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मोदी सरकार में शपथ लेने के बाद चर्चा में आए एस जयशंकर, जानें कौन हैं ये

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के कैबिनेट में पूर्व विदेश सचिव रह चुके एस. जयशंकर को भी शामिल किया गया है. कयास लगाए जा रहें हैं कि उनको विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी मिल सकती है.

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी ने देश के नए प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है. यह दूसरा मौका है जब उन्होंने पीएम पद की शपथ ली है. पीएम मोदी के साथ मोदी कैबिनेट में शामिल होने वाले मंत्रियों ने भी पद की गोपनियता की शपथ ली. मोदी कैबिनेट में शपथ लेने वालों में एक नाम जिसने सबको चौंकाया है वह है पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर का नाम. वह मोदी कैबिनेट में जगह पाने वाले नए चेहरों में हैं.

जयशंकर पूर्व विदेश सचिव रह चुकें हैं इसलिए माना जा रहा है कि उन्हें विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी दी जा सकती है. इसका कारण यही है कि जयशंकर को विदेश मामलों में अच्छी पैठ है. माना जाता है कि जयशंकर ने अमेरिका के साथ एटमी डील का रास्ता साफ करने और ओबामा को गणतंत्र दिवस पर मेहमान बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. इन सभी बातों को मद्देनजर रखते हुए कयास लगाए जा रहे हैं कि जयशंकर को विदेश मंत्रालय दी जा सकती है.

कौन हैं एस. जयशंकर

एस. जयशंकर तमिलनाडु के रहने वाले हैं लेकिन उनका जन्म दिल्ली में हुआ. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एयरफोर्स स्कूल से की और फिर सेंट स्टीफेंस कॉलेज से आगे की पढाई की. जयशंकर ने पॉलिटिकल साइंस से एमए किया. फिर एम.फिल और पीएचडी भी किया. जयशंकर की शादी क्योको जयशंकर से हुई है और उनके दो बेटे और एक बेटी है.

64 वर्षीय जयशंकर 1977 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए थे और उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और चेक गणराज्य में भारतीय राजदूत और सिंगापुर में उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया. इसके बाद 1981 से 1985 तक वे विदेश मंत्रालय में अंडर सेक्रेटरी रहे.  1985 से 1988 के बीच वे अमेरिका में भारत के प्रथम सचिव रहे और इसके बाद श्रीलंका में भारतीय शांति सेना के राजनैतिक सलाहकार के तौर पर काम किया. 1990 में उन्हें बुडापेस्ट में कॉमर्शियल काउंसलर की पोस्टिंग दी गई.

मोदी सरकार में शपथ लेने के बाद चर्चा में आए एस जयशंकर, जानें कौन हैं ये

इसके बाद जब वह भारत लौटे तो पूर्वी यूरोप के मामलों को देखते रहे. 1996 से 2000 तक टोक्यो तथा इसके बाद 2004 तक चेक रिपब्लिक में भारत के राजदूत का पद भी संभाला. चेक रिपब्लिक से लौटने के बाद वह तीन साल तक विदेश मंत्रालय में अमेरिकी विभाग देखते रहे. 2007 में उन्हें बतौर इंडियन हाई कमिश्नर सिंगापुर भेजा गया. फिर 2009 से 2013 तक वह चीन में भारत के राजदूत रहे.

भारत-अमेरिका और चीन के बीच कई समझौतों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

जयशंकर ने 2007 में यूपीए सरकार द्वारा हस्ताक्षरित भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर बातचीत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसके अलावा भारत और अमेरिका के बीच देवयानी खोबरागड़े विवाद को सुलझाने में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी.

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जयशंकर चीन और भारत के बीच रिश्तों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह चीन में देश के सबसे लंबे समय तक राजदूत रहे हैं. उन्होंने दोनों देशों के बीच जुड़ाव बढ़ाने का काम किया. उन्हें इस बात का श्रेय भी दिया जाता है कि चीन और कश्मीर के निवासियों को जारी किए गए स्टैप्ड वीजा को समाप्त करने के लिए बातचीत की. इसके अलावा जयशंकर को विदेश सचिव के रूप में भारत और चीन के बीच पिछले साल डोकलाम में प्रस्ताव पर बातचीत करने में मदद करने का श्रेय दिया जाता है. जयशंकर को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया.

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