संघ के करीबी, शिवाजी पर विवादित टिप्पणी; शाह से मार्गदर्शन मांगने वाले महाराष्ट्र के राज्यपाल कोश्यारी कौन हैं?
संघ में पकड़ होने की वजह से ही बीजेपी ने कोश्यारी को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया. कोश्यारी अपने विवादित बयानों की वजह से बीजेपी की कई बार मुश्किलें भी बढ़ा चुके हैं.
शिवाजी महाराज को पुराने जमाने का आइकॉन बताने वाले महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी एक बार फिर सुर्खियों में हैं. कोश्यारी ने गृहमंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखी है. उन्होंने इस चिट्ठी में शाह से मार्गदर्शन करने के लिए कहा है.
कोश्यारी की चिट्ठी आने के बाद विपक्षी दल राज्यपाल की गरिमा को लेकर सवाल उठा रहे हैं. कोश्यारी को 2019 में महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया था.
चिट्ठी में कोश्यारी ने क्या लिखा है?
6 दिसंबर को 2 पन्नों की एक चिट्ठी कोश्यारी ने शाह को लिखी है. उन्होंने इसमें कहा है कि मैं आपके कहने पर राज्यपाल बना. पिछले दिनों मेरे एक बयान को विवादित बनाकर पेश किया जा रहा है.
मैं शिवाजी महाराज के अपमान के बारे में सोच भी नहीं सकता हूं. फिर भी लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. मैं आपसे मार्गदर्शन चाहता हूं कि ऐसी स्थिति में क्या करूं?
इस विवाद में अब तक क्या-क्या हुआ?
- शिवसेना सांसद संजय राउत ने इसे महाराष्ट्र का अपमान बताया. राउत ने कहा कि बीजेपी ने राज्यभवान को पार्टी का मुख्यालय बना दिया है.
- पुणे समेत कई जिलों में राज्यपाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ. बीजेपी सांसद उदयराज भोसले भी इसमें शामिल हुए.
- विरोध देखते हुए कोश्यारी के खिलाफ शिंदे गुट ने भी मोर्चा खोल दिया. विधायक संजय गायकवाड़ ने कहा कि राज्यपाल को कुर्सी छोड़ देनी चाहिए.
कोश्यारी की राजनीति कहानी...
कोश्यारी का जन्म 1942 में अब के उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में हुआ था. 21 साल की उम्र में कोश्यारी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) के पूर्णकालिक सदस्य बन गए. आपातकाल के दौरान वे करीब 2 सालों तक जेल में बंद भी रहे.
कोश्यारी पहली बार 1997 में पहली बार विधानपरिषद् के जरिए सदन में पहुंचे. 2000 में जब उत्तराखंड राज्य अलग बना तो उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया.
राजनीतिक प्रयोग में सीएम की कुर्सी मिली
उत्तराखंड अलग करने के बाद बीजेपी ने नित्यानंद स्वामी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था. हालांकि, एक साल के भीतर ही पार्टी को हार का डर सताने लगा. 2002 में राज्य के चुनाव होने थे, ऐसे में पार्टी ने मुख्यमंत्री बदलने का प्रयोग किया.
साल 2001 में नित्यानंद स्वामी को हटाकर कोश्यारी को सीएम की कुर्सी मिली. कोश्यारी के साफ-सुथरी छवि के जरिए पार्टी सत्ता में वापसी की कोशिश में लगी थी. हालांकि, 2022 के चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.
75+ फॉर्मूला पर बड़ा ऐलान कर दिया था
बीजेपी में मोदी-शाह युग की शुरूआत हो रही थी. 2017 के आसपास लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे सीनियर नेताओं को किनारे लगाया जा रहा था. माहौल को भांपते हुए कोश्यारी ने 2019 में चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया.
इसका फायदा भी उन्हें मिला और 2019 चुनाव के बाद उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया.
विवादों में कोश्यारी...
1. फडणवीस को तड़के सुबह सीएम की शपथ दिला दी- 2019 में महाराष्ट्र में चुनाव के बाद बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से दूर थी. सहयोगी शिवसेना ने सीएम कुर्सी पर दावा ठोक दिया. संकट को देखते हुए महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. बीजेपी-शिवसेना के बीच अनबन के बीच शरद पवार ने कांग्रेस के साथ मिलकर शिवसेना को सीएम की कुर्सी ऑफर कर दिया.
दोनों के बीच सरकार बनाने को लेकर बातचीत चल रही थी. इसी बीच शरद पवार के भतीजे और एनसीपी विधायक दल के नेता अजीत पवार बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस से मिले. फडणवीस-अजीत बातचीत के बाद राजभवन गए और सरकार बनाने का दावा ठोक दिया. देर रात राजभवन भी सक्रिय हो गया और राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश कर दी.
3 बजे रात में राष्ट्रपति शासन हटते ही राज्यपाल ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. हालांकि, फडणवीस बहुमत साबित नहीं कर पाए और सरकार गिर गई. इस विवाद में राज्यपाल की भूमिका पर खूब सवाल उठे.
2. मंदिर खोलने को लेकर सीएम को चिट्ठी लिखी- कोरोना की दूसरी लहर में महाराष्ट्र समेत पूरे देश में लॉकडाउन लागू - था. केंद्र ने छूट देने का अधिकार राज्यों को दे दिया. इसी बीच महाराष्ट्र में मंदिर खोलने की मांग तेज हो गई. राज्यपाल कोश्यारी भी इस विवाद में कूद पड़े और सरकार को चिट्ठी लिख दी.
कोश्यारी के इस चिट्ठी पर भी खूब विवाद हुआ. हालांकि, कोश्यारी इसका हमेशा बचाव करते रहे.
अब जाते-जाते कोश्यारी का 2 विवादित बयान भी पढ़ लीजिए....
- सावित्रीबाई की शादी दस साल की उम्र में कर दी गई थी. उनके पति ज्योतिराव उस वक्त 13 साल के थे. अब सोचिए, शादी के बाद लड़का और लड़की क्या कर रहे होंगे? वे क्या सोच रहे होंगे?
- अगर मुंबई और ठाणे शहर से गुजराती और राजस्थानी समाज के लोगों को निकाल दिया जाए तो फिर यहां कुछ नहीं बचेगा. देश की आर्थिक राजधानी होने का तमगा भी मुंबई से छिन जाएगा.