चीन: भारत का द्विपक्षीय व्यापार हाल के दिनों में एक चर्चित विषय है. चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की अपील हो रही है, तो वहीं सरकार ने एमटीएनएल एवं बीएसएनएल के उपकरण चीन से नहीं खरीदने का निर्णय लिया है. पूरे देश में चीनी वस्तुवों के उपयोग के खिलाफ एक मुहिम चल रही है और लोग मोबाइल से चीनी एप हटाने की अपील कर रहें हैं.


ऐसे में आइये समझते हैं चीन, भारत के व्यापार में कहां तक घुसा हुआ है. आयात निर्यात की बात करें तो हमारा निर्यात चीन को कम और आयात ज्यादा है चीन से. भारत अपने कुल निर्यात का 9 प्रतिशत और कुल माल आयात का 18 प्रतिशत चीन से करता है. इससे यह समझा जा सकता है कि उसके साथ हमने अपनी व्यापारिक निर्भरता कितनी विकसित कर ली है. भारत - चीन के ट्रेड में नफा-नुकसान की समग्रता में देखें तो नफे में चीन और नुकसान में भारत है.


भारत और चीन के व्यापारिक संबंधों का विश्लेषण करने वाले आर्थिक विश्लेषक सीए पंकज जायसवाल के मुताबिक, सिर्फ बिजनेस टू उपभोक्ता (B2C) ही नहीं, चीन इंडिया में बिजनेस टू बिजनेस (B2B) मॉडल पर भी बड़ा कारोबार करता है. बिजनेस टू बिजनेस (B2B) में कच्चे माल, एपीआई, बेसिक रसायन, कृषि-मध्यवर्ती वस्तुएं, ऑटो पार्ट्स एवं ड्यूरेबल्स, कैपिटल गुड्स एक सीमा तक चीन से आयात पर निर्भर है.


ध्यान देने वाली बात है, अपने सेगमेंट के कुल आयात में ऑटो कम्पोनेंट 20 प्रतिशत और इलेक्ट्रॉनिक आइटम 70 प्रतिशत तक चीन से आते हैं. इसी तरह, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स का 45 प्रतिशत, एपीआई का 70 प्रतिशत और आयातित 40 प्रतिशत चमड़े का सामान चीन से आता है. अतः यदि बैन करना है तो बिजनेस टू उपभोक्ता (B2C) आइटम वाली चीजों में चीन से आयात को बैन कर या उनपर आयात शुल्क बढ़ाने से घरेलु उद्योगों को तत्काल राहत मिलेगी, क्योंकी चीन के वस्तुओं की कीमत उपभोक्ताओं को भारतीय कम्पनियों के उत्पादों की अपेक्षा आधे से भी कम रेट पर मिलती हैं.


यही कारण है की कई सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग भारत में बंद हो गए क्योंकि इनकी उत्पाद लागत चीन की बिक्री मूल्य से भी ज्यादा आती थीं. हां (B2B) में बैन आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी एवं केस टू केस बेसिस पर करना पड़ेगा, ताकि भारत का मैन्युफैक्चरिंग अचानक से प्रभावित ना हो.


आर्थिक विश्लेषक सीए पंकज जायसवाल के मुताबिक, "भारत और चीन के ट्रेड में नफा-नुकसान में भारत को नुकसान ज्यादा है. यह सिर्फ चालू खाते का घाटा बढ़ने और विदेशी मुद्रा का भंडार घटने को लेकर ही नहीं है. चीन से उपभोक्ता वस्तुओं के निर्यात ने यहां के MSME सेक्टर की रीढ़ तोड़ने का काम किया है. बड़े उद्यम तो किसी तरह बच गए, लेकिन छोटी पूंजी से उद्योग चलाने वालों पर बड़ा असर पड़ा, उनके उत्पाद महंगे और चीन के सस्ते होने पर बाजार के व्यापारी चीन का माल ही खरीदते थे. इस प्रकार यहां का व्यापारी उद्यमी बनने की बजाय मजबूरी में ट्रेडर बनता था. साथ ही वस्तु मूल्य के रूप में जो मूल्य अंततः चीन जाता था वह एक तरह से वहां के उद्योगों की लागत लाभ और चीन सरकार का टैक्स भी सब भारतीय उपभोक्ताओं से ही वसूला जाता था."


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