IAF Bipin Rawat Helicopter Crash: सीडीएस जनरल बिपिन रावत की हेलिकॉप्टर क्रैश में हुई मौत के बाद सवाल खड़ा हो रहा है कि देश का अगला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ कौन होगा. क्योंकि जनरल बिपिन रावत को अभी दो साल ही इस पद पर हुए थे. लेकिन इस कम समय में भी उन्होंने देश में रक्षा-क्षेत्र में कई सुधारों को लेकर बहुआयामी और महत्वाकांक्षी कदम उठाए थे.
मोदी सरकार ने सीडीएस का पद इसलिए बनाया था ताकि सेना के तीनों अंगों यानी थलसेना, वायुसेना और नौसेना का एकीकरण किया जा सके. इसके लिए तीनों अंगों की अलग-अलग कमांड की बजाए देश में थियेटर कमांड बनाई जा सके.
लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था. यही वजह है कि मोदी सरकार ने जनरल बिपिन रावत को थलसेना प्रमुख के पद से रिटायर होने से पहले ही देश का पहला सीडीएस बनाए जाने की घोषणा कर दी थी. क्योंकि जनरल बिपिन रावत खुद मानते थे कि आधुनिक युद्ध को सेना का कोई अभी अंग अकेला नहीं जीत सकता है. वे सेनाओं की एकीकरण और ज्वाइंटनेस के बड़े पैरोकार थे.
मोदी सरकार के सामने बड़ी चुनौती
मोदी सरकार के सामने सीडीएस जनरल बिपिन रावत की मौत के बाद पैदा हुए हालात में नए चीए ऑफ डिफेंस स्टाफ की घोषणा करना भी एक टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. क्योंकि सीडीएस पद के लिए सबसे बड़े मिलिट्री कमांडर के तौर पर जनरल एम एम नरवणे का नाम है. लेकिन जनरल नरवणे का अभी थलसेना प्रमुख के तौर पर अप्रैल 2022 तक का कार्यकाल शेष है. ऐसे में अगर उन्हें सीडीएस बनाया जाता है तो सरकार को नया थलसेना प्रमुख भी चुनना होगा.
जनरल नरवणे के बाद दूसरे सबसे बड़े मिलिट्री कमांडर हैं वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वी आर चौधरी. चौधरी ने इसी साल 30 अक्टूबर को वायुसेना प्रमुख का पदभार संभाला है. तीसरे क्रम में आते हैं नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार, जिन्होंने 30 नवंबर को ही नौसेना की कमान संभाली है.
सरकार के सामने एक और विकल्प है. वह ये कि सीडीएस के नंबर 2 यानी चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड स्टाफ को ये पदभार दे दिया जाए, लेकिन इस वक्त ये पद एयर मार्शल बी एम कृष्णा के पास है जो थ्री-स्टार जनरल हैं. ऐसे में सरकार के लिए तीनों सेना प्रमुखों को नजरअंदाज कर एक थ्री-स्टार जनरल को सीडीएस का कार्यभार देना थोड़ा मुश्किल हो सकता है.
गुरुवार को पीएम मोदी की अगुवाई में हुई सीसीएस मीटिंग में नए सीडीएस का सवाल जरूर खड़ा हुआ होगा. हालांकि इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है. लेकिन नए सीडीएस की प्रक्रिया जरूर शुरू हो गई होगी. क्योंकि रक्षा मंत्रालय को तीन सीनियर कमांडर्स के नाम अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट (एसीसी) यानी कैबेनिट की नियुक्ति कमेटी को जल्द से जल्द भेजने होंगे. क्योंकि एसीसी ही सीडीएस और दूसरे मिलिट्री कमांडर्स के नाम तय करती है. इस वक्त खुद पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह एसीसी के सदस्य हैं.
रावत कर रहे थे थियेटर कमांड पर काम
बता दें कि सीडीएस का पदभार संभालने के बाद ही जनरल रावत ने देश में थियेटर कमांड बनाने को लेकर तैयारी शुरू कर दी थी. सबसे पहले वे देश में एयर-डिफेंस कमांड और मेरीटाइम थियेटर कमांड बनाना चाहते थे. लेकिन वायुसेना की तरफ से अपना रिजर्वेशन जाहिर करने के चलते ये प्रक्रिया थोड़ी धीमी हो गई थी.
जनरल रावत चाहते थे कि अगले साल यानी 2022 के मध्य तक मेरीटाइम थियेटर कमांड बनकर तैयार हो जाए. नौसेना भी इसके लिए लगभग तैयार हो चुकी थी. थियेटर कमांड बनने के बाद कम से कम चार और साझा थियेटर कमांड बनाने का प्लान था. लेकिन उससे पहले ही जनरल रावत तमिलनाडु के कुन्नूर में हेलीकॉप्टर क्रैश का शिकार हो गए. नए सीडीएस के सामने देश में जल्द से जल्द थियेटर कमांड बनाने की एक बड़ी चुनौती रहेगी.
तैयार कर दी थीं तीन एजेंसियां
जनरल बिपिन रावत ने अपने दो साल के कार्यकाल में सेनाओं के एकीकरण के लिए तीन बड़ी एजेंसियां जरूर तैयार कर दी थीं. ये एजेंसियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन से मेल खाती थीं. पीएम मोदी सेनाओं को हाइब्रिड और फ्यूचर वॉर के लिए तैयार रहने का आह्वान करते रहे हैं.
ऐसे में जनरल रावत ने सेना के तीनों अंगों की तीन एकीकरण एजेंसियां तैयार कर दी थीं. पहली थी साइबर डिफेंस एजेंसी. दूसरी डिफेंस स्पेस एजेंसी, और तीसरी थी स्पेशल ऑपरेशन डिवीजन. निकट भविष्य में ये तीनों एजेंसियां अलग-अलग कमांड भी बन सकती हैं.
जनरल बिपिन रावत का रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और स्वदेशीकरण में भी एक बड़ा योगदान था. सशस्त्र सेनाओं में स्वदेशी हथियारों को लेकर हमेशा एक संशय बना रहता था, यही कारण है कि भारत की गिनती दुनिया के सबसे बड़े हथियारों के आयातक देशों में की जाती थी.
स्वदेशी हथियारों को दी जा रही थी तरजीह
लेकिन पिछले पांच-छह साल से थलसेना, वायुसेना और नौसेना में स्वदेशी हथियारों को ही तरजीह दी जा रही थी, तो इसका एक बड़ा श्रेय जनरल रावत को जाता है. अगर विदेशी हथियार और सैन्य साजो-सामान खरीद भी रहे थे तो उसे मेक इन इंडिया के तहत देश में ही निर्माण करने की कोशिश रहती थी. यही कारण था कि थलसेना स्वदेशी अर्जुन टैंक लेने को तैयार हुई और वायुसेना ने एलसीएच अटैक हेलीकॉप्टर लेने को हामी भरी थी.
जनरल बिपिन रावत रक्षा क्षेत्र में सुधारों के लिए हमेशा जाने जाते रहेंगे तो वे रक्षा मंत्री और सरकार के प्रमुख रक्षा सलाहकार के तौर पर भी काम करते थे. पिछले डेढ़ साल से पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर चल रहे तनाव के दौरान चीन के खिलाफ साझा रणनीति बनाने में जनरल रावत की एक अहम भूमिका थी. उन्होंने नौसेना के पी8आई टोही विमानों को पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना की मूवमेंट पर नजर रखने के लिए तैनात करवाए थे.
कड़े तेवर के लिए जाने जाते थे जनरल रावत
जनरल बिपिन रावत अपने कड़े तेवर और सख्त फैसलों के लिए भी जाने जाते थे. वर्ष 2015 में म्यांमार की सीमा में की गई सर्जिकल स्ट्राइक उनकी अगुवाई में ही हुई थी. उस वक्त वे नागालैंड के दीमापुर में सेना की 3 कोर के कमांडर थे. उनकी इस क्रॉस बॉर्डर रेड की सफलता को देखते हुए ही उन्हें पहले सेना की दक्षिणी कमांड और फिर सह-सेना प्रमुख (वाइस चीफ) बनाकर साउथ ब्लॉक में तैनात किया गया था. उनके वाइस चीफ रहते हुए वर्ष 2016 में पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति तैयार करने के लिए ही सरकार ने उन्हें दो सीनियर सैन्य अफसरों को बायपास कर थलसेना प्रमुख बनाया था.
थलसेना प्रमुख के तौर पर वर्ष 2017 में जब चीन के साथ डोकलाम विवाद हुआ तो शायद पहली बार भारतीय सेना ने डिप्लोमैटिक और पॉलिटिकल चैनल के बजाए सीधे चीन की पीएलए सेना से भिड़ंत की थी. जनरल रावत की अगुवाई का ही नतीजा था कि 73 दिन बाद चीन की पीएलए सेना पीछे हट गई थी.
कश्मीर में आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद बिगड़े हालात और आतंकियों के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन ऑल आउट जनरल बिपिन रावत की ही देन था. उन्होंने पत्थरबाजों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की. इसका नतीजा ये हुआ कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद की कमर टूट गई और सरकार ने वर्ष 2019 में धारा 370 हटा दी.