Lok Sabha Election 2024: बीजेपी और कांग्रेस के अलावा देश में कई ऐसी राजनीतिक पार्टियां है, जिनका अपने-अपने राज्यों में दबदबा है. फिर चाहे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी हो या उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी. तमिलनाडु में डीएमके हो या महाराष्ट्र में शिवसेना. इन सभी क्षेत्रीय दलों का अपना वोट बैंक रहा है. ये वे पार्टियां हैं, जो राज्य से लेकर केंद्र तक की सरकार में हिस्सेदार रह चुकी हैं.


मौजूदा वक्त में समाजवादी पार्टी इंडिया अलांयस का हिस्सा है. वहीं, जेडीयू, शिवसेना और आम आदमी पार्टी भी इंडिया गठबंधन में शामिल हैं. वहीं, ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी भी बीजेपी विरोधी गठबंधन में शामिल है. 


किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं यह दल
हालांकि, देश में अभी भी कई पार्टियां ऐसी है, जो न तो एनडीए का हिस्सा हैं और न ही इंडिया गठबंधन का. इनमें ओडिशा में नवीन पटनायक की बीजेडी, तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की बीआरएस हो और पंजाब में शिरोमणी अकाली दल अहम हैं.


लिहाजा इन पार्टियों को एनडीए और इंडिया अलायंस दोनों ही अपने-अपने खेमे में शामिल करने में जुटे हैं. हाालंकि, सवाल यह है कि क्या वाकई क्षेत्रीय दल दिल्ली की सत्ता में गेम चेंजर साबित हो सकते हैं. इस संबंध में सपा सुप्रीमो पहले ही अपना रुख साफ कर चुके हैं.


अखिलेश यादव लगातार विपक्षी दलों को एक साथ आने की बात करते रहे हैं. उनका कहना है कि जो दल जिस राज्य में मजबूत है. उसे उस राज्य में गठबंधन का नेतृत्व करना चाहिए. वहीं. ऐसी ही कुछ राय पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भी है. हालांकि, सवाल अब भी वही है कि क्या क्षेत्रीय पार्टियां एक साथ आकर बीजेपी को टक्कर दे सकती है. इसे 2019 के नतीजों से समझा जा सकता है.
 
2019 में कैसा था क्षेत्रीय दलों का प्रदर्शन?
यूपी की बात करें तो 2019 में समाजवादी पार्टी को 17.96 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीजेपी को 49.56 परसेंट वोट मिले. इसी तरह महाराष्ट्र में शिवसेना को 23.29 तो बीजेपी को 27.59 परसेंट वोट मिले. बंगाल में टीएमसी को 43.2 तो बीजेपी को 40.25 फीसद वोट मिले. दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 18.11 तो बीजेपी को 56.56 प्रतिशत वोट मिले थे. 2019 के चुनाव में शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल एनडीए का हिस्सा थीं.. लेकिन फिलहाल दोनो की राहें जुदा हैं.


2013 में NDA में 29 दल थे शामिल
इससे पहले 2013 में भी जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था तो 29 पार्टियां एनडीए में थीं और 2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने अपने दम पर 282 सीटें जीती थीं. जबकि एनडीए के बाकी 11 साथी 54 सीटें जीतने में कामयाब हुए थे. लोकसभा चुनाव के बाद कई दल एनडीए में आए, लेकिन कुछ पार्टियों ने एनडीए का साथ छोड़ दिया.


2019 आम चुनाव में एनडीए को कुल 354 सीटें मिलीं. इनमें से बीजेपी को 303 और एनडीए के बाकी 12 दलों को 51 सीटें मिलीं. बावजूद इसके बीजेपी कहती है कि उसके लिए यूपी, बिहार और महाराष्ट्र के सहयोगी खास हैं. 


बिहार में महागठबंधन से होगी बीजेपी की टक्कर
अगर बात करें बिहार की तो 2024 में यहां बीजेपी को महागठबंधन से मुकाबला करना होगा. यहां तीन बड़ी पार्टियां हैं. कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू मिलकर इलेक्शन लड़ेंगी. हालांकि, यह और बात है कि जीतन राम मांझी एनडीए में शामिल हो चुके हैं.  2019 में मांझी की पार्टी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा को सिर्फ 2.4 परसेंट वोट मिले थे.. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को 3.6 परसेंट वोट और राम बिलास पासवान की पार्टी एलजेपी को 6 फीसदी वोट मिले थे.


 वहीं, दूसरी तरफ इंडिया अलायंस की बात करें तो कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन में कई पार्टियां ऐसी हैं, जिनका बड़ा सियासी रसूख रहा है और वह एनडीए का हिस्सा भी रही हैं. ऐसे में अलग होने वाली क्षेत्रीय पार्टियों की सियासी राह भी आसान नहीं है. इसलिए सवाल यह भी है कि क्या एनडीए से अलग हुए दलों की घर वापसी हो सकती है.


यूपी में बीजेपी के सहयोगी दल
अगर बात करें यूपी की तो यहां एनडीए के सहयोगी दलों में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल सोनेलाल और निषाद पार्टी एनडीए का हिस्सा हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में अपना दल सोनेलाल को 1.2 परसेंट वोट मिले थे और उसे दो सीट पर जीत हासिल हुई थी. संजय निषाद की पार्टी निषाद पार्टी का खाता भी नहीं खुला था, लेकिन 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी 10 सीटों पर लड़ी और 6 सीटें जीत गई.


गौर करने वाली बात यह है कि इन छोटी पार्टियों का असर सीमित वोटर तक है. मसलन सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के जरिए बीजेपी पूर्वांचल में पकड़ मजबूत बना सकती है. ओपी राजभर गाजीपुर सीट पर बीजेपी को मदद पहुंचा सकती है. बीजेपी ने 2019 में ये सीट गंवा दी थी.  इसके अलावा पंजाब में भी बीजेपी को सहयोगी की जरूरत हो सकती है. 2020 में अकाली दल ने कृषि कानून के विरोध में बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था. 


बीजेडी का रुख साफ नहीं
दूसरी तरफ दक्षिण की बात करें तो साउथ में सबसे ज्यादा सीटों वाले राज्य तमिलनाडु में डीएमके इंडिया अलायंस का हिस्सा बन चुकी है. वहीं, ओडिशा में बीजेडी की ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर वाली नीति रही है, लेकिन तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव के सत्ता से बेदखल होने के बाद एनडीए में शामिल होने के चांस बढ़ गए हैं. 


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