कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की बेटी यामिनी के एनजीओ पर क्यों हुई कार्रवाई?
गृह मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यह एनजीओ पहले भी एफसीआरए के नियमों के उल्लंघन कर चुका है. जिसके चलते यह पहले भी सरकार के रडार पर था.
कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की बेटी यामिनी अय्यर के एनजीओ ‘पब्लिक पॉलिसी थिंक टैंक’ सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) का फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (FCRA) लाइसेंस सस्पेंड कर दिया गया है. अधिकारियों का कहना है कि ये संस्था नियमों का उल्लंघन कर रही थी.
गृह मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यह एनजीओ पहले भी एफसीआरए के नियमों के उल्लंघन कर चुकी है. जिसके चलते यह पहले भी सरकार के रडार पर था. वहीं लाइसेंस सस्पेंड करने से पहले थिंक टैंक पर इनकम टैक्स का सर्वे भी हो चुका था. पिछले साल सितंबर में सीपीआर और ऑक्सफैम इंडिया पर इनकम टैक्स सर्वे के बाद लाइसेंस की जांच चल रही थी.
एनजीओ का क्या है मणिशंकर की बेटी से कनेक्शन
कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की बेटी यामिनी अय्यर इस एनजीओ के नई दिल्ली की अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी हैं, जिन्हें साल 2017 में इस पद पर नियुक्त किया गया था. इस एनजीओ की अध्यक्ष के पद से पहले साल 2008 में वह केंद्र में अकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव (एआई) की वरिष्ठ शोध साथी और संस्थापक थीं.
यामिनी अय्यर ओपन गवर्मनमेंट पार्टनरशिप के अंतरराष्ट्रीय एक्सपर्ट्स पैनल की संस्थापक सदस्य भी हैं. वह विश्व आर्थिक मंच की ग्लोबल काउंसिल ऑन गुड गवर्नेंस की सदस्य भी रही हैं.
क्या है सीपीआर
सीपीआर का पूरा नाम सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च है. यह एक गैर लाभकारी संगठन है जिसे डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के तहत मान्यता प्राप्त है. सीपीआर की वेबसाइट के मुताबिक ये एनजीओ साल 1973 से ही भारत का टॉप पॉलिसी थिंक टैंक है.
क्या करता है सीपीआर
सीपीआर देश की 21वीं सदी की चुनौतियों पर ध्यान देता है. इसके के यह थिंक टैंक नीतिगत मुद्दों पर गहन शोध करता है. सीपीआर की वेबसाइट के अनुसार यह संस्था भारत के थिंकर और पॉलिसी मेकर्स को एक मंच देता है और नीतिगत मामलों पर फैसले लेता है. सीपीआर का दावा है कि इसका मुख्य उद्देश्य भारत के इको सिस्टम को विकसित करना है.
सीपीआर पर क्या-क्या हैं आरोप
इस एनजीओ पर पिछले साल सितंबर महीने में आईटी की छापेमारी हुई थी. सूत्रों का दावा है कि सीपीआर ने राजनीति दलों के लिए करोड़ों रुपए का चंदा इकट्ठा किया है. वहीं इस चंदे के नाम पर करोड़ों रुपए की टैक्स चोरी करने का भी आरोप है.
2016 में किया गया था लाइसेंस को रिन्यू
थिंक टैंक का सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च का लाइसेंस आखिरी बार साल 2016 में सीपीआर के जरिए रिन्यू किया गया था. जिसके बाद इसी लाइसेंस को केंद्र सरकार ने कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान एक्सटेंशन दिया गया था. इस एक्सटेंशन के बाद FCRA के लाइसेंस का रिन्यूअल साल 2021 में होना चाहिए था.
रिपोर्ट के मुताबिक सीपीआर को कई देशों से फॉरेन फंडिंग मिल चुकी है. इसमें फोर्ड फाउंडेशन भी शामिल है. थिंक टैंक के रूप में काम कर रहे इस एनजीओ पर यह आरोप भी लगा है कि इसने तीस्ता सीतलवाड़ के NGO को डोनेशन दिया था. जबकि तीस्ता के एनजीओ सबरंग का लाइसेंस गृह मंत्रालय ने साल 2016 में ही रद्द कर दिया था.
क्या है एफसीआरए
एफसीआरए का पूरा नाम फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट है. इसे हिंदी भाषा में विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम कहा जाता है. एफसीआरे को साल 1976 में बनाया गया था और इसमें साल 2010 में संशोधन भी किया गया.
एफसीआरए का काम आसान भाषा में समझे तो कोई भी गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठन जो सामाजिक या सांस्कृतिक कामों के लिए विदेशों से चंदा लेना चाहती है तो उसे एफसीआरए के तहत रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होता है. एफसीआरए उस एनजीओ को लाइसेंस प्रदान करती है. जिसके बाद वह उसे फॉरेन फंड लेने की इजाजत होती है.
इसके साथ ही एफसीआरए का काम विदेश से मिल रहे फंडिंग पर नजर रखना भी है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी एनजीओ को अलग विदेशों से फंडिंग मिल रही है तो उसका उद्देश्य क्या है. एफसीआरए इस बात की पुष्टि भी करता है कि फॉरेन फंडिंग है किसी तरह की आतंकी फंडिंग तो नहीं है.
सुरक्षा से जुड़ी जानकारी रखना भी एफसीआरए का काम ही है. अगर एफसीआरए को किसी तरह की गलत फंडिंग के बारे में पता चलता है तो उसके पास उस एनजीओ के रजिस्ट्रेशन या लाइसेंस को होल्ड या रद्द करने का अधिकार भी है.
कितने सालों तक होता है ये लाइसेंस मान्य
यह लाइसेंस शुरुआत में 5 साल के लिए मान्य होता है. पांच साल बाद एक बार फिर इसे रिन्यू कराना पड़ता है. कोई भी एनजीओ या संस्था एक बार एफसीआरए में रजिस्टर्ड हो जाए तो इसके बाद उस संस्था को एफसीआर के नियमों का पालन करना होता है.
जैसे कि हर साल ससंथा का हर हाल में इनकम टैक्स भरना होता है. इसके लाइसेंस को समय पर रिन्यू करना होता है. एफसीआर के लाइसेंस मिलने के बाद उस संस्था पर राजनीतिक दल, सरकारी अधिकारी, विधानमंडल के सदस्य, जज और मीडिया को विदेशों से चंदा उगाही पर पाबंदी है. हालांकि वो विदेशी कंपनियां जिनका भारत में 50 प्रतिशत से ज्यादा शेयर है वो दान कर सकती है.
एफसीआरए लाइसेंस रद्द करने से एनजीओ पर क्या असर होगा
इस लाइसेंस को सस्पेंड करने के कारण यह होगा कि इस थिंक टैंक को अब विदेशों से मिलने वाली फंडिंग पर रोक लगा दी जाएगी. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सीपीआर को फंड देने में कई विदेशी संस्थाओं का नाम सामने आया है. इन संस्थाओं में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया, वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट और ड्यूक यूनिवर्सिटी जैसे नाम भी शामिल हैं. इस संस्था को इंडियन काउंसिल फॉर सोशल साइंस रिसर्च से भी फंड मिलता है.
अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार गृह मंत्रालय ने थिंक टैंक को एफसीआर के तहत मिले चंदे के बारे में स्पष्टीकरण मांगा था.
अब समझते हैं कि आखिर ये थिंक टैंक क्या है
राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सैन्य, विदेश नीति, तकनीकी एवं संस्कृति जैसे विषयों पर अनुसंधान एवं रणनीति तैयार करने वाले संस्थानों को थिंक टैंक कहा जाता है. ये थिंक टैंक (नीति निर्माण या अनुसंधान संस्थान) आम तौर पर गैर-लाभकारी संगठन होते हैं, लेकिन कुछ संस्थान ऐसे भी हैं जो केंद्र या अलग अलग समूहों की वित्तीय सहायता से चलते हैं.
'थिंक टैंक' शब्द का इस्तेमाल साल 1950 में हुआ था, लेकिन ये संगठन 19वीं शताब्दी से अस्तित्व में आया. इसकी स्थापना साल 1831 में लंदन के द इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस ऐंड सिक्योरिटी स्टडीज में हुई थी.
पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय के थिंक टैंक ऐंड सिविल सोसायटीज प्रोग्राम (टीटीसीएसपी) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के सिर्फ 6 थिंक टैंक ही दुनिया भर के शिर्ष 150 वैश्विक थिंक टैंक में जगह बना पाए हैं. वहीं दुनिया भर में करीब 4,500 थिंक टैंक हैं.
विदेशी फंडिंग पर क्या हैं नियम?
साल 1976 में इंदिरा गांधी की सरकार में पहली बार फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट लाया गया. इसके बाद साल 2010 में मनमोहन सरकार में इसी कानून में संशोधन कर इसे और सख्त किया. संशोधन के बाद इस एक्ट के तहत राजनीति से जुड़ी संस्थाओं की फॉरेन फंडिंग पर रोक लगा दी गई.
इसके बाद साल 2014 के मई महीने में केंद्र में मोदी सरकार आई और इस कानून को और सख्त किया गया. 2014 में किए गए संशोधन के बाद एनजीओ को जितनी विदेशी फंडिंग मिलेगी, उसका केवल 20 प्रतिशत ही प्रशासनिक कामकाज में इस्तेमाल किया जाएगा. जबकि संशोधन से पहले ये सीमा 50 प्रतिशत तक की थी.
इसके अलावा नियम कहता है कि एक एनजीओ विदेश से मिलने वाले फंड को दूसरे एनजीओ के साथ साझा नहीं कर सकता. एनजीओ को जो भी विदेशी से चंदा मिलेगा, वह केवल नई दिल्ली की एसबीआई ब्रांच में ही रिसीव किया जाएगा.
ऑक्सफैम का लाइसेंस भी किया जा चुका है रद्द
सीपीआर से पहले ऑक्सफैम का एफसीआरए लाइसेंस भी रद्द किया जा चुका है. इस साल 2022 के जनवरी महीने में ऑक्सफैम का रद्द किया जा चुका है, जिसके बाद इस एनजीओ ने गृह मंत्रालय के पास एक पुनरीक्षण याचिका दायर की थी.
राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट का लाइसेंस भी हो चुका है रद्द
गृह मंत्रालय ने साल 2022 के अक्टूबर महीने में कांग्रेस परिवार से जुड़े राजीव गांधी फाउंडेशन और राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट की भी एफसीआरए रजिस्ट्रेशन को रद्द कर दिया था.
अपने बयानों के कारण सुर्खियों में रहे हैं मणिशंकर अय्यर
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा के पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री मणिशंकर अय्यर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निशाना साधते हुए विवादित बयान देकर सुर्खियों में आ गए थे. उन्होंने कहा, ''ये 'संघ परिवार' के लोग हैं, जो भारत को धर्म, भाषा और जाति के आधार पर 'टुकड़े-टुकड़े' में विभाजित कर रहे हैं. ये यात्रा इसके खिलाफ है. हमें देश को तोड़ने की कोशिशों के खिलाफ लड़ना होगा.''
23 नवंबर 2021 को दिल्ली में भारत-रूस के रिश्तों को लेकर आयोजित सेमिनार में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने भारत-अमेरिका के बीच मजबूत हो रहे संबंधों को लेकर सवाल खड़े करते हुए भारत को अमेरिका का गुलाम बता दिया था. उन्होंने कहा था, 'पिछले सात साल से हम देख रहे हैं कि गुटनिरपेक्षता की तो बात ही नहीं होती, शांति को लेकर कोई चर्चा नहीं होती है. अमेरिकियों के गुलाम बनकर बैठे हैं और उनके कहने पर हम चीन से बच रहे हैं. हम कहें कि चीन के सबसे करीब दोस्त तो आप ही हो.'
दिसंबर 2017 को मणिशंकर अय्यर ने पीएम मोदी को लेकर विवादित बयान दिया. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि ये आदमी बहुत नीच किस्म का आदमी है, इसमें कोई सभ्यता नहीं है, और ऐसे मौके पर इस किस्म की गंदी राजनीति करने की क्या आवश्यकता है?"