Parkash Singh Badal Dies: सरपंच से सीएम का सफर, 10 बार एमएलए रहे, मोरारजी देसाई सरकार में मंत्री भी बने प्रकाश सिंह बादल
Parkash Singh Badal Passes Away: पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल मंगलवार (25 अप्रैल) को 95 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए. उन्हें सूबे की सियासत का पितामह कहा जाता था.
Parkash Singh Badal Dies: पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का मंगलवार (25 अप्रैल) को 95 साल की उम्र में निधन हो गया. शिरोमणि अकाली दल (SAD) के वरिष्ठ नेता को सांस लेने में तकलीफ होने की शिकायत के बाद एक हफ्ते पहले मोहाली में फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
अबुल खुराना के लाल प्रकाश सिंह बादल
जाट सिख परिवार में रघुराज सिंह और सुंदरी कौर के परिवार में 8 दिसंबर 1927 को प्रकाश सिंह बादल का जन्म हुआ था. मलोट (मुक्तसर) के पास के गांव अबुल खुराना में पैदा हुए और पले-बढ़े. साल 1959 में सुरिंदर कौर के साथ विवाह बंधन में बंधे.
उनकी पत्नी सुरिंदर कौर की साल 2011 में लंबी बीमारी के बाद मौत हो गई थी. उनके दो बच्चे बेटा सुखबीर सिंह बादल और बेटी परनीत कौर हैं. परनीत कौर पंजाब के पूर्व सीएम रहे प्रताप सिंह कैरों के बेटे आदेश प्रताप सिंह कैरो की जीवन संगिनी बनीं. वहीं सुखबीर सिंह बादल की शादी हरसिमरत कौर बादल से हुई.
रहे थे देश के सबसे कम और उम्रदराज सीएम
प्रकाश सिंह बादल जब 1970 में पहली बार सीएम बने तो वो देश के सबसे कम उम्र के सीएम थे. उस वक्त उनकी उम्र महज 43 साल थी. ये दिलचस्प बात रही कि जब वो साल 2012 में 5वीं बार सीएम बने तो वो देश के सबसे उम्रदराज सीएम थे.
साल 2022 में भी वो चुनाव लड़े थे तो उस वक्त वो सबसे उम्रदराज उम्मीदवार रहे थे. शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक बादल को पंजाब की सियासत का बेताज बादशाह कहा जाता था.
महज 20 साल की उम्र में राजनीति में रखा था कदम
प्रकाश सिंह बादल ने 1947 में सरपंच का चुनाव जीता. इसी के साथ उन्होंने राजनीति में पहला कदम रखा. तब उनकी उम्र महज 20 साल थी. फिर उनके लिए अगला पड़ाव लांबी आया. सरपंच चुने जाने के कुछ समय बाद ही वे लांबी ब्लॉक समिति के प्रधान चुन लिए गए. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
लिहाजा, प्रकाश सिंह बादल ने लांबी को भी हमेशा के लिए अपने से जोड़ लिया. पहली बार 1957 से लेकर 2017 तक 10 बार पंजाब विधानसभा में उन्होंने लांबी का प्रतिनिधित्व किया. साल 1957 में वो पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए. साल 1960 में फिर से उन्होंने जीत हासिल की. इसके बाद 1969 में फिर से वो पंजाब विधानसभा से निर्वाचित हुए.
गुरनाम सिंह की सरकार में वो सामुदायिक विकास, पंचायती राज, पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्री बने. अकाली दल के अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने 1996 से लेकर 2008 तक अपनी सेवाएं दीं. उन्हें हमेशा पंजाब की राजनीति ही भायी.
साल 1977 में जब देश में मोरारजी देसाई की सरकार थी. तब केंद्र में उन्हें कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय सौंपा गया था. हालांकि, केवल ढाई महीने तक ही उन्होंने ये कार्यभार संभाला था. ये प्रकाश सिंह बादल की शख्सियत थी कि वो राष्ट्रीय राजनीति में मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मोदी सरकार तक के करीबी रहे.
पंजाब की राजनीति के भीष्म पितामह
प्रकाश सिंह बादल को पंजाब की सियासत का भीष्म पितामह कहा जाता था. वो 5 बार मुख्यमंत्री ही नहीं रहे बल्कि 10 बार विधानसभा चुनाव भी जीते थे. ये सिलसिला 1957 से लेकर 1969 तक लगातार चला. साल 1992 में वो एमएलए बनने से चूक गए क्योंकि इस साल अकाली दल ने चुनाव का बहिष्कार किया था.
पहली बार 1970 में पंजाब के 15 वें सीएम के तौर पर पहली बार शपथ ली थी. इसके बाद साल 1977 में दोबारा से वो राज्य के 19वें सीएम बने. इसके बाद फिर 20 साल बाद वो सत्ता में आए, लेकिन इस बार बीजेपी के साथ गठबंधन में उनकी सरकार बनी थी.
दरअसल साल 1996 में बीजेपी और अकाली दल की नजदीकियां बढ़ी थीं. इसका नतीजा ये हुआ कि साल 1997 में दोनों के गठबंधन में पंजाब की सरकार बनी. साल 1997 में वो सूबे के 28वें सीएम बने. साल 2007 में चौथी बार और साल 2012 में उन्होंने 5वीं बार सीएम बने.
किसानों के लिए लौटाया था पद्म विभूषण भी
प्रकाश सिंह बादल को साल 2015 में देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया था, लेकिन दिसंबर 2020 के किसान आंदोलन में किसानों के साथ एकजुटता दिखाते हुए इसे लौटा दिया था.
उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखे खत में लिखा, " मैं जो हूं, लोगों की वजह से हूं, खासकर आम किसान की वजह से. आज जब उन्होंने अपने सम्मान से अधिक खो दिया है, तो मेरे पद्म विभूषण सम्मान को रखने का कोई मतलब नहीं दिखता. "
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