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आखिर क्यों भेजे जा रहे हैं तमिलनाडु से गुजरात 1000 मगरमच्छ?

अरबपति मुकेश अंबानी के गुजरात के जू में जल्द ही तमिलनाडु के मगरमच्छ नजर आएंगे. ये पहली बार है कि पीएम नरेंद्र मोदी के गृहप्रदेश भेजे जाने वाले इन जीवों की तादाद भी अच्छी खासी है.

मगरमच्छ के आंसू वाली कहावत तो हर किसी ने सुनी होगी, लेकिन शायद इस बार इनके ये आंसू दिखावे के नहीं होंगे, क्योंकि इन्हें इनके घर से हजार किलोमीटर दूर भेजा जा रहा है. इन दिनों देश के एक मगरमच्छ प्रजनन केंद्र से 1000 मगरमच्छों को 1,931 किमी दूर चिड़ियाघर में भेजे जाने की प्रक्रिया जोरों से चल रही है. ये चिड़ियाघर भी आम नहीं है इसके मालिक अरबपति मुकेश अंबानी हैं. उम्मीद की जा रही हैं कि अंबानी के चिड़ियाघर यानी जू में इन मगरमच्छों को रहने के लिए बेहतर जगह मिल सकेगी.

जब मगरमच्छों में होने लगे झगड़े

पिछले साल भारत के चिड़ियाघर नियामक ने देश के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट से 1000 मग्गर नस्ल के मगरमच्छों को पश्चिमी राज्य गुजरात के ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर में भेजे जाने को मंजूरी दी थी. इसके तहत अब तक लगभग 300 मगरमच्छों को गुजरात भेजा जा चुका है. चेन्नई का ये मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट मगरमच्छ केंद्र 8.5 एकड़ में फैला है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र के अधिकारियों का कहना है कि मगरमच्छों को गुजरात इसलिए भेजा जा रहा है कि यहां इनकी आबादी बहुत बढ़ गई है. इनके मूल निवास भीड़भाड़ होने से इनके बीच झगड़े हो रहे थे.

आबादी ने बढ़ाई परेशानी

मद्रास क्रोकोडाइल बैंक में मगरमच्छों की आबादी बेतहाशा बढ़ गई है. इस वजह से यहां इनकों रखना मुश्किल भरा साबित हो रहा है. चेन्नई शहर में केंद्र के क्यूरेटर निखिल व्हाइटेकर (Nikhil Whitaker) ने बीबीसी को बताया, "बैंक में अत्यधिक आबादी की वजह से  हर साल सैकड़ों मगरमच्छों के अंडे नष्ट किए जाते हैं." उन्होंने आगे कहा, "मगरमच्छों को यहां से गुजरात भेजने का फैसला उन्हें रहने के लिए बेहतर जगह देने के लिए लिया गया था." वर्षों से ये बैंक अपने मगरमच्छों को भारत भर के संरक्षित इलाकों और चिड़ियाघरों में भेज रहा है. हालांकि, यह पहली बार है जब इतनी बड़ी संख्या में मगरमच्छों को शिफ्ट किया जा रहा है.

46 साल पुराना है मद्रास प्रजनन केंद्र

मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट नाम का मगरमच्छों का ये प्रजनन केंद्र साल 1976 में शुरू किया गया था. ये मगरमच्छों की मुख्य तौर से तीन देशी प्रजातियों मगर्स, खारे पानी के मगरमच्छ और घड़ियाल के संरक्षण के मकसद से शुरू किया गया था. शुरुआत में इसमें लगभग 40 मगरमच्छ थे और इनकी रक्षा करना केंद्र का लक्ष्य था, ताकि  इनकी आबादी को बढ़ाई जा सकें. इसकी एक बड़ी वजह थी कि केंद्रों में बढ़ी इनकी आबादी को उनके प्राकृतिक आवासों में बहाल करने के लिए जंगल में छोड़ा जा सके.

 मगरमच्छों की विदाई पर सवाल भी हैं बड़े

संरक्षणवादियों ने प्रजनन केंद्र में मगरमच्छों की भीड़भाड़ के समाधान के तौर पर उनके इस तरह के स्थानांतरण के बारे में संदेह जताया है. वन्यजीव जीवविज्ञानी पी कन्नन के मुताबिक इन सरीसृपों को उनके नए घर में भी बंद जगह में ही रखा जाएगा, इसलिए परेशानी बनी रहेगी. कन्नन ने कहा,"अभी तक (मगरमच्छों के लिए) नसबंदी का कोई तरीका नहीं है और नर और मादा मगरमच्छों को लंबे वक्त तक अलग-अलग बाड़ों में नहीं रखा जा सकता है क्योंकि इससे झगड़े होते हैं," 

नीलगिरी वन्यजीव और पर्यावरण संघ के मानद सचिव एस जयचंद्रन के मुताबिक जानवरों को स्थानांतरित करने की जगह भारत को वन्यजीवों के लिए अपने संरक्षित क्षेत्रों को बढ़ाना चाहिए. उन्होंने कहा, "अगर जंगल में मगरमच्छों के लिए पर्याप्त जगह होती, तो उन्हें चिड़ियाघर में नहीं भेजना पड़ता."

सिमटते जा रहे वन्यजीव इलाके

गौरतलब है कि 1994 में फेडरल गवर्नमेंट के आदेश ने बंदी नस्ल के मगरमच्छों को जंगल में छोड़े जाने पर रोक लगा दी थी. तब से ही बैंक को समय-समय पर कुछ मगरमच्छों को चिड़ियाघरों और वन्यजीव अभयारण्यों में भेजना पड़ता है.अधिकारियों का कहना है वन्यजीव क्षेत्रों का दायरा कम होने और चिड़ियाघरों में केवल सीमित संख्या में मगरमच्छों रखने की क्षमता होने की वजह से उन्हें केंद्र की क्षमता से अधिक बढ़ गई मगरमच्छों की आबादी को बाहर भेजना पड़ता है.

ऐसा रहेगा सफर

प्रजनन केंद्र के अधिकारियों ने कहा कि मगरमच्छ तापमान नियंत्रित वाहन में लकड़ी के बक्सों में जामनगर भेजे जाएंगे.प्रजनन केंद्र के अधिकारी के मुताबिक," बंदी मगरमच्छों को हफ्ते में केवल एक बार खाना देने की जरूरत होती है, इसलिए उन्हें सफर से पहले खाना खिलाया जाएगा."

कैसा है नया घर

गुजरात के जामनगर शहर में 3 साल पुराना ये चिड़ियाघर 425 एकड़ के इलाके में फैला है. इस चिड़ियाघर ने  अपनी हालिया सालाना रिपोर्ट में कहा है कि यहां आने वाले मगरमच्छों को रहने के लिए पर्याप्त जगह मिलेगी. भोजन और देखभाल में भी कोई कमी नहीं की जाएगी.अब ये 1000 मगरमच्छ चेन्नई के 8.5 एकड़ के केंद्र से कई गुना बड़े इलाके में रहेंगे.

गुजरात के ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर में पशु चिकित्सक, क्यूरेटर, जीवविज्ञानी, प्राणी विज्ञानी इस जूलॉजिकल पार्क को खास बनाते हैं. ये भारत से ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से बचाव और मदद की जरूरत वाले जानवरों की भलाई के लिए काम करता है. इसे जानवरों के भलाई, बचाव और पुनर्वास और संरक्षण के मकसद से खोला गया है. 

ऐसा होता है मगरमच्छ का मिजाज

वास्तव में  मगरमच्छ के आंसू आते हैं, माना जाता है कि खाना खाते वक्त वो बहुत अधिक हवा निगलते हैं. ये हवा उनकी लैक्रिमल ग्रंथियों (आंसू वाली ग्रंथियों) के संपर्क में आती हैं और उन्हें आंसू बहाने पर मजबूर करती हैं. लेकिन ये सच में रोना नहीं है. सबसे छोटी मगरमच्छ ओस्टियोलेमस टेट्रास्पिस  है. इसकी लंबाई 1.5 मीटर  से लेकर अधिकतम 1.9 मीटर होती है.

दुनिया में लगभग 250 मिलियन साल पहले डायनासोर के दौर में ही पहला मगरमच्छ भी दिखाई दिया था.  मगरमच्छ के पूर्वज आज के मगरमच्छों के मुकाबले बहुत बड़े थे. ये रात में भी बहुत अच्छी तरह देख सकते हैं और इसी वजह से रात में शिकार करना पसंद करते हैं. सभी जानवरों में से मगरमच्छ का दिल सबसे जटिल माना जाता है.

रेंगने वाले जीवों की तरह मगरमच्छ भी ठंडे खून वाले होते हैं. इस वजह से इनका पाचन प्रक्रिया बेहद धीमी होती है और यह कुछ ना खाए हुए भी बहुत वक्त तक जीवित रह सकते हैं. इनमें में पसीने की ग्रंथियां नहीं होती और उनके मुंह से गर्मी निकलती है, इसलिए वे अक्सर मुंह खोलकर सोते हैं.इनके गले के पीछे एक वाल्व होता है, जिससे वे अपने जबड़े को खोल सकते हैं.

इनकी उम्र औसतन कम से कम 30-40 साल और बड़ी प्रजातियों के मामले में औसतन 60-70 साल है. दुनिया में खारे पानी के मगरमच्छ सबसे बड़े सरीसृप हैं. ये 6.17 मीटर तक बढ़ सकते हैं और एक टन से अधिक वजन के हो सकते हैं.

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