नई दिल्ली: मुगल सम्राट औरंगजेब के बड़े भाई और भारत की समन्यवादी विचारधारा के प्रतीक दारा शिकोह पर आयोजित एक परिसंवाद में आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि अगर दारा शिकोह मुगल सम्राट बनता तो इस्लाम देश में और फलता-फूलता. उन्होंने कहा दारा शिकोह में सर्वधर्म समभाव की प्रवृत्ति थी.


ऐसे में जब दारा शिकोह एक बार फिर चर्चा में है तो आपमें से जिन्हें इस मुगल शासक के बारे में नहीं पता उनको आज हम बताने जा रहे हैं. हम आपको बता रहे हैं कि कौन था दारा शिकोह और क्यों ऐसा कहा जाता है कि अगर औरंगजेब की जगह वह शासक बनता तो तस्वीर कुछ और होती.


कौन था दारा शिकोह


दारा शिकोह मुग़ल बादशाह शाहजहां और मुमताज़ महल का सबसे बड़ा पुत्र था. शाहजहां अपने इस बेटे को बहुत अधिक चाहता था और इसे मुग़ल वंश का अगला बादशाह बनते हुए देखना चाहता था. शाहजहां भी दारा शिकोह को बहुत प्रिय था. वह अपने पिता को पूरा मान-सम्मान देता था और उसके प्रत्येक आदेश का पालन करता था.


दारा शिकोह मुगल वंश का होकर भी मुगलों से काफी अलग था. इस्लाम और हिन्दू मज़हब को वो बराबर का दर्जा देता था. शिकोह का यह भी कहना था कि जन्नत कहीं है तो वहीं जहां मुल्लाओं का शोर न हो. वह अपने एक हाथ में पवित्र कुरआन और दूसरे हाथ में उपनिषद रखता था. वह नमाज भी पढ़ता था और भगवान राम के नाम की अंगुठी पहनता था. उसकी इन्हीं बातों की वजह से दरबार के लोग उसे काफिर कहने लगे थे.


कहानी दारा शिकोह की


1628 से 1698 का काल वह काल था जिस दौरान मुगल बादशाह शाहजहां का राज था. इस दौरान देश में कई बड़ी इमारतें बनी, जिनमें लाल किला और ताजमहल भी शामिल है. शाहजहां ने अपने शासनकाल में कई नियमों में बदलाव किए. खासकर अपने पिता अकबर के शासन काल के दौरान शुरू किए हुए धार्मिक उदारता की नीतियों में शाहजहां ने बदलाव करना शुरू कर दिया. शाहजहां से उनका बेटा सुल्तान मुहम्मद दारा शिकोह धार्मिक मामलों पर अलग मत रखता था. दारा शिकोह का जन्म 20 मार्च 1615 को हुआ है. शिकोह की परवरिश भी मुगलिया तौर तरीकों से हुई लेकिन वह सभी धर्मों में विश्वास रखने वाला बड़ी सोच वाला शहजादा था.


आम तौर पर मुगल शासकों के बच्चों को शस्त्र चलाने का प्रशिकक्षण दिया जाता था. दारा शिकोह को भी यह प्रशिकक्षण मिला लेकिन वह अपने भाइयों से अलग ज्यादा वक्त किताबों में खोया रहता था. कभी धार्मिक पुस्तकों का अध्यन करता तो कभी रूमी जैसे सूफी संतों को पढ़ता था. दारा हमेशा से शाहजहां का सबसे प्रिय बेटा रहा.


दारा शिकोह का निकाह नादिरा बेगम से हुआ. शादी के एक साल बाद ही दारा एक बेटी का पिता बना लेकिन बेटी की जल्द मौत हो गई. इससे दारा को गहरा सदमा लगा और वह तालिम में और अधिक खो गया. वह दिन रात किताबों में खोया रहता था. इसी दौरान लाहौर में दारा की मुलाकात एक हिन्दू सन्यासी लाल बैरागी से हुई. इस दौरान दारा शिकोह ने आत्मा-परमात्मा और मूर्ति पूजा समेत कई अन्य विषयों पर ज्ञान प्राप्त किया. इसके बाद दारा मानने लगा कि सत्य को किसी भी नाम से पुकारो वह खुदा का ही नाम है. कहा जाता है कि वह बनारस में रहा और संस्कृत का ज्ञान भी लिया. दारा शिकोह ने किताब मज्म 'उल् बह् रैन' लिखी जिसका मतलब है महान साधुओं का मिलन.


कट्टपंथियों के निशाने पर दारा


धार्मिक उदारता के कारण दारा कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गया. जब शाहजहां के चारो बेटे बड़े हुए तो पुत्रों की कलह से परेशान शाहजहां ने चारों को चार सूबे सौंप दिए, ताकि शांति बनी रहे. दारा को काबुल और मुल्तान, शुजा को बंगाल, औरंगजेब को दक्कन और मुरादबख्श को गुजरात का हाकिम बनाया गया. लेकिन शाहजहां ने दारा को दिल्ली दरबार में ही रहने को कहा. 1654 में दारा को शाहजहां ने 'सुल्तान बुलंद इकबाल' की पदवी दे दी.


इसके बाद जब कंधार में ईरान की सेना ने कब्जा किया और फिर दारा शिकोह के नेतृत्व में युद्ध हुआ तो मुगलों की हार हुई. यह हार दारा की नेतृत्व क्षमता की भी हार थी. इस बीच दारा शिकोह और औरंगजेब दोनों भाईयों में तल्खी बढ़ गई. औरंगजेब दारा को काफिर कहता तो दारा औरंगजेब को अत्याचारी और घोर नमाजी कहता.


दोनों के बीच तल्खियां बढ़ती गई और जब तत्कालीन मुगल बादशाह शाहजहां बीमार पड़े तो दारा शिकोह के तीनों भाइयों ने दिल्ली की तरफ कूच किया. औरंगजेब की सेना के आगे दारा टिक नहीं पाए और जंग हार गए. इसके बाद वह कई दिनों तक औरंगजेब से भागता और छिपता रहा. इसी दौरान औरंगजेब ने पिता शाहजहां को नजरबंद कर लिया और खुद मुल्क़ का बादशाह बन गया.


पकड़ा गया दारा शिकोह और फिर हुआ सर कलम


औरंगजेब मुगल बादशाह बन गया था. इसी बीच अफगानिस्तान में दारा शिकोह को पकड़ लिया गया. इसके बाद जब उसे बेड़िया पहनाकर पूरी दिल्ली में धूमाने का आदेश दिया गया तो काफी लोग दारा के समर्थन में सड़को पर आए. इसे देखते हुए औरंगजेब ने उसको सजा देने के लिए दरबार बुलाया और दरबार में कई लोगों ने दारा पर काफिर होने का इल्जाम लगाया. उन्होंने कहा कि दारा ने हिन्दुओं के उपनिषद का ट्रांसलेशन करवाया है और साथ ही कुंभ पर लगने वाले कर को भी खत्म कर दिया है. अगर दारा शिकोह बादशाह के तख्त पर बैठ गया तो इस्लाम खतरे में आ जाएगा.


इसके बाद औरंगजेब ने दारा शिकोह का सर कलम करावर उसे मारवा दिया. यकीनन दारा शिकोह अकबर के धार्मिक उदारता की नीति को अध्यात्म तक ले जाने का काम कर रहा था. किसी भी मज़हब में भेद नहीं है यह बात दारा अपने आखिरी समय तक कहता रहा.