कर्नाटक विधानसभा चुनाव अपने चरम पर है. कांग्रेस की ओर से रणनीति बनाने के लिए पांच नेता लगाए गए हैं. वहीं बीजेपी की ओर से 'चाणक्य' की भूमिका राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष निभा रहे हैं.


साल 2019 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री और लिंगायत समुदाय के बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा नया मंत्रिमंडल बना रहे थे तो उसमें तीन नए डिप्टी सीएम शामिल किए गए. ये बीजेपी की ओर से एक बड़ा दांव था क्योंकि इसमें दक्षिण के इस राज्य में जातियों के समीकरण का पूरा चक्रव्यूह तैयार किया गया था.


इन नेताओं में गोविंद करजोल (दलित), लक्ष्मण सावदी (लिंगायत) और अश्वत नारायण (वोकालिंगा) समुदाय से थे. तीनों ही जातियां कर्नाटक में अहम हैं और किसी भी चुनाव को इनके बिना नहीं जीता सकता था. 


दरअसल तीन-तीन डिप्टी सीएम बनाने के पीछे राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष की ही भूमिका थी. हालांकि इसका फायदा उस समय बीजेपी को नहीं मिला लेकिन यह एक ऐसा समीकरण था जो कर्नाटक की राजनीति के लिए अब तक सबसे बड़ा दांव साबित होने वाला था. इसके साथ ही बीएल संतोष राज्य में बीएस येदियुरप्पा से इतर बीजेपी के लिए एक नया नेतृत्व भी खड़ा करना चाहते थे.


विधानसभा चुनाव में टिकट देने से लेकर पार्टी के लिए रणनीति तैयार करने तक बीएल संतोष का ही नाम गूंज रहा है. अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि जिनको बीजेपी का टिकट मिला या नहीं मिला वो सभी बीएल संतोष का ही नाम ले रहे हैं. इन नेताओं में बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे और पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार भी शामिल हैं.


बीजेपी की ओर से टिकट न मिलने पर जगदीश शेट्टार ने इसके पीछे बीएल संतोष का हाथ बताया है. जगदीश शेट्टार कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. उनका दावा है कि जिस बीजेपी के संगठन को खून-पसीने से सींचकर खड़ा किया गया है उसे बीएल संतोष तबाह कह रहे हैं. इतना ही नहीं पूर्व सीएम ने तो यहां तक कह दिया कि इसमें बीएल संतोष की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा है.


लेकिन शेट्टार के इन आरोपों पर कर्नाटक बीजेपी के कई नेताओं ने मीडिया से बातचीत में यह कहकर खारिज कर दिया कि सभी बातें अपनी जगह पर हो सकती हैं लेकिन व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की बात बिलकुल गलत है.


मीडिया से दूरी बनाकर रखने वाले बीएल संतोष का नाम हर चुनाव में सुर्खियां बना रहता है. हाल ही में हुए गुजरात और उत्तराखंड में भी बीजेपी की चुनावी रणनीति तैयार करने की जिम्मेदारी बीएल संतोष के ही पास थी. जहां चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदल दिए गए थे.


कौन हैं बीएल संतोष
कर्नाटक के उडीपी जिले के श्रीवल्ली ब्राह्मण परिवार में जन्मे 56 साल के बीएल संतोष पेशे से इंजीनियर हैं. बीएल संतोष बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे. साल 1993 में वो संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए. संघ में रहने के दौरान उन्होंने उडीपी, शिवमोगा, मैसूर जैसे जिलों में जमीनी स्तर पर काम किया. बीएल संतोष पेशे से इंजीनियर हैं इसलिए उन्हें आंकड़ों का पूरा ध्यान रहता है.


साल 2006 में बीएल संतोष को कर्नाटक बीजेपी में महासचिव की भूमिका दी गई इसी दौरान कर्नाटक में बीजेपी की सरकार भी बनी. 8 साल तक इस पद पर रहने के बाद उनको साल 2014 में संयुक्त महासचिव की जिम्मेदारी राष्ट्रीय स्तर पर दी गई इसके बाद बीजेपी में सबसे ताकतवर पदों में से एक राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी 2019 में दी गई.


राष्ट्रीय महासचिव का काम
इसमें कोई दो राय नहीं है बीजेपी को सबसे बड़ी ताकत आरएसएस से मिलती है. बीजेपी ने अब तक दो प्रधानमंत्री बनाए हैं और दोनों ही संघ के पूर्णकालिक प्रचारक रहे हैं. संघ और बीजेपी के बीच संवाद और पुल का काम करने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय महासचिव की होती है. इसके साथ ही चुनाव में टिकट वितरण के लेकर रणनीति बनाने की भी जिम्मेदारी राष्ट्रीय महासचिव की होती है.


इस दौरान पार्टी में किसी भी तरह के असंतोष, बगावत की स्थिति में राष्ट्रीय महासचिव की भूमिका अहम हो जाती है. राष्ट्रीय और राज्यों में ये भूमिका संघ के प्रचारकों को ही मिलती है. जब भी किसी मुद्दे पर मतभेद हो जाते हैं तो संगठन में राष्ट्रीय महासचिव की भूमिका अहम हो जाती है. 


बीएल संतोष के काम करने के तरीके में कुछ बातें एकदम साफ है. वो पार्टी में किसी भी कीमत पर परिवारवाद को लागू नहीं करने देना चाहते हैं. इसके साथ ही नए चेहरों को आगे बढ़ाना और पार्टी का विस्तार ही उनका एक लक्ष्य रहता है. 


परिवारवाद के मुद्दे पर ही उनके पूर्व सीएम और पार्टी के वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा से मतभेद हुए थे. यहां तक कि वो बीएस येदियुरप्पा के बेटे को भी टिकट देने के खिलाफ थे. कहा तो यहां तक जाता है कि साल 2011 में जब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीएस येदियुरप्पा को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा तो इसके पीछे बीएल संतोष का ही हाथ था. 


कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आने वाले बड़े नेता हैं. लेकिन उन्हीं की अगुवाई में चल रही सरकार में एक लिंगायत समुदाय से ही किसी दूसरे नेता को आगे बढ़ाना आसान नहीं था लेकिन बीएल संतोष ने लक्ष्मण सावदी को डिप्टी सीएम बनाकर ये कर दिखाया.


इसके साथ ही राज्य में तेजस्वी सूर्या और सीटी राजू जैसे युवा चेहरों को भी बीएल संतोष ने आगे बढ़ाया. बीएल संतोष किसी भी कीमत पर पार्टी की विचारधारा से समझौता न करने के लिए जाने जाते हैं चाहे फिर इसके लिए कितना भी बड़ा फैसला करना पड़े.


कर्नाटक में कांग्रेस
कर्नाटक में कांग्रेस को इस बार बहुत उम्मीदें हैं. बीते चुनाव में जेडीएस के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने वाली कांग्रेस को अधिकांश सर्वे में बढ़त मिलती दिखाई दे रही है. लेकिन राज्य की बीजेपी सरकार ने मुस्लिम आरक्षण को खत्म करके उसको वोकालिंगा समुदाय को देने के फैसले के बाद से समीकरणों के बदलने का भी दावा किया जा रहा है. 


कांग्रेस की ओर से पूर्व आईएएस अधिकारी शशिकांत सेंथिल, जी परमेश्वर, एमबी पाटिल और रणदीप सिंह सुरजेवाला रणनीति बना रहे हैं. कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में कई लोकलुभावन घोषणाएं की गई है. इसके साथ ही बजरंग दल पर भी बैन लगाने की बात कही गई है. अपने चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस ने कहा कि वह जाति और धर्म के नाम पर समुदायों में नफरत फैलाने वाले व्यक्तियों और संगठनों जैसे बजरंग दल और 'पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया' (पीएफआई) के खिलाफ ठोस और निर्णायक कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है.


बजरंग दल बना चुनावी मुद्दा
बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के ऐलान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी मुद्दा बना दिया है. वो रैलियों में भी इस बात का जिक्र करना नहीं भूल रहे हैं. पीएम मोदी ने एक रैली में कहा कि लोगों ने वर्षों तक भगवान राम को ताले में रखा. अब बजरंग बली का नाम लेने वालों को बंद करने की बात कर रहे हैं. उन्होंने कहा कांग्रेस का ये ऐलान सिर्फ आतंकवादियों के तुष्टीकरण का नतीजा है.


अंतिम प्रचार रैली में रविवार को कांग्रेस पर करारा प्रहार करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस कर्नाटक को भारत से 'अलग करने' की खुलकर वकालत कर रही है. कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा शनिवार को हुबली में एक चुनावी रैली को संबोधित किये जाने के बाद प्रधानमंत्री ने यह आरोप लगाया. 


दरअसल कांग्रेस ने एक ट्वीट में सोनिया गांधी के भाषण का हवाला देते हुए कहा,'कर्नाटक के 6.5 करोड़ लोगों को एक मजबूत संदेश दिया है.' पार्टी ने उनकी तस्वीर भी साझा की, जिसमें वह जनसभा को संबोधित करते दिख रही हैं. ट्वीट में कहा गया, 'कांग्रेस किसी को भी कर्नाटक की प्रतिष्ठा, संप्रभुता या अखंडता के लिए खतरा पैदा नहीं करने देगी.'


पीएम मोदी ने संभवत: इसका हवाला देते हुए आरोप लगाया कि 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' (राष्ट्र विरोधी तत्वों) की बीमारी कांग्रेस में ऊपर तक पहुंच गई है. पीएम मोदी ने कहा, 'जब देश हित के खिलाफ काम करने की बात आती है, तब कांग्रेस का 'शाही परिवार' सबसे आगे रहता है. मैं यहां एक गंभीर मुद्दे के बारे में बोलना चाहता हूं. मैं यह कहना चाहता हूं क्योंकि मेरे दिल में काफी दर्द है. यह देश इस तरह के खेल को कभी माफ नहीं करेगा.'


प्रधानमंत्री ने कहा, 'कर्नाटक की संप्रभुता, आप जानते हैं कि इसका मतलब क्या है?उन्होंने इतने वर्ष संसद में बिताए हैं, उन्होंने भारत के संविधान की शपथ ली है, और वे ऐसा कह रहे हैं. जब कोई देश आजाद हो जाता है, तब उसे संप्रभु राष्ट्र कहते हैं.' उन्होंने कहा,' इसका मतलब है कि कांग्रेस खुलकर कर्नाटक को भारत से अलग करने की वकालत कर रही है.'


कर्नाटक विधानसभा चुनाव क्यों है अहम
कर्नाटक में इस 10 मई को विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे और इसके नतीजे 13 मई को आएंगे. इस विधानसभा चुनाव के नतीजे इसलिए अहम है क्योंकि इसका मनोवैज्ञानिक असर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है.


कर्नाटक में महंगाई और रोजगार
महंगाई: साल 2021-22 के आंकड़ों को देखें तो राज्य में महंगाई दर 5.6 फीसदी रही है. जो इस समय चिंता की बात है. राज्य में महंगाई दर बीते 5 सालों में बढ़ती रही है. 2020-21 में यह दर 5.8 फीसदी तक पहुंच गई थी. बात पूरे देश की करें इस समय महंगाई दर का औसत 5.5 फीसदी पर है.


रोजगार: CMIE के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2017 में महंगाई की दर 46 फीसदी रही है. लेकिन साल 2022 दिसंबर तक ये दर घटकर 37 फीसदी तक पहुंच गई है.