कौन हैं भारत की अक्षता कृष्णमूर्ति, जिन्होंने NASA के मंगल मिशन में रोवर चलाकर रच दिया इतिहास, पढ़ें उनकी कहानी
अक्षता कृष्णमूर्ति ने अपनी जर्नी शेयर करते हुए बताया कि कई बार लोगों ने उनसे कहा कि उन्हें नासा जाने का सपना छोड़कर किसी और फील्ड में काम करना चाहिए क्योंकि वह जो करना चाहती हैं वो नामुमकिन है.
बचपन में हम बहुत से सपने देखते हैं कि बड़े होकर ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे या फिर डॉक्टर, इंजीनियर, एक्टर या एस्ट्रोनोट बनने के सपन देखते हैं. बड़े होकर किसका सपना सच होता है और किसका नहीं, ये उसकी मेहनत और किस्मत पर निर्भर करता है. भारत की अक्षता कृष्णमूर्ति ने भी ऐसा ही सपना देखा था, जो सच हो गया है. अक्षता ने बचपन में फैसला कर लिया था कि उन्हें बड़े होकर एस्ट्रोनॉट बनना है और अमेरिकी स्पेस एजेंसी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) में काम करना है.
मस्कट इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से नासा पहुंचने की डॉक्टर अक्षता कृष्णमूर्ति की स्टोरी बेहद प्रेणादायक है. 13 सालों से नासा में काम कर रहीं अक्षता बताती हैं कि उन्हें भी अमेरिकी स्पेस एजेंसी तक पहुंचने में कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ा. कई बार लोगों की बातों ने उनका मनोबल भी तोड़ा, लेकिन वह अपने लक्ष्य को लेकर क्लियर थीं कि उन्हें नासा में काम करना है. उनकी पॉजिटिविटी और मेहनत का ही नतीजा है कि आज वह उस मुकाम पर पहुंच चुकी हैं, जहां पहुंचने का सपना लाखों-करोड़ों लोग देखते हैं.
नासा के मंगल मिशन में चलाया रोवर
अक्षता की उपलब्धि सिर्फ यही नहीं है कि वह आज नासा में काम कर रही हैं. उन्होंने नासा के मंगल मिशन में भी अहम भूमिका निभाई है. अक्षता कृष्णूर्ति ने मंगल ग्रह रोवर पर चलाया और ऐसा करने वाली वह भारत की पहली महिला बन गई हैं. मंगल मिशन के तहत नासा के साइंटिस्ट मंगल ग्रह पर नमूने इकट्ठा करने गए थे. अक्षता को भी मिशन के लिए चुना गया और यहां रोवर चलाकर उन्होंने कीर्तिमान रच दिया. बताया गया कि इन नमूनों को पृथ्वी पर लाया जाएगा. अक्षता ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर अपनी यह स्टोरी शेयर की है.
लोगों ने तोड़ा मनोबल
अपने पोस्ट में अक्षता कृष्णमूर्ति ने लिखा, 'मैं 13 साल पहले अमेरिका में नासा के साथ काम करने आई थी. जमीन और मंगल ग्रह पर विज्ञान और रोबोटिक ऑपरेशन की अगुवाई करने के सपने के अलावा मेरे पास कुछ नहीं था. मेरी जिन लोगों से मुलाकात हुई थी, उन्होंने कहा कि मेरे लिए यह नामुमकिन है क्योंकि मेरे पास विदेशी वीजा है इसलिए उन्हें प्लान बी तैयार रखना चाहिए या फिर अपना फील्ड ही चेंज कर देना चाहिए.' हालांकि, अक्षता अपने सपने को लेकर इतनी ज्यादा पॉजिटिव थीं कि उन्होंने किसी की बात नहीं सुनी.
कौन हैं अक्षता?
अक्षता भारत की नागरिक हैं. मस्कट इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से पीएचडी करने के बाद उनका नासा के लिए सेलेक्शन हो गया. नासा में जाने का मौका उन्हें इतनी आसानी से नहीं मिला. इसके लिए उन्हें सैकड़ों लोगों से बात की ताकि उन्हें नासा में फुल टाइम काम करने का मौका दिया जाए. अक्षता अपनी इस उपलब्धि पर कहती हैं कि अपने सपने को पूरा करने के लिए खुद पर विश्वास रखना और सपना पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहने की जरूरत होती है.
स्पेस मैराथन में भाग लेने वाली पहली महिला थीं सुनीता विलियम्स
भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक सुनीता विलियम्स इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में 6 महीने रहकर रिकॉर्ड बनाने वाली पहली महिला थीं. 9 दिसंबर 2006 से 22 जून 2007 तक चले इस अभियान में नासा की एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स ने 29 घंटे 17 मिनट की चार स्पेस वॉक करके विश्व रिकॉर्ड बनाया था. 14 जुलाई, 2012 को उन्होंने फिर से अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी और 18 नवंबर 2012 को वापस लौटीं. इस अभियान के दौरान सुनीता विलियम्स ने 50 घंटे 40 मिनट की स्पेस वॉक करने का रिकॉर्ड बनाया था. इस तरह दो अंतरिक्ष यात्राओं में वह स्पेस में करीब 322 दिन गुजार चुकी हैं.
हरियाणा की बेटी कल्पना चावला ने जब भरी अंतरिक्ष की उड़ान
अंतरिक्ष में कीर्तिमान रचकर भारत का नाम रोशन करने वाली बेटियों में एक नाम कल्पना चावला का भी है. साल 1996 में नासा ने कल्पना चावला की काबिलियत देखते हुए स्पेस मिशन के लिए उन्हें विशेषज्ञ और प्राइम रोबोटिक आर्म ऑपरेटर के रूप में नियुक्त कर लिया. अगले ही साल 19 नवंबर, 1997 को उन्होंने अमेरिका के कैनेडी स्पेस सेंटर से कोलंबिया स्पेस शटल में अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी. इस मिशन के दौरान कल्पना चावला ने अंतरिक्ष में 15 दिन, 16 घंटे का वक्त बिताया और 5 दिसंबर, 1997 को शटल धरती पर वापस लौट आया.
6 साल बाद उन्होंने फिर से अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी, जो उनकी आखिरी उड़ान थी. यह मिशन कुछ दिक्कतों की वजह से 2 साल से टल रहा था, लेकिन 2003 में मिशन के तहत एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष पहुंचे. इस मिशन में 7 यात्री अंतरिक्ष पहुंचे थे. 15 दिन, 22 घंटे और 20 मिनट का मिशन पूरा करने के बाद जब अंतरिक्ष यात्री धरती पर वापस लौट रहे थे तभी उन्हें जोर से झटका लगा. इसके बाद उनको सांस लेने में दिक्कत होने लगी और सब बेहोश हो गए. उनके शरीर का तापमान बढ़ने से खून उबलने लगा और शटल में ब्लास्ट हो गया. यान में सवार सभी अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई.