भगवान राम के जीवन के कई रूप हमारे सामने आते हैं. उनमें एक वक्त ऐसा भी आया जब भगवान राम को भी निराश होना पड़ा था. रावण से युद्ध लड़ने के लिए लंका जाने के लिए सेतु (पुल) का निर्माण किया गया. वाल्मिकी रामायण में लिखा है कि इस सेतु का निर्माण करने के दौरान समस्या तब शुरू हुई जब इसका निर्माण कार्य आरंभ हुआ. सेतु बनाने के लिए जो भी पत्थर समुद्र में डाले जाते सभी डूब जाते थे. ऐसे में वानर सेना में निराशा की भावना आने लगी और भगवान राम भी इससे अछूते नहीं रहे.


सागर से प्रार्थना


जब सेतु के लिए समुद्र में डाले जाने वाले पत्थर डूबने लगे तो भगवान राम ने सागर से प्रार्थना की. भगवान ने सागर से कहा कि वह पत्थरों को डूबने नहीं दे और बांधकर रखे. लेकिन सागर ने भगवान राम की प्रार्थना नहीं सुनी. इससे भगवान राम क्रोधित हो गए और उन्होंने सागर को सुखाने के लिए ज्यों ही अपने दिव्य वाण को धनुष पर चढ़ाया तो सागर भगवान राम के चरणों में आ गिरा और क्षमा मांगी.


भगवान राम ने भी सागर को क्षमा कर दिया. इसके बाद सागर ने भगवान राम को सेतु बनाने का तरीका बताया. सागर ने बताया कि आपकी वानर सेना में नल और नील नाम के दो वानर हैं. ये दोना वानर भगवान विश्वकर्मा के पुत्र हैं और विश्वकर्मा के समान ही शिल्पकला में निपुण हैं. ये दोनो पत्थर फेकेंगे तो डूबेगा नहीं और मैं पत्थर को लहरों में नहीं बहने दूंगा. इसके बाद नल और नील ने सेतु का निर्माण शुरू किया और यह सेतु पांच दिन में बनकर पूरा हो गया.


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