'मंदिर वहीं बनाएंगे': जब अंग्रेजों ने भी माना था कि अयोध्या में मस्जिद नहीं, मंदिर ही था
मीर बाकी ने बाबर को खुश करने के लिए अयोध्या में एक मस्जिद बनाई और उसे बाबर के नाम पर बाबरी मस्जिद नाम दे दिया. यह साल था 1528.
साल 1526 से अयोध्या में बाबरी मस्जिद का किस्सा शुरू होता है. तब दिल्ली पर सुल्तान इब्राहिम लोदी का शासन था. काबुल के शासक रहे जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर ने दिल्ली पर आक्रमण किया. पानीपत के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच जंग हुई. इसमें बाबर को जीत मिली. दिल्ली जीतने के बाद बाबर ने अवध का रुख किया. रास्ते में ही वो आगरा में रुक गया. अवध जीतने के लिए उसने ताशकंद के रहने वाले अपने एक जनरल मीर बाकी ताशकंदी को भेज दिया. मीर बाकी ताशकंदी ने बाबर के नाम पर अवध प्रांत पर कब्जा कर लिया. खुश होकर बाबर ने उसे अवध का गवर्नर बना दिया. इसके बाद मीर बाकी ने बाबर को खुश करने के लिए अयोध्या में एक मस्जिद बनाई और उसे बाबर के नाम पर बाबरी मस्जिद नाम दे दिया. यह साल था 1528.
यहीं से विवाद शुरू होता है. कहा जाता है कि मीर बाकी ने बाबर के कहने पर ही मस्जिद बनवाई थी और इसके लिए उसने अयोध्या में मौजूद मंदिर को तोड़ दिया था. ये विवाद साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा था. मुगलिया सल्तनत के बाद भारत पर अंग्रेजों का शासन आया. 31 दिसंबर, 1600 को भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन हुआ. कारोबार करने के लिए बनी इस कंपनी ने भारत पर अपना कब्जा कर लिया. लेकिन मस्जिद और मंदिर का विवाद चलता ही रहा. 1857 में भारत ने अपना पहला स्वतंत्रता संग्राम लड़ा. भले ही इसमें भारतीयों को कामयाबी नहीं मिल पाई, लेकिन इस गदर ने आजादी के लिए लोगों को प्रेरित कर दिया.
इस बीच 1857 के बाद के ही दिनों में अयोध्या में हनुमानगढी के महंत ने बाबरी मस्जिद के आंगन में एक राम चबूतरा बनवाया. तब बाबरी मस्जिद की देखरेख का जिम्मा मौलवी मुहम्मद असगर के पास था. उन्होंने मैजिस्ट्रेट से इसकी शिकायत की और कहा कि हनुमानगढ़ी के महंत मस्जिद के आंगन पर जबरन कब्जा करना चाहते हैं. दो साल के बाद अंग्रेज मैजिस्ट्रेट ने फैसला दिया. उसने मस्जिद में एक दीवार बनवा दी, जिसके एक तरफ हिंदू पूजा कर सकते थे और दूसरी तरफ मुस्लिम इबादत कर सकते थे. हालांकि मुस्लिम इस फैसले से खुश नहीं थे, तो उन्होंने फैजाबाद सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल की. एक के बाद एक कई याचिकाएं खारिज़ होती गईं और यथास्थिति बनी रही.
फिर आया साल 1885. तारीख थी 15 जनवरी. इस बार महंत रघुबर दास ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दाखिल की. जज थे हरिकिशन. मामला नंबर था 61/280. याचिका में महंत रघुबर दास ने दावा किया कि वो अयोध्या में राम जन्मस्थान के महंत हैं. उन्होंने राम चबूतरे को राम जन्मस्थान बताया और इस चबूतरे पर मंडप बनाने की मांग की. 24 फरवरी, 1885 को जज हरिकिशन ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि चबूतरा मस्जिद के पास है, लिहाजा वहां मंडप नहीं बन सकता है. महंत रघुबर दास ने जिला जज फैजाबाद कर्नल एफ.ई.ए. कैमियर की कोर्ट में अपील की. तारीख थी 17 मार्च, 1886. कर्नल एफ.ई.ए. कैमियर ने पहली बार माना कि ये जगह हिंदुओं की थी. लेकिन साथ ही ये भी कहा कि अब देर हो चुकी है. 356 साल पुरानी गलती को अब सुधारना मुमकिन नहीं है, लिहाजा यथास्थिति बरकरार रखें.
सन 1934 में बकरीद के आस-पास शाहजहांपुर इलाके में गोकशी की अफवाह पर दंगा भड़क गया. दंगे की आंच अयोध्या तक भी पहुंची. एक भीड़ ने मस्जिद पर हमला किया और उसको नुकसान पहुंचाया. तब शासन अंग्रेजों का था. मामला ज्यादा न बिगड़े, इसके लिए अंग्रेजी हुकूमत ने मस्जिद को फिर से बनवा दिया. इसी दौरान सन 1936 में उत्तर प्रदेश में यूपी मुस्लिम वक्फ ऐक्ट लागू हुआ. इस ऐक्ट के लागू होने के बाद वक्फ बोर्ड के कमिश्नर ने संपत्ति की जांच का आदेश दिया. ये तय किया जाना था कि संपत्ति किसकी है, हिंदुओं की या फिर मुस्लिमों की. जांच के बाद उत्तर प्रदेश मुस्लिम वक्फ बोर्ड ने तय किया कि ज़मीन मुस्लिमों की है और यहां पर सन 1528 में बाबर ने बाबरी मस्जिद बनवाई थी. 1936 से लेकर 22-23 दिसंबर 1949 तक यथास्थित बरकरार रही थी. 22-23 दिसंबर की दरमियानी रात ऐसा क्या हुआ था कि सबकुछ बदल गया, पढ़िए अयोध्या स्पेशल की अगली किस्त में.