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किसने की अमरनाथ गुफा की खोज, जानिए अमरनाथ यात्रा और इसके प्रबंध के बारे में सब कुछ
कहते हैं कि जिस भी दर्शनार्थी को पवित्र गुफा में बाबा बर्फ़ानी के साथ दोनों कबूतरों का दर्शन हो जाता है, समझो उसको मोक्ष मिल गया.
नई दिल्लीः भगवान भोले शंकर भले ही हिंदुओं के आराध्य देव हों लेकिन कश्मीर के गांदरबल ज़िले में ऊंचे पहाड़ पर बाबा बर्फ़ानी की पवित्र गुफ़ा की खोज एक मुस्लिम गडेडिये ने की थी. कहा जाता है कि अपने जानवर चराने जब बूटा मलिक नाम का गडेरिया पवित्र गुफ़ा तक पहुंचा तो उसको एक साधु दिखे. माना जाता है कि भगवान शिव ने बूटा मलिक को साक्षात दर्शन दिए. बूटा मलिक को लेकर यह भी कहा जाता है कि जब साधु का दर्शन उन्हें हुआ, तब उन्हें ठंड लगने लगी. तब वहां ठंड से बचने के लिए बूटा मलिक को एक सिगड़ी मिली. उस वक़्त सिगड़ी पर हाथ सेंककर उन्होंने ख़ुद को बचाया और जब वो सिगड़ी लेकर अपने घर पहुंचे तो सिगड़ी सोने की बन गई. इसके बाद बूटा मलिक फिर से गुफा तक गए और पाया कि गुफा में कथा चल रही थी. बूटा मलिक को तब साक्षात भगवान भोले शंकर और माता पार्वती के दर्शन हुए. उस वक़्त गुफ़ा में 2 कबूतर भी मौजूद थे, जिन्होंने भगवान शंकर से अमरत्व की कहानी सुनी और उसी के साथ अमर हो गए. कहते हैं वो दोनों कबूतर आज भी गुफा में मौजूद हैं और जिस भी दर्शनार्थी को पवित्र गुफा में बाबा बर्फ़ानी के साथ दोनों कबूतरों का दर्शन हो जाता है, समझो उसको मोक्ष मिल गया.
अभी भी बाबा बर्फ़ानी की सेवा में लगा है मलिक परिवार
बूटा मलिक की कहानी 1850 की है. आज 7 पीढियां गुज़र चुकी हैं लेकिन मलिक परिवार आज भी भोले शंकर की सेवा में लगा हुआ है. बूटा मलिक के परिजन आज भी बाबा बर्फ़ानी की सेवा के लिए पवित्र गुफ़ा जाते हैं और तरह तरह से बाबा की सेवा करते हैं. भगवान भोले शंकर ने जिस जगह पर माता पार्वती को अमरत्व का पाठ पढ़ाया था, उस जगह की खोज करने वाले बूटा मलिक के परिजन की सातवीं पीढ़ी आज चल रही है. आज भी मलिक परिवार पहलगाम में रहता है और जबतक यात्रा चलती है, वो बाबा के दर्शन के लिए आने वाले यात्रियों की सेवा करते हैं. मलिक रहमान बूटा मलिक के परिवार के सातवीं पीढ़ी के सदस्य हैं. यूं तो वो पीडब्लूडी विभाग में इंजीनियर के पद पर काम करते हैं लेकिन यात्रा के दौरान वो बाबा की सेवा में भी रहते हैं. एबीपी न्यूज़ ने मलिक रहमान से बात की तो उन्होंने बताया कि 1850 में उनके परदादा बूटा मलिक ने गुफ़ा की खोज की थी. इसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी वो बाबा बर्फ़ानी की सेवा में रहते हैं. उन्होंने बताया कि पहले यात्रा सिर्फ 15 दिन की होती थी.
चढ़ावे के पैसे को लेकर तनातनी
यात्रा के दौरान छड़ी मुबारक़ से जुड़े सदस्य, पुजारी और मलिक परिवार गुफ़ा में पूजा पाठ में रहता था. वहां आने वाले कुल चढ़ावे का तीनों पक्ष एक एक हिस्सा रखते थे. लेकिन 2002 में श्राइन बोर्ड बनने के बाद परिस्थितियां बदल गईं. मलिक परिवार गुफ़ा जाता है, वहां पूजा पाठ करता है लेकिन पहले जैसा अब नहीं रहा. उन्होंने कहा कि श्राइन बोर्ड चढ़ावे को लेकर उनपर दबाव बना रहा है कि वो एक बार पैसे लेकर अब यात्रा से अलग हो जाएं. मलिक का दावा है कि छड़ी मुबारक़ और पुजारियों ने श्राइन बोर्ड से वन टाइम सेटलमेंट करके पैसे ले लिए लेकिन इन्होंने 2002 से चढ़ावे का कोई पैसा नहीं लिया है. मलिक परिवार का कहना है कि वो यात्रा से जुड़े रहना चाहते हैं, इसीलिए वो यात्रा के दौरान एनजीओ के ज़रिए मेडिकल कैम्प भी लगाते हैं और यात्रा में गुफ़ा में भी जाते हैं. उन्होंने कहा कि रक्षा बंधन के लिए वो गुफ़ा में ही रहते हैं.
यात्रा से हिन्दू और मुसलमान दोनों को है फ़ायदा
बूटा मलिक के परिजन रहमान मलिक ने कहा कि हिन्दू मुस्लिम सब यात्रा होने देना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि कड़ी सुरक्षा की वजह से स्थानीय लोगों को थोड़ी दिक्कत ज़रूर होती है लेकिन हर कोई चाहता है कि यात्रा में ज़्यादा से ज़्यादा यात्री हर साल अमरनाथ आएं. उनके मुताबिक़ जितने ज्यादा यात्री आएंगे, उतना स्थानीय लोगों को फ़ायदा होगा. होटल व्यवसायी से लेकर ढाबा चलाने वाले और कश्मीरी ख़ासियत वाले सामान बेचने वाले हर शख्स को यात्रा होने से साल भर की कमाई हो जाती है. ऐसे में राजनीति की वजह से माहौल बहुत गड़बड़ ज़रूर हो गया है, लेकिन स्थानीय आम नागरिक चाहता है कि यात्रा में ज़्यादा से ज़्यादा लोग आएं और बाबा का दर्शन कर आशीर्वाद ज़रूर लें.
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