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बाबरी के नीचे खंभा, कुतुबमीनार में मंदिर, तमिल में द्रविड़ सभ्यता का दावा..., जब ASI रिपोर्ट ने सुलगाई देश की सियासत

162 साल पहले बनी ASI की रिपोर्ट देश की सियासत में कई बार भूचाल ला चुका है. ASI सर्वे ने देश के राजनीतिक विमर्श को ही बदल दिया. इस स्टोरी हम इसके 3 किस्से के बारे में विस्तार से जानते हैं...

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी केस में शर्तों के साथ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण  को (ASI) सर्वे की अनुमति दे दी है. चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर की एकल पीठ ने अंजुमन इंतजामिया की याचिका खारिज करते हुए कहा कि न्याय के लिए सर्वे जरूरी है. हाईकोर्ट ने ASI से ढांचा को नुकसान पहुंचाए बिना सर्वे करने के लिए कहा है.

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान ASI की ओर से हलफनामा दाखिल किया गया था, जिसमें कहा गया था कि ज्ञानवापी को नुकसान पहुंचाए बिना भी सर्वे का काम किया जा सकता है. हिंदू पक्षों का कहना था कि  ASI सर्वे से ही यह पता चल पाएगा कि वहां मंदिर था या नहीं?

हाईकोर्ट के आदेश के बाद ASI एक बार फिर सुर्खियों में है. 162 साल पहले बनी ASI की रिपोर्ट देश की सियासत में कई बार भूचाल ला चुका है. ASI सर्वे ने देश के राजनीतिक विमर्श को ही बदल दिया. राम मंदिर विवाद में भी ASI सर्वे का अहम रोल था. 

आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया यानी ASI क्या है?
देश के प्राचीन स्मारकों को संरक्षित रखने और खुदाई में मिले एतिहासिक चीजों के बारे में पता लगाने के लिए संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक संगठन काम करता है, जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया) कहा जाता है. भारत में अंग्रेजी हुकूमत के वक्त ही एएसआई का गठन किया गया था.

शुरुआत में आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया ने गया से लेकर पश्चिम के सिंधु तक और उत्तर के कालसी से लेकर दक्षिण के नर्मदा तक का सर्वेक्षण किया था. कुल मिलाकर कहा जाए तो अखंड भारत का यह पहला बड़ा सर्वेक्षण था. 

इसके बाद ASI को सभी प्राचीन स्थलों की देखरेख की जिम्मेदारी दी गई. एजेंसी ने एक सूची तैयार की, जिसमें देश के धरोहरों को शामिल किया गया. आजादी के बाद ASI को लेकर कई कानून संसद में बनाए गए.

इनमें पुरावशेष और कला खजाना अधिनियम, 1972 और प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष (संशोधन और मान्यकरण) अधिनियम, 2010 प्रमुख हैं.

कैसे सर्वे करता है आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया?
ASI सर्वे से पहले आधार तय करता है. किसी ज्ञात इमारत या खंडहर के सर्वे के लिए ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) और मॉडर्न टेक्नोलॉजी अपनाया जाता है. कार्बन डेटिंग भी इसी तकनीक का हिस्सा है. 

कार्बन डेटिंग के जरिए यह पता लगाया जाता है कि यह इमारत या खंडहर कितना पुराना है. इसके अलावा इमारत की वास्तुकला का सर्वे कर उसके बारे में जानकारी जुटाता है. ज्ञानवापी मामले में भी कार्बन डेटिंग सर्वे की मांग की जा रह है. 

हिंदू पक्षों का कहना है कि यहां पहले मंदिर था, लेकिन बाद में उसे तोड़कर मस्जिद बना दिया गया. 

ASI सर्वे रिपोर्ट से सुलगा विवाद, 3 किस्से

1. बाबरी के नीचे मंदिर जैसे खंभे मिले, शुरू हो गया राम मंदिर आंदोलन
1975-76 में ASI ने अयोध्या में एक सर्वे किया. अयोध्या में बाबरी मस्जिद के आसपास यह चौथी बार ASI का सर्वे हो रहा था. सर्वे का नेतृत्व ASI के डायरेक्टर जनरल और प्रोफेसर बीबी लाल कर रहे थे. सर्वे के बाद बीबी लाल के दावों ने राम मंदिर विवाद को सुलगा दिया.

1990 में राम मंदिर आंदोलन जब रफ्तार पकड़ रही थी, तो बीबी लाल ने एक लेख लिखकर यह दावा कर दिया कि मस्जिद के नीचे उन्हें मंदिर जैसे खंभे मिले थे. लाल ने एक पत्रिका मंथन में लिखा- जब मैंने वहां सर्वे किया तो मस्जिद की नींव के पास मंदिर का एक खंभा दिखा, जो बहुत ही पुराना था. 

लाल के इस दावे को विश्व हिंदू परिषद समेत अन्य हिंदुत्वादी संगठनों ने जमकर भुनाया. हालांकि, लाल के इस दावे पर पुरातत्वविदों ने सवाल भी उठाया. 1993 में वर्ल्ड आर्कियोलोजिक कांग्रेस में पुरातत्वविदों ने लाल को बाबरी के खिलाफ किए सर्वे को नहीं रखने दिया गया. 

लाल के दावे को आधार बनाते हुए हिंदू पक्षों ने हाईकोर्ट से फिर से सर्वे कराने की मांग की, जिसके बाद 2003 में हाईकोर्ट ने इसकी अनुमति दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर फैसला सुनाते हुए ASI की रिपोर्ट के आधार पर यह भी कहा है कि मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी. 

हालांकि, कोर्ट ने साथ में यह भी कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी, इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला.

2. कीझाडी में खुदाई का सबूत और छिड़ा द्रविड़-आर्य के पहले आने की लड़ाई
तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के कीझाडी में भारतीय पुरातत्व विभाग ने साल 2001 में खुदाई शुरू की. 2013-14 के आसपास ASI को यहां खुदाई में कई अहम अवशेष हाथ लगे. ASI सर्वे में कीझाडी से जो सामान्य मिले, उस पुरावशेष के 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक के होने का अनुमान लगाया गया.

ASI ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि खुदाई से ऐसा लगता है  यह वैगई सभ्यता है, जो उद्योग और लिपि के साथ एक विकसित और आत्मनिर्भर शहरी संस्कृति है. साथ ही यहां मिले अवशेष यह बताते हैं कि इस युग के लोग कितने साक्षर थे.

आर्कियोलोजिस्ट अमरनाथ कृष्ण के नेतृत्व में टीम ने जो चीजें खुदाई से बाहर निकालीं वो सिंधु घाटी सभ्यता से मिलती-जुलती थीं. इससे पहले जितने भी सबूत मिले थे, उसमें द्रविड़ सभ्यता के बसे होने का प्रमाण नहीं मिले थे. हालांकि, द्रविड़ सालों से आर्य से पहले आने का दावा करते रहे हैं.

2016 में आर्य-द्रविड़ के बीच पहले आने को लेकर शुरू हुई बहस को देखते हुए केंद्र ने यहां सर्वे पर रोक लगा दिया. इसके बाद काफी हंगामा मचा. 2020 में मद्रास हाईकोर्ट ने ASI सर्वे काम जारी रखने का आदेश दिया. 

3. कुतुबमीनार परिसर में मंदिर होने की बात, 150 साल बाद मचा बवाल
1871-72 ईस्वी में एएसआई के वरिष्ठ अधिकारी जेडी बेगलर की अध्यक्षता में दिल्ली स्थित कुतुबमीनार परिसर में एक सर्वे किया गया था. इंडिया टुडे के मुताबिक सर्वे में कहा गया कि कुतुबमीनार में स्थिति मस्जिद से पहले एक मंदिर वहां स्थापित था. 

हाल ही में इस रिपोर्ट के हवाले से हिंदू पक्षों ने कुतुबमीनार के स्वामित्व पर दावा ठोक दिया है. हिंदू पक्षों का कहना है कि कुतुबमीनार का निर्माण विक्रमादित्य के शासन काल में हुआ था, जिसे बाद में तोड़ दिया गया. 

हालांकि, एएसआई ने इस बात का विरोध किया. वर्तमान में दिल्ली की एक अदालत में कुतुबमीनार का पूरा केस चल रहा है. ASI ने कोर्ट में कहा कि कुतुबमीनार कोई पूजा स्थल नहीं है. 

इतिहासकारों के मुताबिक कुतुबमीनार को बनाने की शुरुआत कुतुबुद्दीन-ऐबक ने की थी और उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने पूरा कराया था.

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