संसद की नई बिल्डिंग को लेकर जारी सियासी रार थमता नजर नहीं आ रहा है. सत्तापक्ष और विपक्ष अपने-अपने तर्क और दावे से एक दूसरे पर हमलावर हैं. दोनों पक्षों की ओर से समर्थन जुटाकर शक्ति प्रदर्शन करने की कवायद भी जारी है.


नई संसद को लेकर मचे घमासान को आगामी लोकसभा चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है. उद्घाटन समारोह का 19 दलों ने विरोध जताया है, जिसमें से 3 राष्ट्रीय स्तर की पार्टियां है. 


3 राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों समेत 25 दलों ने उद्घाटन में भाग लेने का ऐलान भी किया है. इनमें बीएसपी, वाई.एस.आर कांग्रेस, टीडीपी और बीजेडी जैसे दल भी शामिल हैं. हाल ही में विपक्षी एका बनाने के लिए नीतीश कुमार ने बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक से मुलाकात की थी.


नई संसद के बहाने राजनीति दल मिशन 2024 के लिए मुद्दे और रणनीति भी फिट करने में जुटे हैं. आइए इसे विस्तार से जानते हैं...


2024 का चुनावी मुद्दा तय हो सकता है?
नई संसद के बहाने 2024 का चुनावी मुद्दा तय हो सकता है. दोनों पक्ष अपने-अपने सुविधानुसार मुद्दा बनाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं. उदाहरण के लिए- बीजेपी संसद में सेंगोल के सहारे हिंदुत्व को साधने की कोशिश में है. 


पार्टी तमिलनाडु समेत दक्षिण और उत्तर भारत के कुछ राज्यों में इसे भुनाने की कोशिश करेगी. विचारधारा के हिसाब से भी यह बीजेपी के लिए फिट है. इतना ही नहीं, संसद के उद्घाटन के दिन 28 मई को सावरकर की भी जयंती है.


सावरकर के हिंदुत्व कंसेप्ट पर ही पहले संघ और बाद में बीजेपी की राजनीतिक जड़ें टिकी हुई है. दूसरी तरफ विपक्षी दल भी अपने सुविधानुसार मुद्दे तय करने की कोशिशों में जुटी हुई हैं.


कांग्रेस समेत विपक्षी दल संसद के उद्घाटन में राष्ट्रपति को नहीं बुलाए जाने को आदिवासी अपमान से जोड़ दिया है. लोकसभा चुनाव के लिहाज से आदिवासी वोटबैंक राजनीतिक दलों के लिए काफी महत्वपूर्ण है. 


2011 जनगणना के मुताबिक देश में आदिवासियों की संख्या 10 करोड़ से अधिक थी, जो कुल आबादी का 8 फीसदी है. लोकसभा में आदिवासियों के लिए 47 सीटें आरक्षित है. 2019 में एनडीए गठबंधन को 35 से अधिक सीटों पर जीत मिली थी. 


लोकसभा से पहले छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं. इनमें से छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मध्य प्रदेश में आदिवासी वोटरों का दबदबा है. 


आदिवासियों के अपमान के साथ-साथ विपक्षी दल संविधान की अवहेलना के मामले को भी जोर-शोर से उठाने में लगे हैं. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह मुद्दा विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए छेड़ा गया है. 


1977 में संविधान बचाने की राग अलाप कर लेफ्ट और राइट दोनों ध्रुव के नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ एक हो गए थे. 


रणनीति तैयार करने का माध्यम बना
नई संसद का उद्घाटन राजनीतिक दलों के लिए 2024 की रणनीति तैयार करने का एक माध्यम भी बन गया है. स्पीकर कुर्सी के पास सेंगोल लगाकर बीजेपी तमिलनाडु में जड़ें जमाने की रणनीति पर काम कर रही है.


विपक्ष की रणनीति से बैकफुट पर आने के बजाय बीजेपी इस मुद्दे पर आक्रामक है. पार्टी ने अमित शाह के नेतृत्व में मंत्रियों की फौज उतार दी है, जो इस विषय पर सरकार को बदनाम करने का आरोप लगा रहे हैं.


इधर, कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल आगे की रणनीति पर काम कर रहे हैं. आप की कोशिश है कि इसी मुद्दे के बहाने राज्यसभा में सभी विपक्षी दल मिलकर दिल्ली अध्यादेश का विरोध करे. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट फैसले के बाद मोदी सरकार ने दिल्ली पर अध्यादेश लाया है.


विपक्षी दल संसद के उद्घाटन के बहाने डिप्टी स्पीकर के मुद्दे पर भी सरकार को घेरने की रणनीति बना रहे हैं. तृणमूल सांसद डेरेक-ओ ब्रायन ने कहा है कि 4 साल से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन सरकार ने अब तक लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं कराया.


2014 में मोदी सरकार आने के बाद एआईएडीमके के खाते में डिप्टी स्पीकर की कुर्सी गई थी, लेकिन 2019 के बाद इस पद को लेकर चुनाव नहीं कराया गया.


विपक्षी एका का पहला शक्ति प्रदर्शन
संसद का उद्घाटन विपक्षी एका का पहला शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा है, जो लोकसभा चुनाव 2024 के लिए काफी महत्वपूर्ण है. नीतीश कुमार के प्रयास के बाद विपक्षी गठबंधन में दलों की संख्या को लेकर अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन अब लगभग तस्वीरें साफ हो गई है.


विपक्षी एका में कांग्रेस, सपा, तृणमूल, डीएमके, एनसीपी, शिवसेना(यूटी), सीपीएम, सीपीआई, केरल कांग्रेस, आईयूएमएल, आरएसपी, आरजेडी, जेडीयू, जेएमएम, एमडीएमके, आप, आरएलडी और वीसीके जैसे दल शामिल है. 


विपक्षी गठबंधन में अधिकांश दल बिहार, झारखंड, बंगाल, यूपी, केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के हैं. आप और सीपीएम राष्ट्रीय पार्टी भी है, लेकिन आप दिल्ली का दबदबा दिल्ली और पंजाब जबकि सीपीएम का दबदबा केरल तक ही सीमित है.


वर्तमान में संख्या के हिसाब से देखें तो विरोध में खड़े दलों के पास लोकसभा में 156 सांसद हैं, जबकि राज्यसभा में इन दलों की ताकत अधिक है. राज्यसभा में 250 में से 104 सीट इन 19 दलों के पास है.


दिलचस्प बात है कि ये सभी दल अगर साथ आते हैं, तो 2024 के चुनाव में बीजेपी को 450 से अधिक सीटों पर सीधा मुकाबला करना होगा. जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों की रणनीति भी यही है. 


संसद उद्घाटन के विरोध में जिन 19 पार्टियों ने साझा पत्र जारी किया है. 2019 में उनका वोट परसेंट करीब 45 फीसदी था. 2019 के चुनाव में 303 सीटें जीतने वाली बीजेपी का वोट परसेंट 37 फीसदी था. 


ऐसे में अगर बिहार, महाराष्ट्र, यूपी, झारखंड और बंगाल में इन दलों का वोट एकमुश्त पड़ा तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती है. इन 5 राज्यों में ही लोकसभा की 200 से अधिक सीटें हैं, जिसमें एनडीए के पास करीब 150 सीटें हैं. 


बढ़ रहा है एनडीए का कुनबा?
नीतीश कुमार, सुखबीर बादल और उद्धव ठाकरे के जाने के बाद एनडीए काफी कमजोर पड़ गया था. एनडीए में शामिल एलजेपी में भी टूट हो गई थी. ऐसे में बिहार, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अभी भी सीटों का समीकरण साधना बीजेपी के लिए चुनौती बनी हुई है.


हालांकि, संसद उद्घाटन में जिस तरह से कई दलों ने खुलकर बीजेपी का समर्थन किया है, उससे कयास लग रहे हैं कि क्या बीजेपी, एनडीए और मजबूत होगा? 


25 साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी और जॉर्ज फर्नांडिज ने मिलकर एनडीए का गठन किया था. उस वक्त 24 दल इस गठबंधन में शामिल थे. संसद उद्घाटन मसले पर भी 25 दलों का समर्थन बीजेपी को मिल गया है. 


पुराने सहयोगी शिअद, जेडीएस और टीडीपी ने भी समर्थन देने का ऐलान किया है. इसके अलावा बीएसपी, बीजेडी और वाई.एस आर कांग्रेस भी समर्थन में आ गई है. नया समीकरण देखें तो संसद उद्घाटन के बहाने बीजेपी को कर्नाटक, आंध्र, ओडिशा जैसे राज्यों में मजबूत सहयोगी मिल गया है.


अगर ये दल चुनावी गठबंधन में शामिल होता है, तो बीजेपी को 50 और सीटों पर मजबूती मिल सकती है. संसद उद्घाटन के दिन इन दलों का शक्ति प्रदर्शन भी हो सकता है.


वर्तमान संख्या की बात करें तो जिन दलों ने संसद उद्घाटन मसले में सरकार का समर्थन किया है, उसके पास राज्यसभा में 131 सीटें हैं, जो बहुमत के आंकड़े से काफी ज्यादा है. 


इन 25 दलों के पास लोकसभा में 376 सांसद हैं, जो 2 तिहाई से थोड़ा ही कम है. 


इन दलों का कोई स्टैंड नहीं, खेल बिगाड़ेंगे?
हरियाणा की इनेलो, तेलंगाना की बीआरएस और एआईएमआईएम, जम्मू-कश्मीर की पीडीपी और यूपी की सुभासपा ने उद्घाटन पर कोई साफ स्टैंड नहीं लिया है. इसके अलावा कई और छोटी पार्टियां भी इस फेहरिस्त में शामिल हैं.


एआईएमआईएम का वजूद तेलंगाना के साथ-साथ महाराष्ट्र और बिहार में भी है. इसके मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा स्पीकर से ही संसद उद्घाटन की मांग की है. 


जिन दलों ने संसद उद्घाटन पर अब तक कोई स्टैंड नहीं लिया है, उन दलों का भी लोकसभा की सीटों पर काफी दबदबा है. पांचों दल लोकसभा के करीब 40 सीटों पर खेल बिगाड़ने की क्षमता रखती है. 


वर्तमान संख्या की बात करें तो इन छोटे-छोटे दलों के पास लोकसभा में 11 सीटें हैं, जबकि राज्यसभा की 7 सीटों पर इन दलों का कब्जा है. आगामी लोकसभा चुनाव में ये दल भी खेल बिगाड़ सकते हैं.