Kuno National Park: नामीबिया (Namibia) से भारत (India) तक 8 चीतों (Cheetah) के ले आने के लिए विशेष विमान (Special Plane) तैयार किया गया है. चीते की शक्ल में तैयार हुआ बोइंग 747 (Boing 747 ) का विशेष विमान नामीबिया पहुंच गया है. विशेष विमान के अंदर मौजूद सीटों को हटाकर उसे खाली कर दिया गया है. विमान के भीतर 8 चीतों को विशेष तरह के पिंजरे (Cage) में रखा जाएगा.


देश की राजधानी दिल्ली से करीब 8 हजार किलोमीटर दूर नामीबिया की राजधानी विंडहोक से उड़ान भरकर विमान शनिवार सुबह ग्वालियर में लैंड करेगा और ग्वालियर में लैंड करने के बाद हेलीकॉप्टर के जरिए उन्हें मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क ले जाया जाएगा. हवाई सफर के दौरान चीतों को कुछ भी खाने के लिए नहीं दिया जाएगा ताकि उन्हें किसी तरह की दिक्कत ना हो. नामीबिया से भारत तक के हवाई सफर में ईंधन भराने के लिए भी कहीं कोई ब्रेक नहीं लिया जाएगा.


क्वारंटाइन पीरीयड में रखे जाएंगे चीते


नामीबिया से लाए जा रहे 8 चीतों में 5 मादा हैं जबकि 3 नर चीता हैं. मादा चीतों की उम्र 2 से 5 साल के बीच है जबकि नर चीतों की उम्र 4.5 से 5.5 साल के बीच है. इन चीतों को एक महीने तक क्वारंटाइन पीरियड में रखा जाएगा और इस दौरान 2-3 दिन में इन्हें खाने के लिए 2-3 किलो मीट दिया जाएगा.


हिंदुस्तान में 70 साल पहले ही चीता को विलुप्त घोषित कर दिया गया था. 70 साल से देश में चीते नहीं थे और ऐसा नहीं है कि अचानक चीतों को लाया जा रहा है. 50 साल पहले चीतों को भारत लाने की कोशिश शुरू हुई थी जो मोदी के जन्मदिन के दिन अपने अंजाम तक पहुंचने वाली है.


कूनो नेशनल पार्क में बनाया गया है हेलीपैड


मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में एक हेलीपैड भी बनाया गया है. जहां पर चीतों को स्पेशल आर्मी के हेलीकॉप्टर से लाया जाएगा. 8 चीते जब कूनो पहुंचेंगे तो वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूद होंगे और पिंजरे से चीतों को उनके बाड़े में छोड़ेंगे. नामीबिया से आ रहे तमाम चीतों के गले में एक सैटेलाइट-वीएचएफ रेडियो कॉलर आईडी मौजूद होगी. जिसकी मदद से भविष्य में उनकी मॉनिटरिंग से लेकर संक्रमण तक ट्रैक करने में मदद मिलेगी.


दक्षिण अफ्रीका की सरकार रखेगी नजर


चीतों में किसी तरह का कोई संक्रमण न हो इसके लिए गांवों के अन्य मवेशियों का भी टीकाकरण किया गया है. चीतों के लिए 5 वर्ग किलोमीटर का एक विशेष घेरा बनाया गया है. दक्षिण अफ्रीका की सरकार और वन्यजीव विशेषज्ञ इन पर नजर रखेंगे. चीतों को भारतीय मौसम से लेकर यहां के माहौल में ढलने में एक से तीन महीने का वक्त लग सकता है.


आखिर नामीबिया से ही क्यों आ रहे चीते?


हिमालय वाला इलाका छोड़ दिया जाए तो कोई ऐसी जगह नहीं थी जहां भारत में चीते ना पाए गए हों. ईरान अफगानिस्तान में तो अभी भी एशियाई चीते पाए जाते हैं. साउथ अफ्रीका के नामीबिया से चीते इसलिए आ रहे हैं क्योंकि वहां दिन और रात की लंबाई ठीक वैसी ही होती है जैसी कि हिंदुस्तान में है और यहां का तापमान भी अफ्रीका से मिलता जुलता है.


मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस तक रहता है जबकि न्यूनतम तापमान 6 से 7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है..जो चीतों के लिए मुफीद है. विंध्याचल पर्वत श्रृंखला पर बसा मध्य प्रदेश का कूनो नेशनल पार्क एमपी के श्योपुर और मुरैना जिले में पड़ता है. साल 2018 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया था.


कूनो नेशनल पार्क में क्यों रखे जाएंगे चीते?


मन में एक सवाल होगा कि चीतों के लिए एमपी के कूनो नेशनल पार्क को ही क्यों चुना गया है.. दरअसल, 748 वर्ग किलोमीटर में फैला कूनो नेशनल पार्क को 10 जगहों के सर्वे के बाद फाइनल किया गया है. एमपी में पुनर्वास का रिकॉर्ड सबसे अच्छा रहा है. चीतों को अच्छे शिकार की जरूरत होती है और कूनो नेशनल पार्क में छोटे हिरण, और सुअर की घनी आबादी मौजूद हैं और पूरे पार्क में चीतल, सांबर और नीलगाय की संख्या करीब 25 हजार है यानि चीतों को खाने की कोई कमी नहीं होगी.


साल में 50 जानवर खाता है चीता


चीता हफ्ते में एक बार ही शिकार करता है और इसी से उसका काम चल जाता है. चीता एक बार में 7 से 8 किलो मटन खाता है. ऐसा माना जाता है कि चीता अपने शिकार को छोड़कर नहीं जाता है. चीता ज्यादा ताकतवर माना जाता है और इसलिए उसके शिकार में किसी की हिस्सेदारी नहीं होती. चीते को एक महीने में चार और साल में 50 जानवर चाहिए होते हैं. शिकार के अलावा चीतों को पानी की जरूरत होती है. कूनो नेशनल पार्क के पास कूनो नदी के होने से पानी की प्रचुर मात्रा उपलब्ध है.


चीते को पर्याप्त जगह चाहिए क्योंकि वो 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से जमीन पर सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर है. जो सिर्फ 3 सेकेंड के भीतर 97 किमी प्रति घंटे की तेज रफ्तार पकड़ लेता है. चीता अगर पूरी ताकत से दौड़े तो 7 मीटर लंबी छलांग लगा सकता है.


भारतीय ग्रासलैंड की इकोलॉजी खराब


चीता बिल्ली की प्रजाति का एक जानवर है. लेकिन चीता शेर और बाघ की तरह दहाड़ नहीं सकता बल्कि बिल्ली की तरह गुर्राता है. 8 चीतों का हिंदुस्तान की जमीन पर आना सिर्फ एक घटना नहीं है बल्कि वो जरूरत है जिसका पूरा होना जरूरी था. चीतों के विलुप्त होने से भारतीय ग्रासलैंड की इकोलॉजी खराब हुई थी.. जिसे ठीक करना जरूरी है और 17 सितंबर को चीतों के आगमन के बाद बिगड़ी हुई इकोलॉजी के ठीक होने की शुरुआत हो जाएगी.


70 साल पहले विलुप्त हो गए चीते


चीते को भारत में आखिरी बार साल 1948 में देखा गया था.. साल 1952 में यानि 70 साल पहले भारत सरकार ने चीते को विलुप्त घोषित कर दिया था और फिर 1979 से चीतों को भारत में बसाने की प्रक्रिया शुरु की गई थी. भारत के अलग-अलग राज्यों के जंगल चीतों के घर थे. लेकिन पालने और शिकार करने की वजह से देश में चीतों की संख्या धीरे-धीरे घटने लगी थी.


साल 2010 में शुरू हुई बातचीत को अब मिला मुकाम


साल 1947 में सरगुजा के राजा रामानुज प्रताप सिंह ने 3 चीतों का शिकार किया था. माना जाता है ये ही भारत के आखिरी 3 चीते थे. साल 2010 में इसके लिए भारत सरकार ने नामीबिया से बातचीत शुरु की, लेकिन नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीते लाने का समझौता जुलाई 2022 में हुआ इसी समझौते के पहली कड़ी में अब 8 चीते भारत पहुंच रहे हैं. ऐसा पहली बार हो रहा है जब कोई मांसाहारी जानवर एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में भेजा रहा है.


बदल जाएगा इको सिस्टम


कूनो नेशनल पार्क की जमीन पर 17 सितंबर को अफ्रीका से चीतों के लैंड करते ही यहां के जंगल का ईको सिस्टम बदल जाएगा. यहां रहने वाले तेंदुए अपनी कैट प्रजाति के एक नए वन्य प्राणी से पहली बार मुखातिब होंगे. बिल्कुल उनकी जैसी शक्ल वाले ये चीते 70 साल बाद उनके इलाके में आ रहे हैं. चीता अफ्रीका में कई स्थानों पर पाए जाते हैं. एशियाई चीते सिर्फ ईरान में मिलते हैं. एक अनुमान के मुताबिक 8,000 से कम अफ्रीकी चीते हैं जबकि दुनिया में 50 से कम एशियाई चीते बचे हैं.


दिसंबर से खुले जंगल में घूमेंगे चीते


एमपी के श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में चीते लाए जाने की आहट के बीच आसपास के इलाकों में जमीन के भाव आसमान छूने लगे हैं. माना जा रहा है कि चीतों के आने से पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा. एक अक्टूबर से नेशनल पार्क के दरवाजे आम लोगों के लिए खुलते हैं लेकिन तब तक चीतों का क्वारंटाइन पीरियड पूरा नहीं होगा. माना जा रहा है कि दिसंबर महीने में इन चीतों को खुले जंगलों में छोड़ा जाएगा. तब जंगल सफारी के दौरान आम लोग चीतों को देख पाएंगे.


कूनो नेशनल पार्क के पास के गांवों में वन विभाग ने चीतों की सुरक्षा के लिए ग्रामीणों को चीता मित्र बनाया है. इसका मकसद ये है कि ग्रामीण चीता और तेंदुए में फर्क को समझें. गांव वालों को बताया जा रहा है कि इंसानों को चीतों से खतरा नहीं है क्योंकि चीते कभी इंसान पर हमला नहीं करते हैं.


वेदों पुराणों में मिलता है चीतों का जिक्र


चीता शब्द संस्कृत मूल का शब्द है..इसकी उत्पत्ति संस्कृत शब्द चित्रकायः से हुई है, जिसका अर्थ होता है बहुरंगी शरीर वाला. चीते का उल्लेख वेदों और पुराणों जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है. भारत में सदियों तक चीतों के शिकार का प्रचलन रहा है. दरअसल बाघ की तुलना में चीतों पर नियंत्रण करना आसान था. मुगलकाल में अकबर ने जमकर चीतों का शिकार किया था. कहा जाता है कि अकबर के पास 9000 चीते थे.


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