नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने अंतिम सफर के लिए कूच कर चुके हैं. अटल बिहारी वाजपेयी का वर्तमान केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ बेहद खास रिश्ता रहा है. केन्द्रीय मंत्री हमेशा से दिवंगत नेता को अपने मार्गदर्शक के तौर पर मानते थे. आज पूर्व प्रधानमंत्री की मानव काया शिथिल हो गई है मगर एक ऐसा आजतशत्रु नेता जिसकी ओजस्वी गरिमा, एक सलाहकार के तौर पर, आगे की राह दिखाने वाले अभिभावक के तौर पर पूर्व प्रधानमंत्री की यादें हमेशा राजनाथ सिंह के जेहन में जिंदा रहेंगी. राजनाथ सिंह ने भी एक सच्चे शिष्य की तरह अपने गुरू की दीक्षा का सम्मान किया है. लखनऊ की सीट पर अपनी जीत दर्ज करने के साथ राजनाथ सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री की राजनीतिक विरासत को कायम रखा है.



वाजपेयी ने 2004 में समाजवादी पार्टी (एसपी) के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी मधु गुप्ता को बड़े मार्जिन से हरा कर जीत दर्ज की थी. इस परंपरा का जारी रखते हुए राजनाथ ने भी 2014 में लखनऊ से लोकसाभ सीट पर जबरदस्त जीत दर्ज की.


जननेता होने के साथ-साथ अटल बिहारी वाजपेयी एक प्रखर वक्ता और ओजस्वी कवि भी थे. वाजपेयी का स्वाभाव बेहद खुशनुमा शख्स का था और वह अपने मजाकिया लहजे के लिए जाने थे. वरिष्ठ पत्रकार विजय वित्रेदी ने अपनी किताब- हार नहीं मानूंगा: एक अटल जीवन गाधा में एक ऐसे ही वाकया का जिक्र किया है.


वो दौर 1999 का था. राजनाथ सिंह यूपी बीजेपी इकाई के अध्यक्ष थे. लखनऊ में एक दिन सवेरे राजनाथ सिंह अपने घर पर पूजा कर रहे थे कि तभी प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी का फोन आया. राजनाथ की पत्नी ने उनसे इस फोन की जानकारी दी तो उन्होंने हाथ के इशारे से मना कर दिया. कुछ देर बाद फिर फोन आया तो राजनाथ सिंह ने बात की. वाजपेयी ने पूछा, ''क्या कर रहे हैं?'' राजनाथ सिंह ने जवाब दिया, ''पूजा में बैठा था.'' वाजपेयी ने चुटकी ली, ''बहुत बड़े पुजारी बन रहे हैं. दिल्ली कब आ रहे हैं? आकर फोन कर लीजिएगा.''



दिल्ली पहुंच कर राजनाथ सिंह से फोन किया तो आदेश मिला कि कल सुबह राष्ट्रपति भवन पहुंच जाएयेगा. राजनाथ ने पूछा, ''राष्ट्रपति भवन क्यों?'' तब वाजपेयी ने कहा, ''मूर्ख हैं क्या?'' अगले दिन राजनाथ सिंह केन्द्र में सड़क परिवहन में कैबिनेट मंत्री बना दिए गए.