त्रिपुरा की बीजेपी सरकार ने सौरव गांगुली को पर्यटन का ब्रांड एंबेसडर बनाया है. इसके बाद ये सवाल उठने लगे हैं कि सौरव गांगुली ने बीजेपी शासित राज्य त्रिपुरा में पर्यटन का ब्रांड एंबेसडर बनने के लिए हामी कब भरी थी?  


बीजेपी और सौरव गांगुली के बीच 2021 में मदभेद की खबर सामने आई थीं, लेकिन अब जिस तरह गांगुली ने यह भूमिका स्वीकारी है ऐसे में कहा जा सकता है कि दोनों पक्षों ने दरवाजा पूरी तरह से बंद होने से पहले एक-दूसरे को मना लिया है, लेकिन इस बदलाव का पानी किस दिशा में बहेगा ये अभी कहा नहीं जा सकता. 


त्रिपुरा सरकार की तरफ से सौरव को की गई पेशकश एक 'प्रशासनिक' फैसले के रुप में देखा जा सकता है. लेकिन यह भी सच है कि इस पूरे मामले में अगर बीजेपी की 'मंजूरी' नहीं होती तो ये प्रस्ताव नामुमकिन था.


आनंद बाजार डॉट कॉम में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक सौरव को ये अच्छे से पता था कि अगर वह बीजेपी शासित राज्य का 'चेहरा' बनने के प्रस्ताव पर सहमत होते हैं, तो इससे 'राजनीतिक अटकलें' पैदा होंगी.


इसके बावजूद सौरव ने ऑफर कबूल किया, लेकिन सवाल ये है कि इस प्रस्ताव और आम सहमति के पीछे की असल वजह क्या है.


क्या बीजेपी में शामिल होंगे गांगुली


कई जानकारों का मानना है कि यह दोनों पक्षों की ओर से एक "संदेश" है. यहां संदेश का साफ मतलब ये है कि दोनों के रिश्ते में पैदा हुई खटास मिटाई जा सकती है.


आनंद बाजार डॉट कॉम में छपी रिपोर्ट के मुताबिक यह निष्कर्ष निकालना अनुचित होगा कि सौरव बीजेपी में शामिल होंगे या सक्रिय राजनीति में आने का कोई मैसेज है. 


रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि बीजेपी के एक वर्ग ने कहा कि सौरव के साथ पार्टी के संबंध हमेशा "सौहार्दपूर्ण" रहे हैं. उन्होंने यह भी दावा किया कि सौरव को अपना पर्यटन ब्रांड एंबेसडर बनाने का त्रिपुरा सरकार का निर्णय पूरी तरह से "प्रशासनिक" है.


पश्चिम बंगाल में राज्यसभा चुनाव अगस्त में होंगे. इस बार बीजेपी के विधायकों की संख्या ज्यादा होने से उसका एक सीट पर जीतना तय है. सवाल ये है कि क्या बीजेपी सौरव को इस सीट के लिए नामित करने का प्रस्ताव रखेगी? इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या सौरव इसके लिए सहमत होंगे?


आनंद बाजार डॉट कॉम के मुताबिक कई जानकारों का मानना है कि सौरव की राजनीतिक बुद्धिमत्ता उनके क्रिकेट दिमाग से ज्यादा तेज है. सौरव कोई भी फैसला सोच समझ कर ही लेंगे.


बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक राज्यसभा सीट के लिए किसे नामित किया जाएगा, इस पर पार्टी के भीतर दो तरह के विचार हैं.


एक पक्ष चाहता है कि किसी ऐसे व्यक्ति को नामित किया जाए जो पूरी तरह से "राजनीतिक" है. जिन्हें 'भविष्य के नेता' के रूप में तैयार किया जाएगा. दूसरा पक्ष ये है कि किसी ऐसे व्यक्ति को चुना जाना चाहिए जो बंगाली 'कुलीन' समाज को संदेश दे सके. दूसरे पक्ष के तर्क को देखा जाए तो सौरव से ज्यादा उपयुक्त कोई नहीं है.  


बीजेपी पहले भी कर चुकी है सौरव को 'पेशकश'


2021 से पहले बीजेपी ने सौरव को बंगाल में विधानसभा चुनावों में अपना "चेहरा" बनने की पेशकश की थी. उस दौरान पश्चिम बंगाल  के सत्ता के गलियारों मेंये  सबसे बड़ा सवाल था कि क्या भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और बीसीसीआई के अध्‍यक्ष सौरव गांगुली  बीजेपी में शामिल होंगे या नहीं.  उसी बीच सौरव ने एक बयान देकर खुले तौर पर तो नहीं, लेकिन इशारों में बीजेपी को 'न' कह दिया था. 


दरअसल सौरव गांगुली एक टीवी चैनल से बातचीत की थी.  राजनीति जॉइन करने के सवाल पर उन्होंने बांग्ला में जवाब देते हुए कहा, 'सोबई सोब किछुर जोन्यो होय ना. ' मतलब कि हर कोई, हर एक रोल के लिए नहीं बना होता है.  उनके इस बयान से ये कयास लगाए जा चुके थे कि इशारों-इशारों में सौरव ने बीजेपी को 'ना' कह दिया है. हुआ भी ऐसा ही... सौरभ पीछे हट गए. 


सौरव के करीबियों की मानें तो वो (सौरव गांगुली) का मानना था कि वह चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं. जानकारों के मुताबिक अमित शाह बीजेपी नेतृत्व ये चाहता था कि सौरव बीजेपी की ओर से ममता बनर्जी की पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ें. हालांकि दोनों पक्षों की ओर से कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई. 


सौरव को बीसीसीआई अध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा


इसके बाद खबर आई कि सौरव गांगुली को बीसीसीआई के अध्यक्ष पद पर रिटेन नहीं किया गया.  उनको पद छोड़कर जाना पड़ा. नए अध्यक्ष के लिए पूर्व भारतीय क्रिकेटर रोजर बिन्नी ने नामांकन भरा. लेकिन सार्वजनिक रूप से सौरव और बीजेपी के बीच के रिशते की खटास खुल कर सामने नहीं आई थी.  बाद में सौरव को बीसीसीआई के अध्यक्ष पद पर वापस बुला लिया गया. 


मामले पर कई जानकारों का ये भी मानना है कि सौरव को बीजेपी के साथ संबंधों की 'जटिलता' की वजह से बीसीसीआई अध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा था. आनंद बाजार डॉट कॉम के मुताबिक क्रिकेट बिरादरी में कई लोग जानते हैं कि उन्हें बीजेपी नेतृत्व के संरक्षण में अंतिम समय में यह पद मिला था. 


ममता बनर्जी के साथ भी सौरव का रिश्ता अच्छा


कोलकाता दौरे के दौरान शाह ने बीजेपी के प्रदेश नेताओं के साथ सौरव के आवास पर रात्रिभोज किया था. दूसरी ओर, तीसरी बार सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सौरव को जन्मदिन (8 जुलाई, 2021) पर घर जाकर बधाई दी थी.


जनवरी 2022 में ममता बनर्जी ने बीमार सौरव गांगुली के लिए फल, मिठाई, शुभकामनाएं और फूल भी भेजे थे. अमित शाह ने भी 6 मई 2022 को सौरव के घर का दौरा किया था. इस दौरान सौरव भी एक बार खुद को ममता के करीब बता चुके थे.


एक साल बाद अब कहानी में "ट्विस्ट" हुआ है. त्रिपुरा के पर्यटन मंत्री सुशांत चौधरी ने कहा कि उन्होंने आईपीएल के दौरान सौरव से संपर्क किया और प्रस्ताव दिया. तभी सौरव ने अपनी सैद्धांतिक सहमति दे दी. उस दौरान सौरव दिल्ली में थे.


सौरव जैसे ही अपनी टीम का आईपीएल अभियान खत्म होने के बाद कोलकाता लौटे, त्रिपुरा के पर्यटन मंत्री सुशांत अपने विभाग के अधिकारियों के साथ मंगलवार को सौरव के घर भी गए थे. 


त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने भी की सौरव से बात


सौरव ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा से भी फोन पर बात की. इसके बाद अंतिम निर्णय लिया गया. सौरव जून की शुरुआत में लंदन जाने वाले हैं. उसके बाद सौरव त्रिपुरा की राजधानी अगरतला जा सकते हैं. सौरव ने त्रिपुरा की बीजेपी सरकार का ऑफर स्वीकार कर लिया है. 


सौरव द्वारा त्रिपुरा सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार किए जाने के बाद बीजेपी नेताओं के एक वर्ग को लगता है कि गांगुली को पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा उनको ब्रांड एंबेसडर के रूप में नियुक्त नहीं किया , लेकिन बीजेपी ने सौरव को मौका दे दिया. 


रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, 'बंगाल में कई निपुण और प्रतिभाशाली लोग हैं. जो अखिल भारतीय क्षेत्र में भी प्रसिद्ध हैं. सौरव उनमें से एक हैं. लेकिन ममता ने उन्हें राज्य का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त करने के बजाय, शाहरुख खान को बना दिया जो कि बाहरी हैं.'


पूरे मामले पर राजनीति की तलाश करना व्यर्थ?


दूसरी तरफ कई जानकारों का कहना है कि इसमें राजनीति की तलाश करना व्यर्थ है. त्रिपुरा ने अपनी राज्य टीम को मजबूत करने के लिए बंगाल के क्रिकेटर रिद्धिमान साहा को शामिल किया है. वे दक्षिण अफ्रीका के पूर्व ऑलराउंडर लांस क्लूजनर को उस टीम का निदेशक बनाना चाहते हैं. यह विशुद्ध रूप से क्रिकेट कारणों से है. सौरव को ब्रांड एंबेसडर बनाने का निर्णय भी 'त्रिपुरा' ब्रांड को मजबूत करने के लिए है.


ये भी तय है कि कोई भी इसके बारे में औपचारिक बयान नहीं देना चाहता है यहां तक की सौरव भी नहीं. रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य ने कहा, 'यह पूरी त्रिपुरा सरकार का प्रशासनिक फैसला है. अगर बंगाली भाषी राज्य सौरव की स्वीकृति का फायदा उठाता है, तो यह खुशी की बात है. ''


सौरव के बीजेपी शासित त्रिपुरा का ब्रांड एंबेसडर बनने के मुद्दे पर टीएमसी भी पैनी नजर रख रही है. लेकिन वे सौरव के खिलाफ सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कह सकते. हालांकि, पार्टी के राज्य सचिव और प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, 'सौरव हमेशा से एक अच्छे ऑलराउंडर रहे हैं.