हाईकोर्ट ने 2003 में कराई विवादित जगह की खुदाई
हाईकोर्ट ने 2003 में विवादित जगह की खुदाई करवाई. ये जानने के लिए कि मंदिर और मस्जिद के दावों की सच्चाई क्या है. खुदाई में मिले सबूतों की जांच के बाद पता चला कि मस्जिद वाली जगह पर कभी हिंदू मंदिर हुआ करता था. आखिरकार 2010 में सुनवाई पूरी हुई.
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विवादित जमीन को तब तीन हिस्सों में बांटा था
30 सितंबर 2010 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया. फैसला हुआ कि 2.77 एकड़ विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्सा किए जाए. राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया. राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को दिया गया और बाकी बचा हुआ तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया.
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बेंच ने इस फैसले के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को माना था आधार
बेंच ने इस फैसले के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को ही आधार माना था. इसके अलावा भगवान राम के जन्म होने की मान्यता को भी फैसले में शामिल किया गया था. हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा था कि साढ़े चार सौ साल से मौजूद एक इमारत के ऐतिहासिक तथ्यों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती, लेकिन कोर्ट के इस फैसले को अयोध्या विवाद से जुड़े किसी भी पक्ष ने नहीं माना.
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अयोध्या में तब तक यथास्थिति का आदेश है
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया और दिसंबर में हिन्दू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने पुरानी स्थिति बरकरार रखने का आदेश दे दिया, तब से यथास्थिति बरकरार है और आज से इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई शुरू करेगा.
1992 में कार सेवकों ने गिरा दिया था विवादित ढांचा
आपको बता दें कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था. कहा जाता है कि भगवान राम की जन्म स्थली पर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी. साल 1992 में कार सेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया था. उस वक्त उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार थी. ये विवाद करीब 450 साल पुराना है.