नई दिल्ली: रांची की एक सीबीआई अदालत ने 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाला में देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हजार रुपये की अवैध निकासी के मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद को दस लाख रुपये जुर्माने के साथ साढ़े तीन साल की सजा सुनाई है. अगर जुर्माना नहीं दिया गया तो 6 महीने की सजा बढ़ा दी जाएगी. जगदीश शर्मा को 7 साल की सज़ा हुई है. अब जमानत के लिए उपरी अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा. इस फ़ैसले पर तेजस्वी यादव ने कहा कि हम हाई कोर्ट जाएंगे.


सियासत के चरम से लेकर विवादों के दलदल में फंसने वाले लालू यादव का पॉलिटकल करियर बेहद रोचक रहा है. लालू यादव ने राजनीति में कई बार ऐसे फैसले लिए जिसने पूरे देश को चौंका कर रख दिया. लालू यादव की बात करेंगे तो उनके सियासी दांव का जिक्र करना लाजमी है. चलिए वक्त का पहिया पीछे करते हैं और आपको कुछ ऐसी घटनाओं को बताते हैं जिसने लालू यादव को देश की राजनीति के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया.


आडवाणी की रथ यात्रा को रोक कर लालू यादव ने दिखाया अपना दम


पिछड़ों और अल्पसंख्यों के नेता की छवि वाले लालू यादव ने साल 1990 में एक ऐसा कदम उठाया जिसने उनकी शख्सियत को एक नई पहचान दी. मालूम हो कि बीजेपी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी देशभर में राम रथयात्रा की अगुवाई कर रहे थे. इसी दौरान बिहार के समस्तीपुर में अक्टूबर महीने में आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया. लालू यादव के इस कदम ने सियासी गलियारें में तूफान ला दिया. इस कदम के साथ ही लालू यादव ने खुद को सेक्युलर नेता के रूप में स्थापित किया.


लालू यादव ने अपनी पत्नी राबड़ी यादव को बनाया सीएम


देश के सियासी मंच पर खुद को स्थापित कर चुके लालू यादव के जीवन में विवादों की एंट्री तब हुई जब उनपर चारा घोटाले का आरोप लगा. यह एक ऐसा दाग रहा जिसने लालू यादव की छवि को प्रभावित किया. यह घोटाला सन 1990 से लेकर सन 1997 के बीच हुआ था, तब लालू यादव बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज थे. इस आरोप के बाद लालू यादव जनता पार्टी से अलग हो गए और साल 1997 में राष्ट्रीय जनता दल का निर्माण किया. इस केस में लालू यादव को जेल भी जाना पड़ा. लालू यादव के जेल जाने के बाद बिहार की राजनीति पर लोगों की नजरे टिक गईं. यहां एक बार फिर लालू यादव ने ऐसा फैसला लिया, जिससे सब दंग रह गए. 25 जुलाई 1997 को लालू यादव ने राज्य की कमान पत्नी राबड़ी यादव को सौंपी. राबड़ी देवी के सीएम बनने के साथ ही राज्य को पहली महिला मुख्यमंत्री मिली.


बिहार में 'महागठबंधन' का निर्माण


2014 में पूरे देश में मोदी लहर बिहार अछूता नहीं रहा था. लालू यादव ने लोकसभा में चोट खाने के बाद मोदी लहर को विधानसभा में रोकने के लिए एक बार फिर सियासी मास्टर स्ट्रोक मारा. साल 2015 में बिहार की राजनीति में एक ऐसा मौका आया, जिसने राज्य ही नहीं बल्कि पूरे देश को हैरान कर दिया. यह घटना थी धुर विरोधी लालू यादव और जेडीयू के नीतीश कुमार का साथ में चुनाव लड़ने का फैसला करना. 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव, नीतीश कुमार और कांग्रेस से मिलकर 'महागठबंधन' बनाया और चुनाव में जीत दर्ज की. इस बड़े सियासी घटनाक्रम के केंद्र में भी लालू यादव ही रहे. बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से 'महागठबंधन' को 178 सीटों पर जीत मिली. इस चुनाव में खास बात ये रही कि मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार की पार्टी को 178 में से 71 सीटें मिलीं, जबकि सत्ता से दूर रहे लालू यादव की पार्टी आरजेडी को 80 सीटें मिली थीं. इस जीत के साथ ही नीतीश कुमार को सीएम तो बनाया गया लेकिन इसके साथ ही लालू यादव के दोनों बेटे तेजस्वी यादव (तब के उपमुख्यमंत्री) और तेज प्रताप यादव (तब के स्वास्थ्य मंत्री) का बिहार की राजनीति में पदार्पण हुआ.


संसद से बिहार की सीएम की कुर्सी तक का सफर


छात्र जीवन में ही लालू यादव ने सियासत की हवा को पहचान लिया था. पटना यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एमए की पढ़ाई के दौरान ही लालू यादव कैंपस की राजनीति में अपना छाप छोड़ चुके थे. सन 1973 में छात्र संघ के अध्यक्ष बने लालू यादव कैंपस की राजनीति से कदम बाहर निकालते हुए 1974 में बिहार में जेपी आंदोलन में शामिल हुए. इसी दौरान उन्होंने जनता और उससे जुड़े मुद्दे को करीब से देखा और यह सिलसिला जारी रहा. जेपी आंदोलन की पाठशाला से निकलकर लालू यादव ने पहली बार साल 1977 में संसद में कदम रखा. बिहार के छपरा से 29 साल की उम्र में लालू यादव लोकसभा के सांसद चुने गए. राजनीति में खुद को स्थापित कर चुके लालू यादव 10 अप्रैल 1990 को सीएम की कुर्सी पर बैठे. जनता पार्टी की सरकार में सीएम बनने के बाद लालू यादव राजनीति में और ज्याद मजबूत हुए.