Gautam Adani Calculation Of Debt: अडाणी ग्रुप ने पिछले कुछ सालों में इतनी कंपनियों का टेक-ओवर किया, विश्‍लेषक गिनती करते-करते थक गए. अडाणी ग्रुप इतना कर्ज क्‍यों ले रहा है? यह सवाल मार्केट में बीते कुछ समय से हर कोई पूछ रहा है. आलोचक दावा कर रहे हैं कि अडाणी ग्रुप के कर्ज का बुलबुला, जिस दिन फूटेगा, उस दिन बैंकों को बड़ा नुकसान होगा. अडाणी ग्रुप पर कर्ज से जुड़ा यह सवाल अब लाख टके का बन चुका है तो आइए हम जानते हैं इसका जवाब खुद गौतम अडाणी से-      


सवाल: एक बड़ी आलोचना यह भी होती है कि आपके ग्रुप की कंपनियों पर कर्ज का ऐसा बोझ है कि बुलबुला फटा तो बैंकों का बड़ा नुक्सान होगा?
गौतम अडाणी: आपने बहुत अच्छा सवाल पूछा है. आपको पता ही है कि इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों को काफी धन की जरूरत होती है, लिहाजा कर्ज लेना ही होता है. अब अगर कर्ज लम्बी अवधि के लिए हो, अच्छे टर्म्स पर मिले और उन पैसों से आप बहुत तेजी से तरक्की कर पा रहे हो तो यह अच्छी रणनीति है. हमारे समूह पर पिछले 9 साल में कर्ज 11 फीसदी की रफ्तार से बढ़ा और कमाई उसके दोगुनी यानी 22 फीसदी की रफ्तार से तो बताइए यह बढ़िया रणनीति है न? यही वजह है कि इन 9 सालों में मेरी कंपनियों के शेयर्स के भाव बहुत तेजी से बढ़े हैं और निवेशक एवं शेयरहोल्डर्स को अत्यधिक लाभ हुआ है.


एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि पिछले 9 वर्षों में कर्ज, और कर्ज चुकाने के लिए आय जिसे -EBIDTA कहते हैं के अनुपात में लगभग 50 प्रतिशत की कमी आई है. यह भी उल्लेखनीय है कि इसी समयकाल में ऋण में सरकारी और प्राइवेट बैंक का हिस्सा 84 प्रतिशत से घटकर मात्र 33 प्रतिशत रह गया है. मतलब यह हुआ कि लगभग 60 प्रतिशत की गिरावट आई है. ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि सारे आरोप आधारहीन हैं. इतिहास साक्षी है कि कर्ज चुकाने में डिफॉल्ट तो छोड़िए, अडाणी ग्रुप ने कभी एक दिन का भी विलंब भी नहीं किया है.


कंपनियों के वित्तीय स्वास्थ्य के आंकलन में रेटिंग एजेंसीज का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. रेटिंग एजेंसीज की सबसे अच्छी रेटिंग सॉवरिन रेटिंग होती है. मुझे बताते हुए बड़ी खुशी है कि हमारी लगभग सभी अडाणी कंपनियों को सोवरिन रेटिंग प्राप्त है, जो भारत सरकार की रेटिंग के बराबर है. जानने वाली बात यह भी है कि हमारे अलावा, भारत के किसी और समूह की इतनी सारी कंपनियों को सॉवरिन रेटिंग नहीं मिली है.


कर्ज तो कोई मुद्दा ही नहीं है. ताज्जुब की बात है कि हमारी कंपनियों पर कर्ज को तो इतना हाइलाइट किया जाता है, लेकिन इस बात की चर्चा कभी नहीं होती कि पिछले तीन साल के दौरान हमें करीब 1,30,000 करोड़ रुपयों का निवेश मिला है और वह भी दुनिया के सबसे बड़े निवेशकों से.


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