महान सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर राजनीति विवाद छिड़ गया है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीते दिन मिहिर भोज की जाति को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा उन्होंने कहा कि, मिहिर भोज गुर्जर-प्रतिहार थे लेकिन बीचेपी के नेताओं ने उनकी जाति बदल दी जो पूरी तरह निंदनीय है.


मिहिर भोज की जाति का विवाद अब राजनीति रूप ले रहा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि असल में सम्राट मिहिर भोज कौन थे? इनकी जाति के पीछे इतना विवाद क्यों?


आइये सबसे पहले जानते हैं कौन थे मिहिर भोज


जानकारों की माने तों, सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, अग्निवंशी, ऋषिवंशी, नागवंशी भौमवंशी समेत अन्य वंशों में बंटा हुआ है ये छत्रिय वंश. देश में गुर्जर, जाट, पटेल, मराठा सभी छत्रिय वंश से संबंध रखते हैं. मिहिर भोज कन्नौज के सम्राट थे. उन्होंने 836 ईस्वीं से लेकर 885 ईस्वीं तक शासन किया था यानि की कुल 49 साल. मिहिर भोज की पत्नी चंद्रभट्टारिका देवा थी.


बताया जाता है कि मिहिर भोज के मित्रों में काबुल के राजा, क्शमीर के राजा, नेपाल के राजा और असम के राजा उनके खास मित्र हुआ करते थे. वहीं, अरब के खलीफा मौतसिम वासिक, मुन्तशिर, मौतमिदादी सम्राट के सबसे बड़े दुश्मन हुआ करते थे. अरबों ने कई हमले कर सम्राट को खत्म करने के कई प्रयास किए लेकिन वो सम्राट की सेना के सामने हर बार विफल रहे.


सम्राट ने बंगाल के राजा देवपाल के बेटे को हराकर उत्तरी बंगाल को अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया था. उन्होंने दक्षिण के राष्ट्रकुट के राजा को भी जंग में हरा दिया था. कहा जाता है कि कन्नौज पर अधिकार के लिए बंगाल, उत्तर भारत, दक्षिण भारत के बीच करीब 100 सालों तक लड़ाई रही जिसे इतिहास में त्रिकोणात्मक संघर्ष के नाम से जाना जाता है.


वहीं, सम्राट ने अपने जीवन के अंतिम के सालों में बेटे महेंद्रपाल को सिंहासन सौंपकर सन्यास ले लिया था. मिहिर भोज का 72 साल की उम्र में निधन हो गया था.


कैसे शुरू हुआ सम्राट की जाति पर विवाद?


गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा 22 सितंबर को दादरी के मिहिर भोज पीजी कॉलेज में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के अनावरण के दौरान शिलापट्ट से गुर्जर शब्द हटाने को लेकर शुक्रवार को गुर्जर समाज के लोग विरोध में उतर आए. दादरी के मिहिर भोज पीजी कॉलेज में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के अनावरण को लेकर गुर्जर और राजपूत (क्षत्रिय) समाज आमने सामने थे. हालांकि, मुख्यमंत्री के दौरे से पहले दोनों समुदाय के प्रतिनिधियों ने एक मंच पर आकर विवाद खत्म कर दिया था. इसके बाद प्रतिमा अनावरण के लिए लगने वाले शिलापट्ट पर गुर्जर शब्द को लेकर राजनीति शुरू हो गई.


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