है. सावदी ने बड़े अंतरों से जीत हासिल की है. वहीं कभी बीजेपी के करीबी रहे एच. डी. थम्मैया को भी पार्टी ने चिकमगलूर से टिकट दिया. थम्मैया ने बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और चार बार के विधायक सीटी रवि को हराया है.


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