मुंबई: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे अपनी पार्टी को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं. इसी के तहत उन्होंने पुणे में दो दिवसीय कार्यकर्ता शिविर का आयोजन किया है. बीते महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा और पार्टी को सिर्फ एक सीट पर ही जीत मिल सकी. विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद राज ठाकरे पहली बार आज सार्वजनिक तौर पर नजर आए. मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार नागरिकता संशोधन कानून के जरिए लोगों में भ्रम पैदा कर रही है. देश आर्थिक मंदी की तरफ जा रहा है लेकिन उसकी ओर से ध्यान हटाने का काम अमित शाह ने किया है. भारत कोई धर्मशाला नहीं है. मेरा मानना है कि जो भी भारत के नागरिक नहीं हैं फिर चाहे वह किसी भी धर्म के हो उन्हें बाहर भेज दिया जाना चाहिए.


राज ठाकरे ने उन लोगों पर भी निशाना साधा जिन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और एनसीपी जैसी पार्टियों को छोड़कर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था. उनकी हार पर ठाकरे ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जनता ने उन्हें उनकी सही जगह दिखा दी है. मौजूदा तीन पार्टियों की उद्धव ठाकरे सरकार पर कटाक्ष करते हुए राज ठाकरे ने कहा कि फिलहाल इस सरकार का हनीमून पीरियड चल रहा है. राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर साल 2006 में अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया था. उनको पहली कामयाबी साल 2009 के विधानसभा चुनाव में मिली जब एमएनएस के 13 विधायक चुने गए. इसके बाद साल 2012 में नासिक महानगरपालिका पर भी एमएनएस का कब्जा हो गया. उस वक्त ऐसा लग रहा था कि शायद आने वाले वक्त में राज ठाकरे की एमएनएस शिवसेना को खत्म कर देगी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.


साल 2014 के विधानसभा चुनाव में एमएनएस सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल कर पाई. इसके बाद साल 2017 में नासिक महानगरपालिका के चुनाव में भी MNS की करारी हार हुई. 2017 में ही जो मुंबई महानगर पालिका के चुनाव हुए थे उसमें एमएनएस के महज सात नगरसेवक ही चुने जा सके. इन सात नगर सेवकों में से 6 नगर सेवकों ने बाद में पार्टी छोड़ दी और शिवसेना के साथ हो लिए. इसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में भी राज ठाकरे को सफलता नहीं मिली और उनकी पार्टी सिर्फ एक विधायक तक ही सीमित रह गई.


राज ठाकरे ने बीता विधानसभा चुनाव अनमने ढंग से लड़ा


माना जाता है कि राज ठाकरे ने बीता विधानसभा चुनाव अनमने ढंग से लड़ा. ईवीएम के मुद्दे को लेकर चुनाव के बहिष्कार की खातिर वे तमाम गैर बीजेपी पार्टियों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उनको सफलता नहीं मिली. आखिर में राज ठाकरे ने 104 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. कुछ सीटों पर उन्होंने एनसीपी के साथ समझौता कर लिया और एनसीपी के कुछ दिग्गज नेताओं के सामने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे. चुनाव प्रचार के दौरान राज ठाकरे ये कहते थे कि वे विपक्ष में बैठने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं क्योंकि राज्य में मजबूत विपक्ष नहीं है और उसी जगह को भरने की कोशिश उनकी पार्टी करेगी.


अब ये देखना होगा कि राज ठाकरे महाराष्ट्र के बदले हुए चुनावी समीकरण का फायदा किस तरह से उठाते हैं. शिवसेना और बीजेपी अलग हो चुकी है. ऐसे में एक तरफ बीजेपी के पास महाराष्ट्र में कोई क्षेत्रीय पार्टनर नहीं है तो वहीं शिवसेना भी हिंदुत्व के मुद्दे पर नरम हो चुकी है. ऐसे में कुछ सियासी जानकार मानते हैं की अगर राज ठाकरे हिंदुत्व का मुद्दा अपनाकर बीजेपी से हाथ मिला लेते हैं तो उनकी पार्टी में एक नई जान आ सकती है.


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