बिहार में कैबिनेट के जातीय फ़ॉर्मूले से बीजेपी क्या साधना चाहती है?
राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी काफी लंबे समय से राज्य में अपने दम पर उठना चाहती है. पार्टी का ऐसा मानना है कि नीतीश कुमार की छत्रछाया से आगे निकलने और उनके करीबी सुशील मोदी को डिप्टी सीएम पद न देकर बीजेपी स्थानीय नेताओं को मजबूत करने की कोशिश कर रही है.
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बिहार में भी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर दो-दो उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं. नीतीश कुमार की अगुवाई वाली कैबिनेट को अगर देखें तो भारतीय जनता पार्टी ने एक तरफ से जहां उनके डिप्टी सीएम रहे सुशील मोदी को हटाया तो वहीं दूसरी तरफ वैश्य समुदाय की नाराजगी न हो इसको लेकर जातिगत सीमकरण का खास ध्यान रखा. इतना ही नहीं, जो उनके सहयोगी जेडीयू का खास वोटबैंक मना जाता है उस अति पिछड़े वोट बैंक में रेणु देवी की डिप्टी सीएम पद पर बिठाकर उसे साधने की कोशिश की गई है.
सवाल ये उठता है कि बीजेपी को ऐसा करने की आखिर जरूरत क्यों पड़ी? दरअसल, राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी काफी लंबे समय से राज्य में अपने दम पर पार्टी को उठाना चाहती है. लेकिन, पार्टी का ऐसा मानना है कि नीतीश कुमार की लंबी छत्रछाया से आगे निकलकर और उनके करीबी सुशील मोदी को डिप्टी सीएम पद न देकर स्थानीय नेताओं को मजबूत करने की कोशिश कर रही है.
इसके साथ ही, तारकिशोर को विधानमंडल का नेता और रेणु देवी को उप-नेता चुनकर बीजेपी की तरफ से पार्टी कैडर को यह संदेश देने की कोशिश की है कि परिवार और वंशवाद से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण पार्टी कार्यकर्ता हैं।
जाति आधारित बिहार जैसे राज्य में बीजेपी के लिए तारकिशोर प्रसाद और रेणुदेवी बिल्कुल माकूल बैठते हैं. एक तरफ जहां तारकिशोर ओबीसी वैश्य जाति से आते हैं तो वहीं रेणु देवी नोनिया समुदाय से हैं, जो अति पिछड़ा जाति से आती हैं. इससे पार्टी की तरफ से अतिपिछड़ों में यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि पहली बार राज्य में उप-मुख्यमंत्री पद पर बिठाकर उसे सम्मान देने की कोशिश की गई है. इसके साथ ही, लंबे समय में वोट बैंक रही ऊंची जातियों को भी नाराज ना कर केन्द्र में जगह दी है, तो वहीं अन्य जातियों को पटना में सत्ता में जगह देकर उनमें पैठ बनाने की कोशिश की जा रही है.
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