नई दिल्ली: भारत में आजादी के बाद ऐसी बहुत कम शख्सियत हुई हैं जो आम जनता के हर वर्ग के बीच समान रूप से लोकप्रिय हों. ऐसी ही एक शख्सियत थे एपीजे अब्दुल कलाम यानी डॉक्टर अवुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम जो देश के 11वें राष्ट्रपति थे. उन्हें युवा डॉ कलाम और बच्चे प्यार से चाचा कलाम बुलाते थे.


एपीजे अब्दुल कलाम का शुरुआती जीवन


15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम को धनुषकोडी गांव में जैनुलाब्दीन कलाम के घर पर डॉ कलाम का जन्म हुआ. इनके पिता नाव बनाते थे और मछुआरों को नाव किराए पर दिया करते थे. अब्दुल कलाम के 5 भाई और 5 बहनें थे. उनके परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नही थी और उन्हें तंगहाली में गुजर-बसर करना पड़ता था. परिवार की खस्ता आर्थिक हालात के कारण अब्दुल कलाम अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए सुबह अखबार बेचा करते थे.  हालांकि ये कह सकते हैं कि नियति ने अब्दुल कलाम को इस देश की दशा और दिशा तय करने के लिए चुना था तो अब्दुल कलाम इन परेशानियों से कैसे हार जाते.


अब्दूल कलाम ने रामेश्वरम की तंगहाल गलियों से जिस तरह रायसीना हिल्स तक का सफर तय किया वो आज भी कई लोगों को रोमांच और आत्मविश्वास से भर देता है. फ्रेंच दार्शनिक ऐल्बर्ट कैमस ने एक बार कहा था "कोई जूनून बिना संघर्ष नहीं आता." ये बात डॉ कलाम के जीवन पर पूरी तरह से फिट बैठती है. ये डॉ कलाम की शख्सियत का ही जादू है कि आज भी भारत के कई लोगों के लिए पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम सबसे ज्यादा श्रद्धा के पात्र हैं.


इसलिए डॉ कलाम ने नहीं की शादी !


डॉ कलाम जीवन भर अविवाहित ही रहे. कलाम साहब ने शादी क्यों नहीं की यह सवाल कई बार उठा. पर वो इसे अक्सर इस सवाल को टाल जाया करते थे. 2006 में सिंगापुर में लेक्चर देते वक्त कलाम से जब ये सवाल पूछा गया तो तब उन्होंने कहा "मैं आशा करता हूं आप सब को अच्छा जीवन साथी मिले". इसके बाद एक अखबार ने लिखा कि डॉ कलाम ने एक विश्लेषक से बात करते हुए कहा "अगर मैं शादी कर लेता तो जीवन में मैं आज जो हूं उसका आधा भी नहीं होता और न ही देश के लिए इतना कुछ कर पाता जो मैने किया है."


जब कलाम को करना पड़ा आलोचना का सामना


डॉ कलाम ने 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. कलाम को भारत का सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति माना जाता है. पर राष्ट्रपति रहते हुए डॉ कलाम को दया याचिकाओं पर देरी करने के कारण आलोचना का भी सामना करना पड़ा था. बतौर राष्ट्रपति अपने कार्यकाल में डॉ कलाम ने उनके पास लंबित 21 दया याचिकाओं में से 20 पर कोई फैसला नहीं दिया था. जिसमें संसद के हमले के आरोपी अफजल गुरु की दया याचिका भी थी. कलाम ने अपने कार्यकाल में सिर्फ बलात्कारी धनंजय चटर्जी की याचिका पर कार्रवाई की जिसे बाद में फांसी की सजा दे दी गई. हालाकि, कलाम फांसी के सजा के खिलाफ थे. अपनी किताब 'टर्निंग पॉइंट्स' के हवाले से कलाम ने कहा था "राष्ट्रपति के रूप में मेरे लिए अदालतों के जरिए दिए गए मृत्युदंड के फैसलों पर विचार करना सबसे कठिन कामों में से एक था." डॉ कलाम ने कहा था मेरे लिए यह हैरान करने वाला था कि ज्यादातर सभी मामले जो मेरे पास लंबित थे उनमें सामाजिक और आर्थिक भेदभाव बहुत ज्यादा था.


साइंटिस्ट नहीं टीचर कहलाना पसंद करते थे डॉ कलाम


डॉ कलाम की सादगी और उनके हेयर स्टाइल की वजह से युवाओं के बीच वे काफी लोकप्रिय थे. कलाम भी खुद को साइंटिस्ट से ज्यादा टीचर कहलाना ही पसंद करते थे. कलाम अक्सर भारत की यूनिवर्सिटीज में जाकर छात्रों से बात करते थे और खुद को भी एक लर्नर ही बताते थे. 27 जुलाई 2017 को भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलांग में छात्रों को संबोधित करते हुए दिल का दौरा पड़ने के कारण उनकी मौत हो गई. डॉ कलाम जीवन भर खुद को एक शिक्षक ही मानते रहे और अंतिम वक्त में भी छात्रों के बीच ही उन्होंने इस दुनिया अलविदा कहा.


'चलो हम अपना आज कुर्बान करते हैं जिससे हमारे बच्चों को बेहतर कल मिले'. डॉ अब्दुल कलाम