सेना में प्रवेश के समय लड़कियों से भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. याचिका में बताया गया है कि लड़कियों को सेना की नौकरी देते समय न्यूनतम ग्रेजुएशन की शर्त रखी गई है. जबकि लड़कों को 12वीं की परीक्षा के बाद नेशनल डिफेंस एकेडमी में शामिल होने दिया जाता है.


इस तरह से लड़कियां सेना में अपनी सेवा की शुरुआत में ही लड़कों से पिछड़ जाती हैं. जब तक लड़कियां सेना में शामिल होती हैं, तब तक उनकी आयु के लड़के स्थाई कमीशन वाले अधिकारी बन चुके होते हैं. वकील कुश कालरा और अनीता की याचिका आज चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच में लगी. उनकी तरफ से एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड मोहित पॉल ने कोर्ट को बताया कि वकील चिन्मय प्रदीप शर्मा पैरवी करेंगे.


लेकिन किसी जिरह की जरूरत ही नहीं पड़ी. याचिका को पढ़कर आए जजों ने रक्षा मंत्रालय, नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) और यूपीएससी को नोटिस जारी कर दिया. याचिका में लिखा गया है कि सेना में युवा अधिकारियों की नियुक्ति करने वाले नेशनल डिफेंस एकेडमी और नेवल एकेडमी में सिर्फ लड़कों को ही दाखिला मिलता है. ऐसा करना उन योग्य लड़कियों के मौलिक अधिकारों का हनन है, जो सेना में शामिल होकर देश की सेवा करना चाहती हैं.


याचिका में सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल आए उस फैसले का हवाला दिया गया है जिसमें महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए कहा गया था. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि जिस तरह कोर्ट ने सेवारत महिला सैन्य अधिकारियों को पुरुषों से बराबरी का अधिकार दिया, वैसा ही उन लड़कियों को भी दिया जाए जो सेना में शामिल होने की इच्छा रखती हैं.


याचिका में बताया गया है कि लड़कों को नेशनल डिफेंस एकेडमी और नेवल एकेडमी में 12वीं कक्षा के बाद शामिल होने दिया जाता है. लेकिन लड़कियों के लिए सेना में शामिल होने के जो अलग-अलग विकल्प हैं, उनकी शुरुआत ही 19 साल से लेकर 21 साल तक से होती है. उनके लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता भी ग्रेजुएशन रखी गई है. ऐसे में जब तक लड़कियां सेना की सेवा में जाती हैं, तब तक 17-18 साल की उम्र में सेना में शामिल हो चुके लड़के स्थायी कमीशन पाए अधिकारी बन चुके होते हैं. इस भेदभाव को दूर किया जाना चाहिए.


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