धार्मिक कार्यक्रम के लिए सरकारी जमीन के इस्तेमाल हो या नहीं, अब संविधान पीठ करेगी सुनवाई
ज्योति जागरण मंडल नाम की संस्था ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.
नई दिल्ली: क्या सरकारी जमीन पर राम लीला, माता की चौकी या दूसरे धार्मिक कार्यक्रम हो सकते हैं?सुप्रीम कोर्ट ने ये सवाल संविधान पीठ को सौंप दिया है. दिल्ली के एक पार्क में जागरण की इजाज़त मांग रहे संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये आदेश दिया है.
ज्योति जागरण मंडल नाम की संस्था ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. उसका कहना था कि वो लंबे समय से मायापुरी इलाके के चंचल पार्क में जागरण और माता की चौकी का आयोजन करता आ रहा है. लेकिन NGT ने इस साल इससे रोक दिया.
याचिकाकर्ता के वकील फ़ुजैल अय्यूबी ने बताया कि NGT ने इससे पहले उसी इलाके के पार्क में रामलीला और दुर्गा पूजा जैसे आयोजन की इजाज़त दी थी. इस पर नगर निगम ने भी एतराज़ नहीं किया था. लेकिन उनके हर साल होने वाले माता की चौकी कार्यक्रम को नगर निगम ने मंज़ूरी नहीं दी. NGT ने भी ये कहते हुए उनकी याचिका ठुकरा दी कि
पार्क की हरियाली इलाके के लिए फेफड़े की तरह काम करती है. वहां ऐसे कार्यक्रम की इजाज़त नहीं दी जा सकती.
सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस रोहिंटन नरीमन और इंदु मल्होत्रा ने कहा, "आप कह रहे हैं कि कुछ धार्मिक आयोजनों को इजाज़त मिली, आपको नहीं मिली. लेकिन सवाल ये है कि भारत जैसे सेक्युलर देश में सरकारी जमीन का इस्तेमाल धार्मिक कार्यक्रमों के लिए हो सकता है?"
कोर्ट ने माना कि मसला सिर्फ एक कार्यक्रम के आयोजन का नहीं है. इस मामले में संवैधानिक सवाल शामिल है. इसलिए, बेहतर है कि इस पर संविधान पीठ सुनवाई करे. 2 जजों की बेंच ने चीफ जस्टिस से आग्रह किया कि वो सुनवाई के लिए 5 जजों की संविधान पीठ की गठन करें.