नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव परिणाम की तस्वीर अब साफ हो गई है. आंकड़ों में थोड़ा बहुत बदलाव हो सकता है, लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि बंगाल में टीएमसी की सरकार भारी बहुमत से बनने जा रही है. बीजेपी जहां राज्य में 80 सीटों के करीब है तो वहीं टीएमसी के खाते में 200 से ज्यादा सीटें आती दिख रही हैं. इसके अलावा कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन को 2 सीटें मिलती हुई दिख रही है. अब राजनीति के जानकार बंगाल में टीएमसी की जीत और बीजेपी की हार का विश्लेषण कर रहे हैं.


पश्चिम बंगाल के पत्रकार अजय बोस का कहना है कि राज्य में बीजेपी के हार के 2 प्रमुख कारण हैं. पहला स्थानीय चेहरे की कमी और दूसरा टीएमसी को तोड़कर टीएमसी टू बनाना बीजेपी को भारी पड़ गया. अजय बोस कहते हैं कि बीजेपी के पास राज्य में वो चेहरा नहीं था, जो स्थानीय स्तर पर ममता बनर्जी पर भारी पर सके. बीजेपी ने लड़ाई तो अच्छे से लड़ी लेकिन स्थानीय नेतृत्व के मसले पर उठाये गए सवालों का उसके नेताओं के पास कोई जवाब नहीं होता था. 


स्थानीय चेहरे की कमी: बीजेपी के पास स्थानीय नेताओं में दिलीप घोष, बाबुल सुप्रियो, मुकुल घोष, आदि नेता हैं. लेकिन ये नेता इतने बड़े नहीं हैं जो राजनितिक रूप से ममता बनर्जी के कद का मुकाबला कर सकें. हालांकि प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद दिलीप घोष ने राज्य सरकार के खिलाफ काफी संघर्ष किया. बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमले को लेकर भी संघर्ष किया लेकिन अपनी बदजुबानी के कारण वे ममता बनर्जी का विकल्प बनने में नाकामयाब रहे. शुभेंदु अधिकारी, राजीव बनर्जी, जीतेन्द्र कुमार जैसे नेताओं ने चुनाव से ऐन पहले पाला बदला लेकिन बीजेपी को फायदा नहीं सके.


TMC नेताओं को अपने पाले में लाना: अजय बोस कहते हैं कि बीजेपी को बड़ी संख्या में TMC नेताओं को अपने पाले में लाने का खामियजा भुगतना पड़ा. उनका कहना है कि TMC नेताओं के आने से लोगों में यह संदेश गया कि बीजेपी के पास नेताओं की कमी है और दूसरे दलों से उसे नेताओं को इम्पोर्ट करना पड़ रहा है. कई जगन नामांकन के दिन भी बीजेपी ने TMC नेताओं को अपने पाले में करने में सफलता हासिल की, लेकिन यही उसे आगे चलकर भारी पड़ गया.


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