नई दिल्ली: इन दिनों देश में CAB यानि सिटिजन अमेंडमेंट बिल की बहुत चर्चा है. राजनीतिक गलियारों में इसी की बातें की जा रही हैं. सरकार जहां इसके लिए बेहद प्रतिबद्ध है और लोकसभा व राज्यसभा से इसे पास करा चुकी है वहीं विपक्षी दल इसे संविधान के मूल चरित्र के खिलाफ बता रहे हैं. पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों में इस बिल का भारी विरोध हो रहा है और देश के कुछ राज्य इसे लागू करने से मना कर चुके हैं.
क्या है CAB?
कैब यानि नागरिकता संशोधन बिल, भारत के सिटिजनशिप एक्ट 1955 में बदलाव करेगा. इसके कारण पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश आदि से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भाग कर आए गैरमुस्लिमों को भारत की नागरिकता दी जाएगी. इस बिल में मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता की बात नहीं की गई है और यही बात विरोध का कारण है.
विपक्ष कर रहा है विरोध
विपक्ष इस बिल को लेकर सरकार का विरोध कर रहा है. देश के अलग अलग इलाकों में भी बिल के खिलाफ जनाक्रोश देखने को मिल रहा है. कल ही दिल्ली के जामिया विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी इस बिल के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया. विपक्षी दल इस बिल को बांटने वाला बिल करार दे रहे हैं और सरकार पर निशाना साध रहे हैं.
इन राज्यों ने किया लागू करने से इंकार
केरल और पंजाब से खुले तौर पर कैब को लागू करने से इंकार कर दिया है. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि ये विधेयक भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के खिलाफ है और इसी कारण उनकी सरकार इस बिल को पंजाब राज्य में लागू नहीं करेगी.
केरल के सीएम पिनरई विजयन ने भी इस पर अपना रुख साफ करते हुए ट्वीट किया कि उनका राज्य इसे नहीं अपनाएगा. उन्होंने कहा कि कैब भारत के सेकुलर और लोकतांत्रिक चरित्र पर हमला है. धर्म के आधार पर नागरिकता देना संविधान की अवमानना है. ये हमारे देश को पीछे धकेलेगा.
इनके अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इस बिल के खिलाफ हैं और कह चुकी हैं कि कैब को वहां लागू नहीं किया जाएगा. महाराष्ट्र में मंत्री बाला साहेब थोराट और एमपी के सीएम कमलनाथ ने भी इशारों में कहा कि कैब को राज्य में लागू नहीं किया जाएगा.
जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है उन्होंने पार्टी नेतृत्व की बात मानने को कहा है. छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि पार्टी जो भी स्टैंड लेगी वो उसके साथ रहेंगे. वहीं राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार बिल का विरोध तो कर रही है लेकिन ये साफ नहीं किया है कि राजस्थान में बिल को लागू किया जाएगा या नहीं.
कितना विरोध कर सकते हैं राज्य
जानकारी के मुताबिक नागरिकता के लिए जिलाधिकारी को अर्जी दी जाती है जो अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार के माध्यम से केंद्र सरकार को भेजते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में 90 दिन का अधिकतम वक्त लग सकता है. अगर राज्य सरकार अर्जी को आगे नहीं भेजती तो याचिकाकर्ता सीधे केंद्र सरकार के पास पहुंच सकता है. अब ऐसे में देखना ये होगा कि राज्य सरकारें कैब का कितना विरोध कर पाएंगी.