बैंक डूबा तो आपके पैसों का क्या होगा? जानिए बैंकिंग से जुड़े कुछ दिलचस्प नियम
यस बैंक के संकट में आने की खबर के बाद लोगों के मन में सवाल उठता है कि अगर बैंक में किसी का पैसा फंस जाए तो वह क्या करें? इसके लिए हमारे बैंकिंग नियम क्या कहते हैं. हम आपको बैंकिंग से जुड़े कुछ नियमों की जानकारी दे रहे हैं.
नई दिल्ली: अगर बैंक में किसी का पैसा फंस जाए तो वह क्या करें? यह सवाल है जो अक्सर एक आम आदमी के मन में उठता है. हाल में यस बैंक के संकट में आने की खबर के बाद लोगों के मन में यह सवाल और भी ज्यादा उठ रहा है. हम आपको बैंकिंग से जुड़े कुछ नियमों की जानकारी दे रहे हैं. इससे बैंक में जमा आपके पैसों की स्थिति को लेकर आपको कुछ स्पष्टता मिल सकेगी. बैंक में जमा पैसों के लेनदेन को लेकर बैंक की जवाबदेही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया रेगुलेशन 1939 के तहत जारी गाइडलाइंस में दी गई है. इसको कुछ प्वाइंट्स के जरिए समझ सकते हैं.
अगर आपका करंट अकाउंट यानि चालू खाता है तो उसमें आप कभी भी कितनी भी रकम जमा करवा सकते हैं और निकाल सकते हैं.
अगर आपका सेविंग्स अकाउंट यानी बचत खाता है, तो आप एक बार में कुल रकम जमा रकम का 10 फीसदी ही निकाल सकते हैं.
अगर आपने बैंक में फिक्स डिपॉजिट करा रखा है, तो उसकी अवधि पूरी होने से पहले भी परिवार में विवाह, उच्च शिक्षा या मेडिकल जरूरतों के लिए पांच लाख रुपए तक की निकासी की जा सकती है.
जिन आरबीआई गाइडलाइंस कि हम बात कर रहे हैं, उनमें ही यह कहा गया है कि अगर बैंक में कोई आपात स्थिति आ जाए, तो बैंक एक बार में पैसे की निकासी की सीमा तय कर सकता है. ऐसा ही यस बैंक के मामले में भी हुआ. जहां कुछ दिनों के लिए 50 हजार रुपये तक की ही निकासी की सीमा तय कर दी गई. लेकिन यह अवधि 30 दिनों तक ही हो सकती है. यानी बैंक से एक बार में पैसे निकालने के लिए जो लिमिट लगाई जाती है वह एक महीने से ज्यादा समय तक जारी नहीं रह सकती.
अब सवाल यह उठता है कि अगर 30 दिनों के बाद भी इस तरह की रोक जारी रहती है, तो क्या किया जाए? ऐसे में बैंक का कोई ग्राहक बैंकिंग ओंबड्समैन के पास जा सकता है. ओंबड्समैन तथ्यों की जांच करने के बाद बैंक को ग्राहक को पैसे देने का आदेश दे सकता है. अगर 30 दिनों में इस आदेश का पालन नहीं होता, तो ओंबड्समैन के सामने बैंक के सीईओ को व्यक्तिगत रूप से पेश होना पड़ता है और वजह बतानी होती है. अगर ओंबड्समैन उनके जवाब से संतुष्ट नहीं होते तो मामला उचित कार्रवाई के लिए रिजर्व बैंक के पास भेज दिया जाता है.
अगला और अहम सवाल यह कि अगर बैंक डूब जाए और उसके साथ ही ग्राहक के पैसे भी फंस जाएं तो क्या होगा? बैंकों में जमा पैसा डिपॉजिट इंश्योरेंस क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन यानी डीआईसीजीसी के तहत इंश्योर्ड होता है, लेकिन यहां यह समझना जरूरी है कि किसी भी सूरत में एक ग्राहक को अधिकतम पांच लाख रुपए तक का ही बीमा भुगतान मिल सकता है. यानी बैंक में जमा रकम कितनी भी रही हो, बैंक के डूब जाने की स्थिति में सरकार की जिम्मेदारी किसी व्यक्ति को पांच लाख रुपये तक ही देने की है. पहले यह सीमा एक लाख रुपये तक की ही रखी गई थी. इस साल के बजट में बढ़ाकर इसे पांच लाख किया गया है.
तो यह स्पष्ट है कि बैंक में कोई समस्या आ जाने की स्थिति में हर ग्राहक के लिए निकासी की एक सीमा तय की जा सकती है, लेकिन इसकी अवधि 30 दिनों से ज्यादा नहीं होगी. अगर 30 दिनों के बाद भी बैंक के आर्थिक सेहत नहीं सुधरती है तो ग्राहक के पास ओंबड्समैन और रिजर्व बैंक के पास जाने का विकल्प मौजूद है. उनके आदेश से ग्राहक को अपने पैसे मिल सकते हैं, लेकिन अगर बैंक पूरी तरह से डूब जाता है, पैसे देने की स्थिति में नहीं होता तो ग्राहक को पांच लाख रुपये तक ही मिल सकते हैं.
फिलहाल कानून में यह प्रावधान है, अगर किसी को ऐसा लगता है कि यह कानून भेदभाव भरा है, तो वह हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर कर इसे चुनौती दे सकता है. अगर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट कानून में बदलाव को जरूरी मानते हुए सरकार को निर्देश देते हैं, तो भविष्य में बदलाव हो सकता है.
आखिरी बात, अगर डूबते हुए बैंक को रिजर्व बैंक से कोई बेल आउट पैकेज मिल जाए या उसका किसी और बैंक में विलय हो जाए तो क्या होगा? ऐसी स्थिति में बैंक की बैंकिंग सेवाएं जारी रहेंगी. इस तरह से ग्राहकों का अकाउंट और पैसा सुरक्षित रहेगा.