कोलकाता: पिछले साल बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने अपने प्रदर्शन से सभी को चौंका दिया था. बिहार में पांच सीटों पर एआईएमआईएम ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद चर्चा होने लगी कि ओवैसी की पार्टी के लिए अगला पड़ाव पश्चिम बंगाल होगा. बीते कुछ महीनों में ओवैसी ने दो बार बंगाल का दौरा भी किया. यहां तक कहा जाने लगा था कि एआईएमआईएम, टीएमसी की वोट में सेंध लगा सकती है. बंगाल में मुस्लिम वोटर्स की संख्या लगभग 30 फीसदी है और ऐसे में इनकी भूमिका अहम हो जाती है. लेकिन चुनाव से पहले ओवैसी ने लगभग अपने हथियार डाल दिए हैं.


आखिर ऐसा क्यों?


कहा जा रहा है कि बंगाल में एआईएमआईएम संगठन में बड़ी भूमिका निभाने वाले ज़मीरुल हसन अब ओवैसी को छोड़कर खुद बंगाल में इंडियन नेशनल लीग का नया चैप्टर शुरू करने जा रहे हैं. इंडियन नेशनल लीग वही पार्टी है जो साल 1994 तक मुस्लिम लीग के साथ थी. सूत्रों की मानें तो एआईएमआईएम बंगाल के कई नेता अब्बास सिद्दीकी के साथ असदुद्दीन ओवैसी की दोस्ती से भी नाराज़ चल रहे थे. अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) लेफ्ट और कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है. बंगाल में इंडियन नेशनल लीग की स्थापना हो रही है और माना जा रहा है कि ये पार्टी चुनाव में टीएमसी को ही समर्थन करेगी.


ओवैसी के नहीं लड़ने से किसे फायदा?


असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के चुनाव नहीं लड़ने का सबसे ज्यादा फायदा टीएमसी को होगा. ये बात टीएमसी के नेता भी स्वीकार करते हैं. हालांकि, साथ में वो ये भी कहते हैं कि ममता बनर्जी अकेले ही काफी हैं. कोई पार्टी चुनाव लड़ती है या नहीं, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.


क्या कहते हैं राजनीति के जानकार?


राजनीतिक विश्लेषक ईमान कल्याण लाहिरी का मानना है कि बंगाल में मुस्लिम समुदाय के 94 फीसदी लोग बंगाली भाषा में बात करते हैं. इसीलिए असदुद्दीन ओवैसी बंगाल में कोई बड़ा फैक्टर नहीं हैं. इसको जानते और मानते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने शायद अब्बास सिद्दीकी से बात की थी. लेकिन बंगाल एआईएमआईएम के नेताओं को ये नापसंद था. इसीलिए ओवैसी को इस बार चुनाव से पहले ही हथियार डालना पड़ा.


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