उत्तराखंड में बीजेपी ने पुराने सभी मिथक तोड़ दिए हैं बीजेपी ने प्रचंड बहुमत हासिल कर 47 सीटों के साथ वापसी की है. लेकिन यहां चला आ रहा एक मिथक अभी भी बरकरार है जो भी मुख्यमंत्री चुनाव लड़ता है वो अपनी सीट से हार जाता है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी खटीमा सीट से हार गए, जिस वजह से बीजेपी की जीत के बावजूद मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर पेच फंस गया है.
नए मुख्यमंत्री कौन होंगे, इसको लेकर के बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में मंथन जारी है. क्या पुष्कर सिंह धामी जिनके नेतृत्व में बीजेपी ने 47 सीट जीतीं, उनकी अपनी सीट से हार के बावजूद क्या उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बनाया जाएगा या कोई नया चेहरा सामने आएगा, इसकी तैयारियां शुरू हो गई हैं.
कल उत्तराखंड के कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक दिल्ली गए थे. वहां उन्होंने शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की. साथ ही पुष्कर सिंह धामी ने गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की.
उत्तराखंड के कई विधायक इन दिनों दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं. कई लोग अपनी लॉबिंग करने में लगे हुए हैं. लेकिन अभी तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को लेकर कोई तस्वीर साफ नहीं हो पाई है.
मुख्यमंत्री का चेहरा सामने ना आने की वजह
उत्तराखंड में होली से 15 दिन पहले के समय को होलाष्टक कहा जाता है. इस समय में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. यही वजह है कि शपथ ग्रहण के लिए भी होली के बाद का समय चुना गया है.
होलाष्टक के बाद ही किसी भी तरह का शुभ काम किया जाता है. यही वजह है कि मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा, विधायक दल की बैठक और शपथ समारोह होली के बाद ही होगा.
सूत्रों की मानें तो उत्तराखंड के लिए बनाए गए पर्यवेक्षक राजनाथ सिंह और मीनाक्षी लेखी होली के अगले दिन 19 मार्च को देहरादून पहुंचेंगे और विधायकों के साथ बैठक करेंगे और विधायक दल की बैठक में उत्तराखंड के मुखिया का नाम तय होगा.
जातीय-क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखकर होगा फैसला
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के चेहरे पर फैसला सभी जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा. उत्तराखंड में राजपूत मतदाता सबसे ज्यादा हैं. इस वजह से यहां जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए राजपूत चेहरे पर ज्यादा दांव खेला गया है.
पिछले 5 साल में बीजेपी ने 3 मुख्यमंत्री दिए. तीनों राजपूत थे. साथ ही साथ गढ़वाल और कुमाऊं इन दो मंडलों को ध्यान में रखकर मुख्यमंत्री का चयन होता आया है. बीजेपी ने पिछले 5 साल में 2 मुख्यमंत्री गढ़वाल मंडल से दिए हैं और एक कुमाऊं से. क्षेत्रीय समीकरणों को साधने के लिए अगर मुख्यमंत्री कुमाऊं से होगा तो प्रदेश अध्यक्ष गढ़वाल से बनाना पड़ेगा.
अभी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक हरिद्वार जिले से आते हैं. ये गढ़वाल मंडल का तराई का इलाका कहा जाता है. वहीं दूसरी ओर कार्यवाहक मुख्यमंत्री कुमाऊं मंडल से आते हैं. कयास ये लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी इस बार संगठन में बदलाव कर सकती है. नया प्रदेश अध्यक्ष भी दिया जा सकता है. ऐसे में सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर ही केंद्रीय नेतृत्व फैसला लेगा.
किसका नाम मुख्यमंत्री की रेस में आगे
पुष्कर सिंह धामी के करीबी नेताओं का कहना है कि धामी के नेतृत्व में जिस तरह से जीत हुई इस वजह से उन्हें मौका दिया जा सकता है. कुछ विधायकों ने तो खुले तौर पर मुख्यमंत्री के लिए अपनी सीट तक छोड़ने की पेशकश कर दी है, जिनमें कपकोट से विधायक सुरेश गरिया, रुड़की से विधायक प्रदीप बत्रा और खानपुर से निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने मुख्यमंत्री से इस सीट पर लड़ने की पेशकश कर दी है.
वहीं दूसरी ओर धन सिंह रावत और सतपाल महाराज भी मुख्यमंत्री की रेस में आगे बताए जा रहे हैं. ये दोनों नेता गढ़वाल मंडल और राजपूत जाति से हैं. अगर पार्टी किसी राजपूत चेहरे को मुख्यमंत्री बनाती है तो पुष्कर सिंह धामी, धन सिंह रावत और सतपाल महाराज इस रेस में सबसे आगे बताए जा रहे हैं.
अगर पार्टी इस बार किसी ब्राह्मण चेहरे को मुख्यमंत्री बनाती है तो इस रेस में गणेश जोशी, मदन कौशिक, अजय भट्ट और रमेश पोखरियाल निशंक समेत कई नेताओं के मुख्यमंत्री की रेस में होने की खबर है.
पुष्कर सिंह धामी अब तक मीडिया से बात कर रहे थे लेकिन अब वो बचते नजर आ रहे हैं. गणेश जोशी ने भी कोई भी बयान देने से आज इनकार कर दिया. सूत्रों के मुताबिक फिलहाल उत्तराखंड में नेताओं और मंत्रियों को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर अटकलें लगाने और बयान देने के लिए केंद्र की तरफ से मना किया गया है.
लेकिन अंदर खाने सब एक ही बात कह रहे है कि केंद्रीय नेतृत्व जो तय करेगा उसका पालन करेंगे और बीजेपी की सरकार में अटकलें नहीं लगाई जा सकतीं. हालांकि केंद्र ने उत्तराखंड को लेकर चेहरा तय किया होगा. पर्यवेक्षकों के देहरादून आने और विधायकों के साथ बैठक के बाद चेहरे पर मुहर लगा दी जाएगी.
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