भारत में बेटियों की सुरक्षा हमेशा से ही सबसे गंभीर मुद्दा रहा है. इसे लेकर कई कानून भी बनाए गए हैं, लेकिन बावजूद इसके देश में लड़कियों के लापता होने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. पिछले सप्ताह संसद में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने  इस पर आंकड़ा पेश किया है जिसके अनुसार भारत में साल 2019 से 2021 यानी दो साल के बीच 13.13 लाख से ज्यादा लड़कियां और महिलाएं लापता हुईं हैं. अब ये महिलाएं कहां गई, इनके साथ क्या हुआ, इसके बारे में किसी को कुछ भी नहीं पता है. 


इन लापता लड़कियों में 18 साल से कम और उससे ज्यादा दोनों उम्र की महिलाएं शामिल है. आंकड़ों के अनुसार जहां 2,51,430 लापता लड़कियों की उम्र 18 साल से कम है तो वहीं 10,61,648 महिलाओं की उम्र 18 साल से ज्यादा है. 


सबसे ज्यादा इन राज्यों की महिलाएं हुईं लापता 


न्यूज एजेंसी के अनुसार संसद में जिस डाटा को पेश करते हुए महिलाओं के लापता होने का मुद्दा उठाया गया था वह डाटा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) का है. एनसीआर के आंकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा महिलाएं मध्य प्रदेश से लापता हुई हैं. एमपी के बाद लिस्ट में दूसरा स्थान बंगाल का है. इन राज्यों के अलावा राजधानी दिल्ली में भी लड़कियों और महिलाओं के गायब होने के कई मामले सामने आए हैं.


मध्य प्रदेश: आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में पिछले 2 सालों में यानी 2019 से लेकर 2021 के बीच 1,60,180 महिलाएं और 38,234 लड़कियां लापता हुई है. 


पश्चिम बंगाल: पश्चिम बंगाल में इन्हीं दो सालों के बीच 1,56,905 महिलाएं और 36,606 लड़कियां लापता हुई है. 


महाराष्ट्र: वहीं दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र में इस अवधि में 1,78,400 महिलाएं और 13,033 लड़कियां लापता हो गई है.


ओडिशा: ओडिशा में पिछले तीन सालों में 70,222 महिलाएं और 16,649 लड़कियां गायब हुई हैं. 


छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ की बात करें तो इस राज्य में 49,116 महिलाएं और 10,817 लड़कियों के गायब होने की बात कही गयी है. 


राजधानी दिल्ली का हाल बेहाल 


आंकड़ों की मानें तो केंद्र शासित प्रदेशों में राजधानी दिल्ली इस लिस्ट में सबसे ऊपर है. यहां 2019 और 2021 के बीच 61,054 महिलाएं और 22,919 लड़कियां लापता हुई हैं. 


वहीं जम्मू और कश्मीर में पिछले दो सालों में 8,617 महिलाएं और 1,148 लड़कियां लापता हो गईं.


महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई पहल की गई


इन आंकड़ों के पेश किए जाने के बाद सरकार ने संसद में कहा कि भारत में महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा को लेकर कई कानून बनाए गए हैं. देश में हो रहे यौन अपराध को रोकने के लिए पुराने कानूनों में संशोधन भी किया गया और उसे कठोर भी बनाया गया है. इसके अलावा देश में 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ रेप की घटना में दोषी को मृत्युदंड सहित कई कठोर दंडात्मक प्रावधान भी तय किए गए हैं.


नहीं बदल रही महिलाओं की स्थिति 


16 दिसंबर 2012 को दिल्ली के निर्भया कांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. इस घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कई कठोर कानून बनाए गए, लेकिन सवाल ये है कि क्या कानूनों के बनाए जाने के बाद भी देश में महिलाओं की स्थितियां सुधरी हैं या महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों में कोई कमी नजर आई है. तो जवाब है नहीं, भारत में महिलाएं आज से 10 साल पहले भी यौन अपराधियों का शिकार बनती रही है और आज भी हालात कुछ बहुत ऐसे ही हैं. देश में छेड़छाड़, अपहरण और दुष्कर्म जैसे मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. 


इसी साल मार्च के महीने में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की नेता फौजिया खान ने देश में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों पर विवरण मांगा था और केंद्र इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कैसे कदम उठा रहे हैं उसे लेकर सवाल किया था.


इस सवाल का जवाब में केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि पिछले पांच सालों में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराध के लगभग 1 करोड़ मामले दर्ज किए गए हैं. 


महिलाओं को इन कानूनों की जानकारी जरूरी 


देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हर महिलाओं और लड़कियों को कुछ कानूनों के बारे में जानना बेहद जरूरी है. इन कानूनों में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, महिला सुरक्षा कानून, पॉक्सो एक्ट कानून शामिल है.  इन कानूनों के बारे में डिटेल में जानकारी आपको बताते हैं.


राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम


राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम भारत सरकार का एक  सांविधिक निकाय है, जो देश में महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देता है. इस आयोग का गठन जनवरी 1992 में भारतीय संविधान के प्रावधानों के तहत किया गया था.


राष्ट्रीय महिला आयोग का उद्देश्य देश में महिलाओं के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करना और महिलाओं से जुड़े मुद्दों  पर कानूनी सहायता देना है. इसके अलावा दहेज, राजनीतिक मामले, धार्मिक मामले, नौकरियों में महिलाओं के समान प्रतिनिधित्व और वर्क प्लेस में महिलाओं के शोषण जैसे अलग अलग विषय भी का अवलोकन भी इनके दायरे में शामिल है. राष्ट्रीय महिला आयोग भारत में महिलाओं के साथ हो रही हिंसा, भेदभाव, उत्पीड़न की शिकार या अपने अधिकारों से वंचित महिलाओं की शिकायत भी स्वीकार करता है और मामलों की जांच भी करता है. 


महिला सुरक्षा कानून


साल 2016 के दिसंबर महीने में हुए निर्भया कांड के बाद से भारत में यौन शोषण से जुड़े कानून और भी सख्त किए गए है ताकि ऐसे मामले के दोषियों को ज्यादा से ज्यादा सजा मिल सके. पहले अगर अपराध करने वाले व्यक्ति की उम्र 18 साल से कम होती थी तो उसे माइनर केस मान लिया जाता था और उस मामले को जुवेनाइल जस्टिस के अंतर्गत भेज दिया जाता था. लेकिन निर्भया केस के बाद इस कानून में बदलाव किए गए. अब अपराधी की उम्र 16 से 18 साल के बीच है, तो उसे भी सख्त सजा सुनाई जा सकती है.


इसके अलावा ने साल 2016 से पहले अगर कोई व्यक्ति महिला का पीछा करता था, तो उसे अपराध नहीं माना जाता था, लेकिन 2016 के बाद किसी भी महिला का पीछा करना कानूनी अपराध में आने लगा. महिला सुरक्षा कानून के तहत महिला अब ऐसे व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है, जो उसका पीछा करता है. 


पॉक्सो एक्ट कानून


पॉक्सो का मतलब है प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट. इस कानून को बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है. पॉक्सो एक्ट को साल 2012 में लाया गया था. इसके तहत बच्चों के साथ होने वाला यौन शोषण एक अपराध है और यह कानून 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों, दोनों पर लागू होता है. 


दहेज निषेध अधिनियम, 1961


इस अधिनियम के अनुसार शादी के वक्त के वक्त लड़की या उसके परिवार से दहेज लेना दंडनीय अपराध है. इस अधिनियम के बाद महिलाएं दहेज प्रथा के अनुसार खुलकर शिकायत दर्ज करवा सकती हैं. 


समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976


इस अधिनियम के तहत किसी भी वर्क प्लेस पर एक ही काम के लिए महिला और पुरुष दोनों का मेहनताना भी एक ही जैसा मिलना चाहिए यानी यह पुरुषों और महिला श्रमिकों को समान पारिश्रमिक के भुगतान का प्रावधान करता है. इस अधिनियम को 8 मार्च 1976 में पास किया गया था.