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जब गहलोत ने दिखाया जादू तो राजीव गांधी की कार दाहिने मुड़ने की जगह सीधे चली गई और बदल गई राजस्थाान के सीएम की कुर्सी

राजस्थान में साल 1986-87 में भयंकर सूखा पड़ा था. इसके बाद साल 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने अपनी कैबिनेट मीटिंग के लिए सरिस्का नेशनल पार्क को चुना था.

Rajasthan Political Crisis: कांग्रेस के दिल्ली दरबार और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच जो इस समय का घमासान चल रहा है, वह साल 1988 की याद दिलाता है. उस समय भी कुछ ऐसी ही सियासत देखने को मिली थी, जो इस समय सोनिया गांधी और गहलोत के बीच देखने को मिल रही है. कहा जाता है उस वक्त भी 87 विधायकों के समर्थन वाले दिग्गज के सामने 25 विधायकों के समर्थन वाले शख्स को उत्तराधिकारी बनाया गया था.

हरिदेव सिंह जोशी कांग्रेस के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और अशोक गहलोत राज्य में कांग्रेस प्रमुख थे. साल 1984-85 में राजीव गांधी की शानदार जीत हुई थी. इस जीत ने कई गैर राजस्थानी नेताओं को सांसद बनाया था. इसमें राजेश पायलट, सरदार बूटा सिंह, बलराम जाखड़ के अलावा कुछ अन्य नेता शामिल थे. इन सभी सांसदों ने अशोक गहलोत और शिवचरण माथुर के साथ मिलकर एक गुट बना लिया और हरिदेव सिंह जोशी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

इस घटना को पढ़ने के बाद आपको हो सकता है कि आज की राजस्थान की राजनीति की झलक मिले. राजस्थान में कांग्रेस से लोकसभा का एक भी सांसद नहीं है लेकिन राज्यसभा में 6 सांसदों में से 5 के ऊपर बाहरी का ठप्पा लगा हुआ है. इनमें डॉ. मनमोहन सिंह, रणदीप सिंह सुरजेवाला, मुकुल वासनिक, प्रमोद तिवारी और केसी वेणुगोपाल शामिल हैं.

टाइगर को मुख्यमंत्री खाना बहुत पंसद है

अब इसे दुर्भाग्य कहें या नियति, राजस्थान में साल 1986-87 में भयंकर सूखा पड़ा था. इसके बाद साल 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने अपनी कैबिनेट मीटिंग के लिए सरिस्का नेशनल पार्क को चुना था. ये मीटिंग जब खत्म हुई तो जयपुर के राजनीतिक और नौकरशाही हलकों में एक जोक बहुत फेमस हुआ था कि एक टाइगर दूसरे से कहता है कि जब खाने की बात आती है तो मुख्यमंत्री मुझे सबसे अच्छे लगते हैं. वो आलसी हैं, आसानी से खाए जा सकते हैं और उनके पास रीढ़ की हड्डी भी नहीं है.

राजीव गांधी का रॉन्ग टर्न

इंडिया टुडे में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, अनुभवी पत्रकार-संपादक शुभब्रत भट्टाचार्य, जो उस समय जयपुर में तैनात थे, याद करते हुए कहते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव सिंह जोशी को हटाने में अशोक गहलोत ने भूमिका निभाई थी. राजीव गांधी के निर्देशों के मुताबिक राज्य के मंत्री उनसे मिलने के लिए आधिकारिक गाड़ियों का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे. यहां तक कि राजीव गांधी भी अपनी गाड़ी खुद चलाते थे. राजीव गांधी जब अपनी एसयूवी चला रहे थे, जिसे एक ट्रैफिक कांस्टेबल ने सीधे जाने के बजाय लेफ्ट मुड़ने का संकेत दे दिया.

देखने और सुनने में तो ये एक मामूली गलती ही लगती है लेकिन कुछ लोगों का दावा है कि इसके पीछे जादूगर अशोक गहलोत की करतूत थी क्योंकि इस मोड़ पर मुड़ने के बाद राजीव की कार वहां जाकर रुकी जहां राज्य के मंत्रियों, अधिकारियों के साथ बाकी और लोगों की गाड़ी पार्क होती थी.

बोफोर्स और शाह बानो विवादों के साथ कई मोर्चों पर राजनीतिक रूप से जूझ रहे राजीव गांधी ने इस बात का संकेत देने की कोशिश की थी कि वो सन्यास ले लेंगे. उधर, राजस्थान में जिस तरह से जोशी सूखा और सती प्रथा को हैंडल कर रहे थे उससे भी राजीव खुश नहीं थे.

राजीव गांधी ने खो दिया आपा

जब उनकी गाड़ी सरिस्का पार्किंग एरिया में पहुंची तो राजीव ने देखा कि उनकी भी कार उस जगह पर पहुंच गई है जहां पर अधिकारियों और मंत्रियों की कार पार्क है. ऐसे में राजीव ने अपना आपा खो दिया और जोशी को फटकार लगा दी. जोशी को ये फटकार नागवार गुजरी और उन्होंने दोपहर के खाने का बहिष्कार कर दिया. मेजबान मुख्यमंत्री की गैरमौजूदगी को पीवी नरसिम्हा राव ने नोटिस किया. इसके बाद जोशी की जगह शिवचरण माथुर ने ले ली. जोशी को हटाना इतना आसान नहीं था क्योंकि वो 87 विधायकों के समर्थन का दावा करते थे. ये स्थिति आज की स्थिति से कुछ-कुछ मेल खाती दिखती है.

जोशी के पास वास्तव में बहुमत का समर्थन था लेकिन केंद्रीय नेतृत्व राजीव गांधी के निर्देश पर अड़ा रहा. जबकि माथुर के पास मात्र 25 विधायकों का ही समर्थन था लेकिन जोशी को हटाकर माथुर को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और जोशी असम के राज्यपाल बना दिए गए.

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