जब पूर्व पीएम चंद्रशेखर ने लोकसभा में कहा था, 'सुषमा जी बोल रही हैं, उन्हें सुनना चाहिए'
प्रखर वक्ता और तेजतर्रार नेता की छवि रखने वाली सुषमा स्वराज अटल-आडवाणी युग के दिग्गज नेताओं में से एक रही हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र राजनीति से की
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नई दिल्ली: ये दुनिया नश्वर है और हरेक को यहां से जाना है. लेकिन दस्तूर यही है कि जब कोई इस दुनिया को अलविदा कहता है तो उसके जाने के बाद उसके अतीत के बहाने उसे याद किया जाता है. भारतीय राजनीति में सुषमा स्वराज के नाम का एक टिमटिमाता सितारा मंगलवार की रात हमेशा के लिए बुझ गया. उनका अचानक चले जाना राजनीति में एक शुन्य पैदा कर गया है, लेकिन उनके दुनिया छोड़ जाने के साथ ही आज उनके उन बीते पलों की खूब चर्चा हो रही है जब उन्हें विरोधियों ने भी गले लगाया, सम्मान दिया, इज़्ज़त बख्शी.
बात 23 साल पुरानी है. 11 जून 1996 में लोकसभा में विश्वास मत पर चर्चा हो रही थी. जब अविश्वास प्रस्ताव के लोकसभा में लाए जाने से पूर्व प्रधामंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर चुकी थी. लोकसभा को संबोधित करते हुए स्वाराज ने उन शासकों के नाम का जिक्र किया जिनकी योग्यता के बावजूद भी उन्हें सत्ता से दूर रखा गया.
सुषमा स्वराज ने सदन में कहा, ''त्रेतागुय में राम के साथ यही घटना घटी... द्वापर में यही घटना युधिष्ठिर के साथ भी घटी. सिर्फ एक मंथरा और एक शकुनी की वजह से ऐसा हुआ तो आज तो हमारे सामने तो कितनी मंथराएं और कितने शकुनी हैं. हम राज्य में बने कैसे रह सकते हैं.''
पूर्व विदेष मंत्री की इस भाषण पर विरोधियों ने हंगामा शुरू कर दिया. उस दौरान लोकसभा के इस सत्र को पीठासीन नीतीश कुमार संचालित कर रहे थे. सदन में हंगामे को देखते हुए उस समय बलिया लोकसभा सीट के तत्कालीन सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर खड़े हुए, उन्होंने नीतीश कुमार के सहारे पूरे सदन से कहा कि जब सुषमा स्वाराज बोल रही हैं तो उन्हें सुनना चाहिए.
चंद्रशेखर ने कहा, ''मैं यह नहीं जानता की सदम में कितने अध्यक्ष काम कर रहे हैं. मैं केवल आपसे यह निवेदन कर रहा था कि कोई भी सदस्य अगर बोल रहा हो... तो दूसरे सदस्यों को अनुमति देने चाहिए कि उन्हें सुनना चाहिए. मैं यह कहना चाहता हूं कि जब सुषमा जी बोल रही हैं तो उन्हें सुनना चाहिए, और जिनको उत्तर देना हो उन्हें उत्तर देना चाहिए.''
पूर्व प्रधानमंत्री के इस हस्तक्षेप के बाद सदन शांत हुई और सुषमा स्वाराज बड़े ही ओजस्वी स्वर में और सही तर्कों के साथ 26 मिनट का अपना भाषण समाप्त किया, अपने इस भाषण में उन्होंने विश्वासमत के विरोध में अपनी बात रखी.
देखें सुषमा स्वराज का वह भाषण
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