शिंदे गुट के तेवर और नंबर गेम का खेल... बगावत की अटकलों के बीच बैकफुट पर क्यों आए अजित पवार?
महाराष्ट्र में एनसीपी में टूट की खबर पर दो दिन तक मौन अजित पवार अचानक मीडिया के सामने आए. पत्रकारों के सवाल से झलाए अजित ने कहा कि मैं एनसीपी कभी नहीं छोड़ूंगा.
राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में टूट की खबरों को पार्टी प्रमुख शरद पवार ने खारिज कर दिया. पवार के पत्रकारों से बातचीत के 30 मिनट बाद उनका भतीजा अजित पवार भी मीडिया के सामने आए. अजित बगावत के मुद्दे पर करीब 24 मिनट तक बोले और कहा एनसीपी में काम करने की बात कहते रहे.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में अजित ने कहा कि मैं एनसीपी को मजबूत करने के लिए काम करता रहूंगा. मीडिया ने फेक खबर फैलाई है. एनसीपी से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीन गया है, इसलिए हमारी कोशिश इसे वापस लाने की है. अजित पवार ने इस दौरान एनसीपी विधायकों से सादा कागज पर हस्ताक्षर कराने के आरोपों को खारिज कर दिया.
30-35 विधायकों को तोड़कर बीजेपी में शामिल होने की चर्चा से बैकफुट पर आए अजित पवार ने संजय राउत पर भी निशाना साधा. अजित ने कहा कि कोई बाहरी लोग एनसीपी को लेकर बयान जारी नहीं कर सकता है. एनसीपी के पास अपना नेता और प्रवक्ता है.
उन्होंने कहा कि एनसीपी शरद पवार की पार्टी है और उनके साथ सभी लोग मजबूती से खड़े हैं. अजित पवार महाराष्ट्र के पूर्व डिप्टी सीएम रहे हैं. वर्तमान में एनसीपी विधायक दल के नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं.
अजित पवार के एनसीपी छोड़ने की अटकलें क्यों?
1. नरेंद्र मोदी की तारीफ, फडणवीस से मिले- अजित पवार पिछले दिनों अपने एक बयान से खूब सियासी सुर्खियां बटोर चुके हैं प्रधानमंत्री के डिग्री विवाद पर उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी के अपने जलवे हैं, उन्हें जनता ने डिग्री देखकर नहीं चुना है.
बयान पर सियासी घमासान थमा नहीं था कि अजित पवार महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस से मिल आए. अजित पवार ने इस मुलाकात को भले किसानों के लिए बताया, लेकिन सियासी गलियारों में इसके अलग मायने निकाले गए.
अजित पवार यहीं नहीं रूके, नागपुर में शिंदे गुट पर सुप्रीम कोर्ट के आने वाले संभावित फैसलों को लेकर भी मीडिया से बातचीत की और वर्तमान सरकार के नहीं गिरने की भविष्यवाणी कर दी. उन्होंने कहा कि शिंदे के पक्ष में फैसला नहीं भी आता है तो महाराष्ट्र की सरकार नहीं गिरेगी.
2. सोशल मीडिया अकाउंट से हटाया एनसीपी का झंडा- अजित पवार ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से एनसीपी का लगा झंडा हटा लिया है. पवार के ट्वीटर और फेसबुक पेज के कवर में एनसीपी का झंडा लगा फोटो लगा था.
अजित पवार के एनसीपी छोड़ने के अटकलों के पीछे इसे भी वजह माना जा रहा है. इधर, अजित पवार के करीबी धनंजय मुंडे राज्य सरकार के मंत्री से मिलने चले जाते हैं. मुंडे और मंत्री के मुलाकात के बाद यह चर्चा और जोर पकड़ लेती है.
3. शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले का विस्फोट वाला बयान- शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले से जब पत्रकारों ने सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में आगामी 15 दिनों में एक नहीं, दो सियासी विस्फोट होंगे.
दरअसल, मंगलवार को महाराष्ट्र के दलित नेता प्रकाश अंबेडकर ने 15 दिन में एक सियासी विस्फोट के बयान पर पत्रकारों ने सुले से यह सवाल पूछा था. सुले के बयान के बाद सियासी कोहरा और अधिक धुंधलाने लगा.
4. 40 विधायकों के हस्ताक्षर का दावा- अंग्रेजी अखबर द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने मंगलवार को एनसीपी को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की. अखबार के मुताबिक अजित पवार ने 40 विधायकों का हस्ताक्षर एक सादे कागज पर करवा लिए हैं.
अजित इन्हीं हस्ताक्षरों के सहारे फिर से बीजेपी के साथ मिल सकते हैं. अखबार ने शिंदे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा है कि अगर शिवसेना के 16 विधायकों की सदस्यता रद्द होती है, तो अजित पवार सीएम भी बन सकते हैं. अखबार ने शरद पवार की भूमिका पर भी सवाल उठाया.
इधर, शिवसेना (यूटी) के मुखपत्र सामना में सांसद संजय राउत ने इशारों ही इशारों में एक लेख में एनसीपी के कुछ नेताओं के बीजेपी में जाने का जिक्र किया, जिसके बाद से ही महाराष्ट्र में सियासी भूचाल आ गया. मंगलवार की सुबह शरद पवार से पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने फोन पर बात की. पवार तब तक हरकत में आ गए थे.
शरद पवार हुए एक्टिव तो अजित को देनी पड़ी सफाई
40 विधायकों के हस्ताक्षर की खबरें प्रकाशित होने के बाद शरद पवार एक्टिव हुए. उन्होंने पत्रकारों से बातचीत करते हुए एनसीपी में टूट की खबरों को सिरे से खारिज कर दिया. पवार ने कहा कि अजित और जयंत एनसीपी को मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं.
शरद पवार के बयान के बाद बैकफुट पर आए अजित पवार को भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करना पड़ा. अजित ने इसी कॉन्फ्रेंस में एनसीपी नहीं छोड़ने की बात कही. अजित ने कहा कि हलफनामे पर भी लिख कर दे सकता हूं कि एनसीपी नहीं छोड़ सकता हूं.
यह पहली बार नहीं हैं, जब एनसीपी में शरद पवार के एक्टिव होने के बाद अजित बैकफुट पर आए हों. इससे पहले 2019 में अजित पवार ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना लिया था. देवेंद्र फडणवीस के साथ अजित का शपथ ग्रहण भी हो गया था, लेकिन शरद पवार के एक्टिव होने के बाद पासा पलट गया. अजित को इस्तीफा देना पड़ा.
बगावत की खबर के बीच बैकफुट पर कैसे आए अजित पवार?
अजित पवार के बीजेपी में जाने की अटकलें पिछले 2 दिनों से लग रही थी, लेकिन अजित चुप थे. कहा जा रहा है कि अजित पवार ने इस दौरान कई विधायकों से बातचीत भी की. एनसीपी के 3 विधायकों ने तो खुलकर अजित के समर्थन में बयान दिया. इसके बावजूद अजित जीवन भर एनसीपी में ही रहने की बात कही. आखिर इसके पीछे वजह क्या है?
1. सरकार में शामिल शिवसेना शिंदे गुट के तेवर- अजित पवार और बीजेपी में जो खिचड़ी पक रही थी, इससे शिवसेना का शिंदे गुट खासा नाराज चल रहा था. शिंदे गुट के विधायक संजय सिरसाट ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर साफ कह दिया कि अगर अजित पवार विधायकों के साथ आते हैं तो हम बीजेपी गठबंधन से बाहर निकल जाएंगे.
शिवसेना के शिंदे गुट के तेवर से पवार समेत बीजेपी भी सकते में आ गई. शिवसेना का मामला भले सुप्रीम कोर्ट में है, लेकिन अभी सरकार बीजेपी-शिवसेना का ही है. बीजेपी शिवसेना को किसी भी सूरत में नाराज नहीं करना चाहेगी.
शिंदे सरकार में मंत्री अब्दुल सत्तार ने भी कहा है कि महाराष्ट्र में अगले चुनाव तक एकनाथ शिंदे ही राज्य के मुख्यमंत्री होंगे.
2. दो तिहाई विधायक समर्थन में नहीं- महाराष्ट्र विधानसभा में एनसीपी के पास अभी 53 विधायक हैं. सदस्यता रद्द से बचने और पार्टी तोड़ने के लिए करीब 40 विधायकों की जरूरत होती है. अजित विधायकों से चर्चा तो कर लिए, लेकिन 40 विधायकों का समर्थन नहीं जुटा पाए.
13-15 विधायक ही अजित पवार के साथ बीजेपी में जाने को तैयार हुए. बाकी के विधायक शरद पवार के हरी झंडी का इंतजार कर रहे हैं. इनमें कई जयंत पाटिल, जितेंद्र अव्हाड, दिलीप वलसे पाटिल जैसे दिग्गज शामिल हैं.
40 विधायक अगर साथ नहीं जाते हैं तो ऐसी स्थिति में विधानसभा की सदस्यता रद्द हो सकती थी. यही वजह है कि अजित पवार ने शरद पवार के बयान के तुरंत बाद सफाई दे दी है.
3. सांसदों और वरिष्ठ पदाधिकारियों का समर्थन नहीं- महाराष्ट्र से एनसीपी का 4 लोकसभा सांसद हैं, एक फैजल पी लक्षद्वीप से सांसद हैं. राज्यसभा में पार्टी के पास 4 सीटें हैं. लोकसभा और राज्यसभा दोनों जगहों पर शरद पवार के करीबी ही सांसद हैं.
ऐसे में अजित को सांसदों का भी समर्थन नहीं मिला. पार्टी के टॉप पोस्ट पर भी शरद पवार के करीबी को ही जिम्मेदारी मिली है. ऐसे में संगठन का साथ भी अजित पवार को नहीं मिला. पवार इसी वजह से हिट विकेट नहीं होना चाहते थे और मामले में आकर सफाई दे दिए.
4. गलती नहीं दोहराना चाह रही बीजेपी- 2019 में अजित पवार एक सादे कागज पर विधायकों का हस्ताक्षर लेकर देवेंद्र फडणवीस के पास पहुंच गए थे, जिसके बाद दोनों का शपथ राजभवन में हुआ था. हालांकि, विधायक सभी शरद पवार के साथ रह गए और फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा.
इस मामले में बीजेपी की खूब किरकिरी हुई. बाद में देवेंद्र फडणवीस ने इसके पीछे शरद पवार की साजिश बताया था.
बीजेपी इस बार यह गलती शायद नहीं दोहराना चाह रही हो. यही वजह है कि बीजेपी अजित पवार को लेकर ज्यादा उत्सुकता नहीं दिखा रही थी. अजित को यहां भी बैकफुट पर आना पड़ा.